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हानियों की पूर्ति से क्या आशय हैं? | Set-off of Losses in Hindi

हानियों की पूर्ति से आशय
हानियों की पूर्ति से आशय

हानियों की पूर्ति से आशय | Set-off of Losses in Hindi

हानियों की पूर्ति (Set-off of Losses)- एक करदाता से किसी आय के शीर्षक के अन्तर्गत अनेक आय के स्रोत हो सकते हैं। किन्तु यह आवश्यक नहीं कि आय के सभी स्रोतों से लाभ हो। कभी-कभी आय के किसी स्रोत से हानि भी हो सकती है। अतः जब एक ही शीर्षक के अन्तर्गत विभिन्न स्रोतों से लाभ तथा हानि हुई तो लाभों में से ऐसी हानियों को पूरा कर लिया जाता है। इसे शीर्षक के अन्तर्गत हानियों की पूर्ति कहते हैं।

हानियों की पूर्ति और उन्हें आगे ले जाना- जब करदाता को किसी शीर्षक से लाभ तथा किसी शीर्षक से हानि हुई हो, तो ऐसी हानियों की पूर्ति को विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत हानियों की पूर्ति कहते हैं।

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हानियों की पूर्ति से सम्बन्धित प्रावधान (Provisions Regarding Set off of Losses)

इसके सम्बन्ध में आयकर अधिनियम के प्रावधान निम्न प्रकार हैं-

1. किसी एक शीर्षक के एक स्त्रोत की हानि, दूसरे स्रोत के लाभ से पूरी करना (धारा 70 ) (Set-off of loss from one source, against profit from an other source under any one head)- जब आय के किसी एक शीर्षक में एक स्रोत से आय तथा दूसरे स्रोत से हानि होती है, तो ऐसी हानि को उसी शीर्षक के दूसरे स्रोत से पूरा किया जा सकता है। इसे अन्तर स्रोत पूर्ति या अन्तर स्रोत समायोजन भी कहते हैं।

उदाहरण- माना किसी व्यक्ति के पास चार मकान हैं। पहले मकान से रु.20,000 की आय तथा दूसरे मकान से रु.30,000 की आय, तीसरे मकान से रु.10,000 की आय तथा चौथे मकान से रु.40,000 की हानि हो तो मकान-सम्पत्ति शीर्षक की आय रु. 20,000 की होगी। अर्थात् ऐसी हानि को मकान-सम्पत्ति की अन्य आर्यों में से घटा दिया जायेगा। क्योंकि सभी आयें तथा हानि एक शीर्षक से सम्बन्धित हैं।

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उपर्युक्त नियम के निम्नलिखित अपवाद हैं-

अपवाद (Exceptions) (A) सट्टे के व्यापार की हानियाँ (Losses from Speculative Business )- सट्टे के व्यापार की हानियों को केवल सट्टे के व्यापार के लाभों में से ही पूरा किया जा सकता है, अन्य किसी से नहीं। किन्तु सामान्य व्यापार की हानियों को सट्टे के व्यापार के लाभों से पूरा किया जा सकता है। सट्टे के व्यापार का आशय एक ऐसे अनुबन्ध से है जिसमें वास्तविक लेन-देन के बिना (बिना हस्तान्तरण किये) क्रय-विक्रय किया जाता हो। | इसमें कोई भी वस्तु (स्कन्ध तथा अंश) शामिल हैं।

(B) घुड़दौड़ के घोड़ों को रखने से हानि (Losses from Maintaining Race Horses) यदि किसी करदाता को ऐसे घोड़ों की देखभाल से कोई हानि होती है। जिनका प्रयोग घुड़दौड़ में किया जाता हैं तो ऐसी हानि को घोड़ों के रखने से हुए लाभों से ही पूरा किया जा सकता है, अन्य किसी से नहीं। घोड़ों की देखभाल से हानि का आशय उनके रखने के व्ययों से है।

(C) लॉटरी, शर्त आदि की हानि (Losses from Lottery, Betting etc.)- ऐसी आकस्मिक आयों के सम्बन्ध में किसी प्रकार का व्यय नहीं घटाये जाते। इसलिए ऐसी हानियों की पूर्ति नहीं की जा सकती।

