नाबार्ड की स्थापना
नाबार्ड की स्थापना- राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना भारत सरकार द्वारा 12 जुलाई, 1982 को भारतीय रिजर्व बैंक के कृषि ऋण विभाग, कृषि पुनर्वित्त और विकास निगम, राष्ट्रीय कृषि ऋण निधि (दीर्घकालीन परिचालन) और राष्ट्रीय कृषि ऋण (स्थिरीकरण) निधि को विलय करके की गई थी।
नाबार्ड के उद्देश्य
नाबार्ड एक शीर्ष विकास बैंक है जो कृषि और ग्रामीण विकास 7 के लिए सहायता प्रदान करता है। इस बैंक की स्थापना निम्न उद्देश्यों के लिए की गई—
1. एकीकृत ग्रामीण विकास को उद्देश्यपूर्ण दिशा प्रदान करना और इस पर सारा ध्यान केन्द्रित करना ।
2. सम्पूर्ण ग्रामीण ऋण-व्यवस्था के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक केन्द्रबिन्दु के रूप में कार्य करना ।
3. ग्रामीण ऋण संस्थाओं के लिए अनुपूरक निधिकरण हेतु उपलब्धक के रूप में कार्य करना।
4. छोटे उद्योगों, ग्रामीण और कुटीर उद्योगों, हस्तकारों तथा अन्य ग्रामीण शिल्पकारों और किसानों के लिए निवेश ऋण की व्यवस्था करना।
5. बैंक कार्मिकों को प्रशिक्षण, ऋण संस्थाओं का पुनर्स्थापन और अन्य संस्थाओं की स्थापना करके ऋण वितरण व्यवस्था में सुधार करना।
6. ग्रामीण क्षेत्रों में विकास उद्देश्यों के लिए राज्य भूमि विकास बैंकों, राज्य सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को पुनर्वित्त सुविधाएँ प्रदान करना।
7. क्षेत्रीय स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यों में लगी विभिन्न एजेन्सियों की कार्य प्रणाली में समन्वय करना तथा राष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक, राज्य सरकारों और अन्य नीति-निर्धारक संस्थाओं से सम्पर्क बनाए रखना।
8. नाबार्ड से पुनर्वित्त प्राप्त करने वाली परियोजनाओं का निरीक्षण, निगरानी और मूल्यांकन करना।
नाबार्ड के कार्य
( क ) ऋण वितरण- नाबार्ड निम्न संस्थाओं को विभिन्न प्रकार का पुनर्वित्त प्रदान करता है—
1. अल्पकालीन ऋण- नाबार्ड सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अनुमोदित अन्य वित्तीय संस्थाओं को निम्न उद्देश्यों के लिए अल्कालीन ऋण प्रदान करता है— (i) मौसमी कृषि परिचालन, (ii) कृषि उत्पादों का विपणन, (iii) कीटनाशक और रासायनिक खादों आदि के लिए विपणन और वितरण, (iv) ग्रामीण / कृषि क्षेत्र से सम्बन्धित अन्य गतिविधियाँ, (v) वास्तविक वाणिज्यिक व्यापार गतिविधियाँ, (vi) निम्न गतिविधियों का उत्पादन और विपणन- हस्तशिल्प, लघु उद्योग, ग्राम और कुटीर उद्योग, शिल्पकला, रेशम उद्योग आदि । इन उद्योगों के लिए अल्पकालीन ऋण की अवधि 15 माह है।
2. मध्यम अवधि के ऋण- नाबार्ड राज्य सहकारी बैंकों, भूमि विकास बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और अन्य अनुमोदित संस्थाओं को 15 माह से 7 वर्ष तक के ऋण प्रदान करता है। मध्यम अवधि के ऋण कृषि और ग्रामीण क्षेत्र से सम्बन्धित निवेश योजनाओं के लिए दिए जाते हैं।
दीर्घकालीन ऋण- नाबार्ड राज्य भूमि विकास बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, वाणिज्यिक बैंकों, राज्य सहकारी बैंकों और अन्य किसी भी अनुमोदित वित्तीय संस्था को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करता है। यह निम्न क्रिया-कलापों में निवेश के लिए पुनर्वित्त प्रदान करता है। लघु सिंचाई, भूमि विकास, भू-संरक्षण; डेयरी विकास, भेड़ पालन, मुर्गीपालन, सुअर पालन, कृषि यंत्रीकरण, वन्यीकरण, मत्स्यपालन, भण्डारण और बाजार प्रांगण, वायुयान के जरिए कृषि सम्बन्धी परिचालन, बायोगैस और ऊर्जा के अन्य वैकल्पिक स्रोत, रेशम उत्पादन, मधुमक्खी पालन, पशु और पशु चालित गाड़ियाँ, वानस्पतिक खाद से सम्बन्धित उपकरण, पम्प सेट और अन्य कृषि सम्बन्धी गतिविधियाँ। ये ऋण 25 वर्ष तक की अवधि के लिए होते हैं।
