वाणिज्य / Commerce

शक्ति अथवा शक्तिशाली मुद्रा का अर्थ | मुद्रा की पूर्ति तथा शक्तिशाली मुद्रा में सम्बन्ध

शक्ति अथवा शक्तिशाली मुद्रा का अर्थ
शक्ति अथवा शक्तिशाली मुद्रा का अर्थ

शक्ति अथवा शक्तिशाली मुद्रा से आशय | मुद्रा की पूर्ति तथा शक्तिशाली मुद्रा में सम्बन्ध

उच्च शक्ति अथवा शक्तिशाली मुद्रा- वर्तमान में मुद्रा पूर्ति के निर्धारक तत्वों की व्याख्या उसके मौद्रिक आधार को लेकर की जाती है। इस मौद्रिक आधार को ही शक्तिशाली मुद्रा अथवा उच्च शक्ति मुद्रा कहते हैं।

शक्तिशाली मुद्रा का निर्धारण

व्यापारिक बैंकों के पास रिजर्व की जो मात्रा होती है तथा लोगों के पास मुद्रा (नोटों की मात्रा एवं सिक्के) की जो मात्रा होती है, उसके योग को ही शक्तिशाली मुद्रा कहते हैं। बैंकों में जमा राशि का आधार यही उच्च शक्ति मुद्रा होती है अर्थात् यदि लोग बैंकों में अधिक राशि जमा करते हैं तो बैंक जमा राशियाँ बढ़ जाती हैं तथा इसी आधार पर बैंक अधिक साख का निर्माण करते हैं। अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि साख निर्माण का आधार भी शक्तिशाली मुद्रा में वृद्धि से मुद्रा की पूर्ति में भी वृद्धि होती है, किन्तु रिजर्व – अनुपात का मुद्रा की पूर्ति से विपरीत सम्बन्ध होता है अर्थात् रिजर्व अनुपात में वृद्धि होने पर मुद्रा की पूर्ति कम हो जाती है।

शक्तिशाली मुद्रा का प्रयोग

शक्तिशाली मुद्रा का प्रयोग उसकी माँग में निहित है तथा शक्तिशाली मुद्रा की माँग तीन कारणों से की जाती है जो निम्नलिखित है-

1. व्यापारिक बैंकों द्वारा शक्तिशाली मुद्रा की माँग देश के केन्द्रीय बैंक में अपनी वैधानिक सीमा अथवा निर्धारित रिजर्व को बनाये रखने के लिये की जाती है।

2. उपर्युक्त के साथ ही अतिरिक्त रिजर्व के लिये भी शक्तिशाली मुद्रा की माँग, व्यापारिक बैंकों द्वारा की जाती है।

3. लोगों द्वारा नकद मुद्रा की माँग की जाती है। उपर्युक्त तीन कारणों को निम्न सूत्र द्वारा व्यक्त किया जा सकता है-

H= C+ RR + ER

यहाँ H + शक्तिशाली मुद्रा’, C = मुद्रा की माँग, RR = रिजर्व अनुपात के लिये मॉग, EE= अतिरिक्त रिजर्व की माँग

बैंकों द्वारा रिजर्व की माँग- एक व्यापारिक बैंक द्वारा रिजर्व की माँग उसकी जमाओं पर निर्भर रहती है। बैंक सामान्यतः निर्धारित सीमा से अधिक मात्रा में रिजर्व रखते हैं और कानूनी सीमा से कम मात्रा में अग्रिम देते हैं, ताकि वे किसी अप्रत्याशित या आकस्मिक मुद्रा की माँग की पूर्ति कर सकें। इसलिए बैंकों को अतिरिक्त मात्रा में रिजर्व रखने की आवश्यकता होती है। इस प्रकार मुद्रा पूर्ति का निर्धारण व्यापारिक बैंकों के निर्धारित रिजर्व अनुपात और अतिरिक्त रिजर्व अनुपात के द्वारा होता है तथा ये दोनों अनुपात जमा की मात्रा पर निर्भर रहते हैं।

शक्तिशाली मुद्रा का तीसरा निर्धारक तत्त्व है लोगों द्वारा रखी जाने वाले नकद मुद्रा की मात्रा। सिक्कों एवं नोटों की माँग बैंकों की जमा राशि के एक अंश में होती है इसे हम निम्न  सूत्र द्वारा व्यक्त कर सकते हैं-

CR= C/D

जहाँ Cr = 48T का अनुपात, C = मुद्रा, D= जमा राशि

मुद्रा अनुपात कई कारणों द्वारा प्रभावित होता है, जैसे लोगों के आया स्तर में परिवर्तन, लोगों द्वारा साख मुद्रा प्रयोग तथा आर्थिक क्रियाओं की अनिश्चितता।

संक्षेप में

मुद्रा उच्च शक्ति मुद्रा (H) का सम्बन्ध भारत सरकार तथा रिजर्व बैंक द्वारा जारी सरकारी से है जो वाणिज्यिक बैंकों के पास रिजर्व (Reserves) और जनता के पास करेन्सी (नोटों तथा सिक्कों) के रूप में रहता है। इस प्रकार उच्च शक्ति मुद्रा के प्रमुख संघटक है

(I) जनता के पास करेन्सी (C)

(II) बैंकों के पास नकद रिजर्व निधि (R) जिसके दो भाग होते हैं (अ) अपने पास रखी नकद रिजर्व तथा (ब) RBI के पास रखी बैंकों की जमा निधि ।

(III) केन्द्रीय बैंक के पास अन्य जमाएँ (OD) जिसमें अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं की माँग जमाओं को शामिल किया जाता है। इस प्रकार,