(D) कर-मुक्त आयों से हानि (Losses from Exempt Incomes)- कर मुक्त आय के स्रोत या साधन से कोई हानि होने पर इसकी पूर्ति किसी अन्य स्रोत से नहीं की जा सकती है। जैसे-कृषि हानि।

(E) अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन पूँजी हानियाँ (Short-term Capital Losses and Long-term Capital Losses)- अल्पकालीन पूँजी हानियों को अल्पकालीन लाभों अथवा दीर्घकालीन पूँजी लाभों में से किया जा सकता है। किन्तु कर निर्धारण वर्ष 2003-04 मे दीर्घकालीन पूँजी हानि को केवल दीर्घकालीन पूँजी लाभों में से ही पूर्ति किया जा सकता है।

(F) धारा 35AD में संदर्भित निर्दिष्ट व्यापार हानि (Loss of a Specified Business reffered to in Section 35 AD)- धारा 73A के अनुसार धारा 35AD में निर्दिष्ट विनिर्दिष्ट कारोबार के सम्बन्ध में संगठित किसी हानि का किसी अन्य विनिर्दिष्ट कारोबार के लाभों और अभिलाभों से ही, यदि कोई हो समायोजन किया जाएगा, अन्यथा नहीं।

2. एक शीर्षक की हानि, दूसरे शीर्षक की आय से करना (धारा 71) (Set off of losses under one head against income under another head)- किसी एक शीर्षक के अन्तर्गत हानि होती है तथा ऐसी हानि का इसी शीर्षक के किसी अन्य स्रोत से पूरा नहीं किया जा सकता हो तो ऐसे शीर्षक की हानि को दूसरे शीर्षक की कर योग्य आय से पूरा किया जा सकता है।

कर निर्धारण वर्ष 2005-06 से व्यवसाय अथवा पेशें की हानि को वेतन से आय शीर्षक से पूरा नहीं किया जा सकता। उपर्युक्त नियम के निम्नलिखित अपवाद हैं।

अपवाद (Exceptions)-

(i) सट्टे के व्यापार की हानियों को, अन्य शीर्षक की आर्यों से पूरा नहीं किया जा सकता है; (ii) दौड़ में दौड़ने वाले घोड़ों को रखने सम्बन्धी कार्य से हुई हानि को आय के अन्य शीर्षकों से पूरा नहीं किया जा सकता है; (iii) आकस्मिक हानियों (लॉटरी, वर्ग पहेली, शर्त, जुआ, दौड़, ‘ताश के खेल आदि) की पूर्ति अन्य शीर्षकों की आय से नहीं की जा सकती है। ऐसी हानियों की पूर्ति उसी शीर्षक के अन्य स्रोत से भी नहीं की जा सकती है; (iv) कर-मुक्त आय वाले साधनो की हानि अन्य शीर्षकों की आय से पूरा नहीं की जा सकती है; (v) अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन पूँजी हानियों को अन्य शीर्षकों की आय से नहीं किया जा सकता

3. सामान्य व्यापार की हानि (धारा 72 ) (Set off of Losses of Gerneral Business)- ऐसे व्यापार की हानि को सट्टे के व्यापार की आय सहित किसी भी शीर्षक की आय से वेतन शीर्षक को छोड़कर पूरा किया जा सकता है। किन्तु ऐसे व्यापार में सट्टे के व्यापार शामिल नहीं होते हैं।

4. सट्टे के व्यापार की हानियाँ | धारा 73 (i) l (Losses of Speculation Business)- ऐसी हानियों को केवल सट्टे के व्यापार के लाभों से ही पूरा किया जा सकता है। अन्य किसी भी शीर्षक या उसके स्रोत से पूरा नहीं किया जा सकता है।

5. दौड़ के घोड़ों को रखने से हानि । धारा 74A (3)] (Losses from Maintaining Race Horses)- दौड़ के घोड़ों को रखने से हुई हानि को केवल इन्हीं क्रियाओं से पूरा जा सकता है।