4. परिवर्तन और पुनर्व्यवस्था की सुविधाएँ- सूखा, अकाल या अन्य प्राकृतिक आपदाओं, सैन्य कार्रवाई, शत्रु राष्ट्र द्वारा आक्रमण आदि होने पर परिवर्तन और पुनर्व्यवस्था की स्थिति में नाबार्ड, राज्य सहकारी बैंकों और अन्य क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को पुनर्वित सुविधाएँ प्रदान करता है। ऐसी सुविधाएँ हस्तशिल्पियों लघु उद्योगों आदि को दिए गए ऋणों में भी प्रदान की जाती हैं।
5. ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों को पुनर्वित्त प्रदान करना- नाबार्ड ग्रामीण क्षेत्रों में सभी लघु, ग्राम और कुटीर उद्योगों को पुनर्वित्त सुविधाएँ प्रदान करता है।
(ख) विकासात्मक कार्य- नाबार्ड निम्न विकासात्मक कार्य करता है (i) ग्रामीण ऋण संस्थाओं का समन्वय करना; (ii) ऋण वितरण व्यवस्था की क्षमता में सुधार के लिए संस्थाएँ बनाने के उपाय करना; (iii) कृषि और गाँवों से सम्बन्धित समस्याओं के हल के लिए विशेषज्ञता विकसित करना; (iv) सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य संस्थाओं की उनके ग्रामीण विकास प्रयासों में मदद करना; (1) नाबार्ड, कृषि से सम्बन्धित क्षेत्रों में निगरानी कार्य के लिए सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के एजेण्ट के रूप में कार्य करता है, (Vi) नाबार्ड क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, राज्य सहकारी बैंकों, भूमि विकास बैंकों आदि के स्टाफ को अनुसंधान और प्रशिक्षण सुविधाएँ प्रदान करता है तथा अपनी R&D (अनुसंधान और विका ३) निधियों द्वारा कृषि और ग्रामीण विकास गतिविधियों में अनुसन्धान को प्रोत्साहन देता है। ग्रामीण बैंकिंग तथा कृषि और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में प्रशिक्षण सुविधाएँ प्रदान करने के लिए नाबार्ड ने लखनऊ, बोलपुर और मंगलोर में बैंकर ग्रामीण विकास संस्थान और नेशनल बैंक स्टाफ कॉलेज, पुणे में कृषि बैंकिंग कॉलेज खोले हैं; (vii) नाबार्ड, बैंकिंग और विकास से सम्बन्धित सूचना प्रदान करता है; (viii) राज्य सरकारों की सहायता करता है ताकि वे राज्य सहकारी बैंकों को शेयर पूँजी अभिदत्त कर सकें, (ix) कृषि और ग्रामीण विकास से सम्बन्धित केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुमोदित मामलों में प्रत्येक ऋण प्रदान करता है और (x) अपने लाभ में से सुलभ ऋण सहायता निधि रखता है ताकि उद्यमी ग्राम, कुटीर और बहुत छोटे उद्योग पुनर्वित की सुविधाएँ प्राप्त करते हुए अन्तर (मार्जिन) राशि भी ले सकें। यह सुविधा ब्याजमुक्त दी जाती है और ऋण के पुनर्भुगतान के बाद वार्षिक किश्तों में वसूल की जाती है।
नाबार्ड की उपलब्धियाँ या प्रगति-
नाबार्ड संगठित ग्रामीण ऋण संरचनाओं में एक शीर्ष संस्था है। यह क्षेत्रीय विषमता को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और छोटे तथा सीमान्त किसानों और समाज के कमजोर वर्गों की सहायता करता है। नाबार्ड राज्य सहकारी भूमि विकास बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, वाणिज्यिक बैंकों जैसे बड़े वित्तीय मध्यस्थों के माध्यम से देश में कृषि और ग्रामीण विकास हेतु पुनर्वित सुविधाओं का प्रसार करता है।
1. अल्पावधि ऋण- वर्ष 2014-15 के दौरान नाबार्ड ने मौसमी कृषि परिचालनों (फसल ऋण), फसल के विपणन, खाद की खरीद और वितरण तथा सहकारी चीनी मिलों की कार्यशील पूँजी की आवश्यकताओं के वित्त पोषण के लिए राज्य सहकारी बैंकों/क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को अल्पावधि ऋण के रूप में 15780 करोड़ रु. की राशि मंजूर की।
2. मध्यम अवधि ऋण- नाबार्ड, द्वारा वर्ष 2014-15 में अनुमोदित कृषि सम्बन्धी उद्देश्यों के लिए राज्य सहकारी बैंकों/क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को मध्यम अवधि ऋण के रूप में 1500 करोड़ रु. की राशि मंजूर की गयी।
