वाणिज्य / Commerce

असंगठित मुद्रा बाजार या स्वदेशी मुद्रा बाजार का अर्थ और विशेषताएँ

असंगठित मुद्रा बाजार या स्वदेशी मुद्रा बाजार का अर्थ और विशेषताएँ
असंगठित मुद्रा बाजार या स्वदेशी मुद्रा बाजार का अर्थ और विशेषताएँ

असंगठित मुद्रा बाजार या स्वदेशी मुद्रा बाजार का अर्थ

असंगठित मुद्रा बाजार या स्वदेशी मुद्रा बाजार – असंगठित मुद्रा बाजार में साहूकार अथवा महाजन, देशी बैंकर, चिट फण्ड, सर्राफ आदि को सम्मिलित करते हैं। ग्रामीण देशी बैंकरों को ही साहूकार अथवा महाजन कहा जाता है। शहरी एवं ग्रामीण देशी बैंकरों की कार्यप्रणाली में समानता के बाद भी इनमें बहुत अन्तर पाया जाता है। एक पूर्वानुमान के आधार पर आन्तरिक व्यापार का अधिकांश भाग असंगठित मुद्रा बाजार पर निर्भर है। जहाँ एक ओर संगठित मुद्रा बाजार की कार्यप्रणाली को किसी सीमा तक सन्तोषप्रद कहा जा सकता है, वहीं दूसरी ओर असंगठित मुद्रा बाजार की कार्यप्रणाली दोषपूर्ण है जिसमें एकरूपता का सर्वथा अभाव रहता है जबकि असंगठित मुद्रा बाजार को नियन्त्रित करने के उद्देश्य से कुछ कानून बनाये गये हैं. परन्तु वह प्रभावशाली सिद्ध नहीं हो सके हैं। इस मुद्रा बाजार की ब्याज दरों में सदैव विभिन्नता बनी रहती है।

असंगठित मुद्रा बाजार की विशेषताएँ

भारत में असंगठित मुद्रा बाजार की निम्न विशेषताएँ हैं-

(i) लचीलापन- असंगठित मुद्रा बाजार ऋणों के आदान-प्रदान में बहुत ही लचील है। ऋण लेने वाला अपनी आवश्यकता के अनुसार कम या अधिक ऋण ले सकता है और यह ऋण लेने वाले की प्रतिभूति के प्रकार एवं साख पर निर्भर करता हैं।

(ii) निजी सम्बन्ध- महाजन अथवा देशी बैंकर ऋण लेने वाले से व्यक्तिगत सम्बन्ध रखता है। देशी बैंकर प्रत्येक ऋण लेने वाले को व्यक्तिगत रूप से जानता है क्योंकि वह उसी क्षेत्र का निवासी होता है।

(iii) ब्याज की दरों में विभिन्नता- इस बाजार में अनेक ब्याज दरें पायी जाती है। मुद्रा बाजार के विकसित क्षेत्र की अपेक्षा इस मुद्रा बाजार की ब्याज दर अपेक्षाकृत ऊँची होती हैं। ब्याज की दरों में समानता भी नहीं होती हैं। यह दर ऋण लेने वाले की आवश्यकता, ऋण राशि, प्रतिभूति के स्वरूप व समय की अवधि पर निर्भर करती है। राशि की आवश्यकता जितनी की अधिक होगी, ब्याज की दर भी उतनी ही अधिक होगी।

(iv) अनेक प्रकार के ऋण-प्रायः जनसामान्य ऋण देने के कार्य से ही उधार देने के साथ अन्य आर्थिक क्रियाओं को भी सम्मिलित कर लेते हैं। एक साहूकार या महाजन नकद धन देने की अपेक्षा वस्तुओं की पूर्ति भी कर सकता है

(v) दोषपूर्ण लेखांकन व्यवस्था-असंगठित मुद्रा बाजार में लेखा विधि के रख रखाव का तरीका अत्यन्त दोषपूर्ण है। ऋण लेने वाले द्वारा भुगतान की गयी ब्याज व मूलधन की राशि के बदले कोई रसीद नहीं दी जाती है। खातों का सही हिसाब-किताब नहीं रखा जाता है। इनके खाते बहुत गोपनीय रहते हैं। इनके खातों की जाँच किसी प्राधिकारी द्वारा करने का प्रावधान
भी नहीं है।

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