6. लॉटरी, शर्त, ताश के खेल आदि की हानि (Losses from Lottery; Betting, Playing Cards etc.)- लॉटरी, शर्त, जुआ, वर्ग पहेली, ताश के खेल आदि से हुई। हानि को किसी भी आय से पूरा नहीं किया जा सकता है।

7. व्यक्तियों के समुदाय संघ की हानि (Losses from A.O.P./B.O.I.) (Association of Persons/Body of Individuals)-ऐसी हानियों को इन्हीं की आय से किसी के शीर्षक से पूरा किया जा सकता है किन्तु व्यक्तिगत या निजी आय से पूरा नहीं किया जा सकता।

8. पूँजी लाभ शीर्षक की हानि (धारा 74) (Losses from of Capital Gain)- अल्पकालीन पूँजी हानि को अल्पकालीन पूँजी लाभ या दीर्घकालीन पूँजी लाभ से पूरा किया जा सकता है किन्तु दीर्घ कालीन पूँजी हानि को केवल दीर्घकलीन पूँजी लाभ से ही पूरा किया जा सकता है।

9. साझेदारी फर्म की हानियाँ (धारा 75 ) (Losses from Partnership firm)–ऐसी हानियों को कोई भी साझेदार अपनी निजी आय से पूरा नहीं कर सकता है। ऐसी हानियों के सम्बन्ध में सामान्य व्यापार की हानियों की पूर्ति के नियम लागू होते हैं।

हानियों की विवरणी अनिवार्य रूप से दाखिल करना (धारा 80 ) [Compulsory filing of Losses returns (Sec. 80)]

करदाता की हानियों को आगे ले जाने की अनुमति है। किन्तु यह तभी किया जा सकता है। जब करदाता ने हानियों की विवरणी को दाखिल (निर्धारित समय तक) कर दिया हो।

हानियों की पूर्ति का क्रम – 1. चालू वर्ष की हानियों की पूर्ति समान शीर्षक से या नियमानुसार हो तो अन्य शीर्षक से पूरी की जायेगी 2. करदाता को पिछले वर्ष की विभिन्न हानियों की पूर्ति करनी हो, तो ऐसी स्थिति में निम्न क्रम से पूर्ति की जायेगी।

(i) चालू वर्ष के पूँजीगत वैज्ञानिक अनुसंधान व्यय एवं परिवार नियोजन पर पूँजीगत व्यय; (ii) चालू वर्ष का ह्रास; (iii) पिछली व्यापारिक हानियां (आगे लाई गई); (iv) परिवार नियोजन प्रोत्साहन हेतु अशोधित पूँजीगत व्यय; (v) अशोधित व्यय; (vi) अशोधित वैज्ञानिक अनुसंधान व्यय । 

हानियों की पूर्ति एक दृष्टि में (Set off of Losses)

  हानियाँ   हानियों की पूर्ति
1. मकान सम्पत्ति का हानि

(i)

(ii)

अन्य मकान सम्पत्ति से आय से या

किसी अन्य आय के शीर्षक की आय से

2. व्यापार अथवा पेशे से की हानि

(i)

(ii)

अन्य व्यापार अथवा पेशे की आय से या

वेतन शीर्षक के अतिरिक्त किसी अन्य आय के शीर्षक की आय से

3. सट्टे के व्यापार की हानि   सट्टे के व्यापार के लाभ से
4. निर्दिष्ट व्यापार से हानि   अन्य निर्दिष्ट व्यवसाय की आय से
5. अल्पकालीन पूँजी हानि

(i)

(ii)

अल्पकालीन पूँजी लाभ से या

दीर्घ कालीन पूँजी लाभ से

6. दीर्घकालीन पूँजी हानि   दीर्घकालीन पूँजी लाभ से
7. घुड़दौड़ के घोड़ों के स्वामित्व तथा रखरखाव से हानि   घुड़दौड़ के घोड़ों के स्वामित्व एवं रख रखाव की आय से
8. लॉटरी, वर्गपहेली, जुआ की हानि   किसी भी आय से नहीं ।

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