3. दीर्घ अवधि ऋण- नाबार्ड राज्य सरकारों को 25 वर्ष तक की अवधि के दीर्घकालीन ऋण प्रदान करता है ताकि वे सहकारी ऋण संस्थाओं की शेयर पूँजी में योगदान कर सकें। 2014 15 में नाबार्ड ने इस उद्देश्य के लिए राज्य सरकारों को 130 करोड़ रु. की राशि मंजूर की।
4. स्कीमानुसार ऋण- नाबार्ड लघु सिंचाई, भूमि विकास, कृषि यंत्रीकरण, वृक्षारोपण, बागवानी, मुर्गीपालन, भेड़ पालन, सुअर पालन, मत्स्यपालन, डेयरी विकास, भण्डारण, बाजार प्रांगण IRDP आदि से सम्बन्धित पुनर्विन्त सुविधाएँ उपलब्ध कराता है।
5. गैर-कृषि क्षेत्र को सहायता- नाबार्ड गैर-कृषि क्षेत्र को वित्तीय सहायता प्रदान करता है। एकीकृत ऋण योजना ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षित बेरोजगार युवकों के लिए प्रधानमंत्री रोजगार योजना के विस्तार के साथ नाबार्ड इस योजना के अन्तर्गत कॉमर्शियल बैंकों को उनके द्वारा बढ़ाये गए ऋणों के लिए पुनर्वित्त प्रदान करता है। कृषिगत क्रियाओं सहित एक विस्तृत कार्य-क्षेत्र, उद्योगों, सेवाओं और वे व्यवसाय जो बैंकग्राह्य एवं अर्थक्षम (viable) हैं, पुनर्वित्त के पात्र होते हैं।
6. अन्य प्रकार की सहायता- हाल में, नाबार्ड ने निम्न प्रकार की सहायता प्रारम्भ की है—
(क) यह उच्च तकनीक और अन्य विशेष प्रोजेक्टों के लिए प्रत्यक्ष वित्त प्रबन्ध / सन्तुलित स्केल सहवित्त प्रबन्ध का दायित्व सँभालता है।
(ख) इसने देश के चुने गए 114 जिलों में कार्य कर रहे प्रत्येक SCBs/RRBs की एक अलग अल्पकालीन (मौसमी कृषि प्रचालनों) ऋण सीमा की मंजूरी देना प्रारम्भ किया है।
(ग) SCs/STs सहित कमजोर वर्गों तक ऋण प्रवाह पहुँचाने के लिए नाबार्ड ने कॉमर्शियल और सहकारी बैंकों में आवंटन के लिए “SC/ST कार्य योजना के अन्तर्गत पुनर्वित्त के लिए। 150 करोड़ रु. की रकम निश्चित की है। पुनर्वित्त का स्तर 100 प्रतिशत होता है।
7. संस्थागत विकास- नाबार्ड के महत्त्वपूर्ण कार्यों में से प्रमुख कार्य संस्थागत विकास से है। सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के निरीक्षण के अलावा नाबार्ड उनके पुनर्वास पुनर्गठन और पुनर्स्थापना में सहायता करता है। नाबार्ड ने एक स्वैच्छिक विकास वाहिनी शुरू की है, जो चुनिन्दा क्षेत्रों में ग्रामवासियों को ऋण पुनर्भुगतान के तौर-तरीकों में प्रशिक्षित करती है। बैंक ऋण के माध्यम से सफलतापूर्णक विकास प्रयास करने वाले किसान और शिल्पकार इसके सदस्य हैं। इन सदस्यों को ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था के लाभार्थियों में वित्तीय अनुशासन का प्रचार-प्रसार करने के लिए भेजा जाता है। नाबार्ड ने मानव संसाधन विकास के लिए सहकारी ऋण संस्थाओं को वित्त प्रदान करने के लिए सहकारी विकास निधि की स्थापना की है। दक्षिण के तीन राज्यों में कृषि विकास वित्त कम्पनियाँ तथा ग्रामीण आधारभूत विकास निधि स्थापित किए हैं।
8. समझौतों का स्मरण पत्र – नाबार्ड ने सहकारी ऋण ढाँचे को सुधारने के लिए सहकारी बैंकों एवं सम्बन्धित राज्य सरकारों के साथ MOUs पर हस्ताक्षर किया है।
9. अनुसन्धान और विकास- नाबार्ड क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के तकनीकी निगरानी (मानीटरिंग) और मूल्यांकन प्रकोष्ठों को सुदृढ़ करने और ग्रामीण बैंकिंग संरचना के स्टाफ को अनुसन्धान और प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है। इसके तीन स्टॉफ कॉलेज सी ए बी एवं बैंकर ग्रामीण विकास संस्थान, बैंकों के स्टाफ को ग्रामीण ऋण और विकास में अनुसन्धान और प्रशिक्षण सुविधाएँ प्रदान कर रहे हैं।
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