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क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की कार्यप्रणाली में सुधार हेतु सुझाव | Suggestions to Improve Working of RRBs)

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की कार्यप्रणाली में सुधार हेतु सुझाव
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की कार्यप्रणाली में सुधार हेतु सुझाव

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की कार्यप्रणाली में सुधार हेतु सुझाव ( Suggestions to Improve Working of RRBs)

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की कार्यप्रणाली में सुधार हेतु सुझाव – क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की कार्यशीलता में सुधार करने के लिए दाँतवाला समिति (1978), केलकर समिति (1986) और खुसरो समिति (1989) व नरसिंहम् समिति (1991) ने अनेक सुझाव दिए हैं। इनमें से कुछ सुझावों का उल्लेख नीचे किया गया है-

1. डॉ. ए. एम. खुसरो की अध्यक्षता में स्थापित कृषि उधार समीक्षा समिति का मत है कि क्षेत्रीय ग्राम बैंकों की ये कमजोरियाँ अन्तर्निहित हैं और अक्षमता उनके संगठनात्मक ढाँचे का अंग है। अतः क्षेत्रीय ग्राम बैंकों से यह आशा नहीं की जा सकती कि वे समाज के सबसे बड़े वर्ग की सेवा उनसे प्रत्याशित ढंग से कर पायेंगे। खुसरो समिति के अनुसार देश की उधार प्रणाली में क्षेत्रीय ग्राम बैंकों के लिए निकट भविष्य में कोई स्थान नहीं है और उनका प्रवर्तक बैंकों (Sponsered Banks) के साथ विलयन (Merger) कर देना चाहिए।

2. नरसिंहम् समिति के अनुसार सरकार को ऐसे ग्रामीण बैंकिंग ढाँचे के निर्माण में सहायता देनी चाहिए जो क्षेत्रीय ग्राम बैंकों के स्थानीय लक्षणों को वाणिज्य बैंकों की वित्तीय शहि एवं संगठनात्मक तथा प्रबन्धकीय कुशलता से प्रभावी रूप में जोड़ दें।

नरसिंहम् समिति ने यह भी सिफारिश की है कि बैंकों को अपनी ग्रामीण शाखाओं के विनियमन की स्वतन्त्रता होनी चाहिए। ऐसे बैंक जिनकी किसी क्षेत्र विशेष में थोड़ी ग्रामीण शाखाएँ हैं, उन्हें ये शाखाएँ उन बैंकों के पक्ष में छोड़ देनी चाहिए जिनकी उस क्षेत्र में अधिक शाखाएँ हैं।

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3. निधियों को जमा करना- चूँकि क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना का उद्देश्य है यही है कि निधियों को शहरी मुद्रा बाजार से ग्रामीण केन्द्रों की ओर स्थानान्तरित किया जाए, इसलिए राज्य सरकार द्वारा पंचायतों और ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य कर रहे अन्य अर्द्ध-सरकारी निकाय को यह अनुमति दी जाए कि वे अपनी निधियाँ उनके परिचालन क्षेत्र में कार्य कर रहे क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की शाखाओं में ही जमा कराएँ ।

4. व्यापक गतिविधियाँ- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा अपनी गतिविधियों के क्षेत्र को और व्यापक बनाया जाए। मात्र ऋण देने पर केन्द्रित होने की बजाय इन बैंकों द्वारा ग्रामीण ‘परामर्शदायी सेवाएँ प्रदान की जायें। चरणबद्ध रूप से ॠण कार्यक्रम चलाए जायें। रोजगार के बेहतर अवसर जुटाए जायें और कृषक सेवा समितियों को भी अधिकार में लेना चाहिए।

5. सरल भर्ती प्रक्रिया – क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की सम्पूर्ण भर्ती प्रक्रिया को सरल और कारगर बनाया जाए। स्थानीय लोगों को वरीयता प्रदान की जाए तथा स्टाफ को ग्रामीण जीवन की समस्याओं पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाए जो क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लिए अनोखी बात है।