उच्च शक्ति मुद्रा (H) = C+R+OD

मुद्रा की पूर्ति तथा शक्तिशाली मुद्रा में सम्बन्ध

जहाँ तक मुद्रा की पूर्ति का प्रश्न है इसके निर्धारण में दो तत्त्वो का हाथ होता है। एक है व्यापारिक बैंक की जमा राशि और दूसरा लोगों द्वारा रखी जाने वाली मुद्रा (Currency) की मात्रा। इसे निम्न सूत्र द्वारा व्यक्त कर सकते हैं-

M=D+C

जहाँ M= मुद्रा की मात्रा, D = बैंक की जमा राशि एवं C = लोगों के पास मुद्रा की मात्रा। यह हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि शक्तिशाली मुद्रा तीन तत्त्वों से निर्धारित होती है। लोगों द्वारा नकद मुद्रा की माँग, बैंकों द्वारा रिजर्व अनुपात की मॉग एवं बैंकों द्वारा अतिरिक्त रिजर्व की माँग । इसका सूत्र इस प्रकार है-

H= C + RR + ER

उपर्युक्त दोनों सूत्रों को दृष्टि में रखकर मुद्रा की पूर्ति एवं शक्तिशाली मुद्रा में सम्बन्ध निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है।

उक्त सूत्र में यदि हम हर और अंश को D में विभाजित करें तो निम्न सूत्र पाते हैं-

अथवा

यदि हम C/D का Cr से, RR/D को RRr से तथा ER/D को ERr से प्रतिस्थापित कर दें तो सूत्र का निम्न रूप होगा-

उपर्युक्त सूत्र में Cr का अर्थ मुद्रा की मांग और जमा अनुपात से है, जिसे C/D द्वारा व्यक्त किया गया है अर्थात्

C/D=Cr

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर शक्तिशाली मुद्रा निम्न प्रकार द्वारा व्यक्त कर सकते

1 + Cr मुद्रा की पूर्ति को निम्न सूत्र द्वारा व्यक्त कर सकते हैं-

उक्त अन्तिम सूत्र में, शक्तिशाली मुद्रा के सन्दर्भ में परिभाषित किय गया है तथा मुद्रा पूर्ति की व्याख्या चार निर्धारक तत्वो द्वारा की गयी है-H, Cr, RRr तथा ER r (शक्तिशाली मुद्रा, मुद्रा जमा अनुपात, निर्धारित रिजर्व अनुपात तथा अतिरिक्त रिजर्व अनुपात उक्त सूत्र से यह भी ज्ञात होता है कि शक्तिशाली मुद्रा की पूर्ति जितनी अधिक होगी, मुद्रा पूर्ति भी उतनी ही अधिक होगी। मुद्रा अनुपात (Currency Ratio) निर्धारित रिजर्व अनुपात तथा अतिरक्त रिजर्व अनुपात जितना कम होता है, मुद्रा की पूर्ति उतनी ही अधिक होती है तथा इनके अधिक होने पर मुद्रा की पूर्ति कम होती है अर्थात् इनमें विपरीत सम्बन्ध होता है।

शक्तिशाली मुद्रा के निर्धारण में क्या अतिरिक्त रिजर्व को शामिल किया जाय – कुछ अर्थशास्त्रियों का विचार है कि शक्तिशाली मुद्रा एवं मुद्रा पूर्ति के निर्धारण में अतरिक्त रिजर्व को शामिल नहीं किया जाना चाहिए, किन्त मौद्रिक अर्थशास्त्री रिजर्व को शामिल करने पर जोर देते हैं तथा इसके पीछे यह तर्क देते हैं कि बैंकिंग कार्य-कलापों में अनिश्चितता के कारण, बैंक सदैव अतिरिक्त रिजर्व की मात्रा रखते हैं। अतिरिक्त रिजर्व की कितनी मात्रा रखी जायेगी यह दो बातों या दो प्रकार की लागतों पर निर्भर रहता है। पहली बात है कि अतिरिक्त रिजर्व रखने की लागत क्या है? यह बाजार की ब्याज दर पर निर्भर रहती है। दूसरी बात अथवा लागत बैंक दर है अर्थात् केन्द्रीय बैंक की ब्याज की दर जो उन व्यापारिक बैंकों से ली जाती है जो वैधानिक निर्धारित रिजर्व अनुपात को नहीं बनाये रख पाते। अतिरिक्त रिजर्व अनुपात का बैंक दर के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है तथा बाजार दर के साथ विपरीत सम्बन्ध होता है अर्थात बैंक दर बढ़ने से अतिरिक्त रिजव अनुपात में भी वृद्धि होती है तथा बाजार ब्याज दर घटने से अतिरिक्त रिजर्व अनुपात बढ़ता है एवं बाजार ब्याज दर बढ़ने से अतिरिक्त रिजर्व अनुपात घटता है। जहाँ तक मुद्रा पूर्ति का प्रश्न है, उसका अतिरिक्त रिज़र्व अनुपात के साथ विपरीत सम्बन्ध होता है। जैसे ही अतिरिक्त रिजर्व अनुपात में कमी होती है मुद्रा की पूर्ति बढ़ जाती है एवं रिजर्व अनुपात में वृद्धि होने से मुद्रा की पूर्ति घट जाती है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मुद्रा पूर्ति के निर्धारण मैं शक्तिशाली मुद्रा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसके साथ ही चलन मुद्रा अनुपात निर्धारित रिजर्व अनुपात और बैंक दर तथा बाजार की ब्याज की दर की भी मुद्रा पूर्ति निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका रहती है।

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