6. उत्पादन कार्य- इन बैंकों द्वारा केवल उत्पादक कार्यों के लिए ही ऋण उपलब्ध कराया जाना चाहिए तथा ऋणों के प्रयोग और वापसी पर कठोर नियन्त्रण लगाया जाना चाहिए। लाभार्थियों का चयन करते समय उनकी ऋण वापसी की प्रवृत्ति का भी आकलन कर लेना चाहिए|

7. अधिक बचत- इन बैंकों की शाखाओं को चाहिए कि ये अपने कार्य क्षेत्र में अधिक-से-अधिक बचतों को अपनी ओर आकर्षित करें तथा लागत घटाकर एवं कार्यकुशलता बढ़ाकर हानियों को कम करने का प्रयास करें जिससे इनकी जीवन क्षमता बनी रह सके।

8. मेहनती कर्मचारी- बैंक कर्मचारी को लगन, निष्ठा एवं ईमानदारी से कार्य करने के लिए उनकी वेतन विसंगतियों, सुविधाओं एवं प्रोन्नति सम्बन्धी समस्याओं का निदान करन चाहिए, ताकि वे सही दिशा में कार्य करें एवं जनता में बैंक की साख बनाए रखें।

9. छोटी सिंचाई परियोजनाएँ- सभी विद्यमान छोटी सिंचाई परियोजनाओं को क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में उनकी शाखाओं के अनुपात में बाँट दिया जाना चाहिए।

10. ऋण की वसूली- राज्य सरकार द्वारा ऋण की वसूली के लिए की गयी व्यवस्था सर्वथा अनुपयुक्त सिद्ध हो रही है। इस बारे में कठोर कदम उठाये जाने की आवश्यकता है।

11. सेमिनार- प्रत्येक वर्ष ब्लॉक स्तर पर सेमिनारों तथा ऐसे ही कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए जिसमें ग्रामीण विकास कार्यक्रमों तथा गरीबी उन्मूलन की अवधारणा के बार में जानकारी दी जाय तथा इसकी आवश्यकता के बारे में उत्साह पैदा किया जाए।

12. समितियों का पुनर्संगठन- राज्य सरकारों द्वारा कृषि ऋण समितियों का पुनर्गठन किया जाए तथा नई कृषक सेवा समितियों की स्थापना की जाए जिनके माध्यम से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक बड़े पैमाने पर उत्पादन ऋण प्रदान कर सकें। इससे ऋण प्रदान करने की सेवा-लागत में पर्याप्त कमी आयेगी।

13. निधियों की व्यवस्था- प्रायोजक बैंकों द्वारा अपने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को उनकी निधियों की व्यवस्था करने, ऋण योजनाओं का मूल्यांकन करने, ऋणों का सही अन्तिम उपयोग करने और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का आन्तरिक लेखा परीक्षण करने सम्बन्धी परामर्श देने और सहायता करने में अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।

14. अन्य सुझाव- (i) इन बैंकों की शाखाओं का विस्तार जो कुछ ही क्षेत्रों / प्रान्तों तक ही सीमित है, का सम्पूर्ण देश में विस्तार किया जाना चाहिए, ताकि क्षेत्रीय असन्तुलन की स्थिति न उत्पन्न हो सके।

(ii) स्वीकृत ऋणों के प्रयोग पर निगरानी रखी जानी चाहिए ताकि ऋण का प्रयोग उसी कार्य में हो जिस कार्य के लिए लिया गया हो।

(iii) वित्तीय समस्या के सम्बन्ध में इन बैंकों को रिजर्व बैंक अथवा अन्य प्रायोजक से रियायती दरों पर आवश्यकतानुसार वित्त उपलब्ध कराया जाना चाहिए।

(iv) वाणिज्यिक बैंकों की ग्रामीण शाखाओं का कारोबार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को सौंप देना चाहिए।

(v) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा ऐसी उपयोगी नीतियाँ तैयार की जायें जिनसे ग्रामीण लोगों में बैंकिंग आदतों और व्यवहार को विकसित किया जा सके।

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