B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

बहुसंस्कृतिवाद की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए तथा इसकी मूलभूत परपराओं का वर्णन कीजिए।

बहुसंस्कृतिवाद की अवधारणा तथा बहुसंस्कृतिवाद की परम्पराएँ
बहुसंस्कृतिवाद की अवधारणा तथा बहुसंस्कृतिवाद की परम्पराएँ

बहुसंस्कृतिवाद की अवधारणा 

बहुसंस्कृतिवाद की अवधारणा – समाजशास्त्र में बहुसंस्कृतिवाद वह दृष्टिकोण है, जिसके अनुसार यह माना जाता है कि सांस्कृतिक भेदों को सम्मान देना चाहिए तथा इन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। यह समाजों में पाई जाने वाली सांस्कृतिक विविधता का वर्णन करने हेतु प्रयोग में लायी जाने वाली अवधारणा है। चूँकि आधुनिक समाजों में धर्म, भाषा, प्रजाति तथा ऐसे अन्य आधारों पर बहुसंख्यकों एवं अल्पसंख्यकों की विद्यमानता है, इसलिए बहुसंस्कृतिवाद प्रबल राजनीतिक संस्कृति से अल्पसंख्यकों की संस्कृति में पाई जाने वाली भिन्नता को विशेष अभिस्वीकृति प्रदान करने से सम्बन्धित एक दृष्टिकोण है।

यह अभिस्वीकृति अनेक रूपों में हो सकती है। इसमें अल्पसंख्यकों के हितों का वैधानिक संरक्षण सबसे प्रमुख माना जाता है। भारत सहित अनेक देशों में अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा हेतु संविधान में विशेष प्रावधान सन्निहित हैं तथा अनेक कानून भी इनके हितों की सुरक्षा हेतु पारित किए गए हैं, यह अल्पसंख्यकों के सम्पूर्ण राजनीतिक समुदाय में योगदान की सराहना करने के रूप में भी हो सकता है। आधुनिक युग में इस प्रकार की अभिस्वीकृति इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अनेक अल्पसंख्यक समूह किसी-न-किसी आधार पर पूर्व में जन-सुविधाओं से हजारों वर्षों तक वंचित रहे हैं। भारत में अनुसूचित जातियाँ (जिन्हें पहले कभी अस्पृश्य एवं अपवित्र मानकर उनका बहिष्कार किया जाता था) ऐसे समूहों का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। यदि ऐसे सीमान्त एवं हजारों वर्षों से वंचित समूहों को संवैधानिक संरक्षण प्रदान नहीं किया जाएगा तो उनका राष्ट्रीय मुख्यधारा में एकीकरण नहीं हो पाएगा तथा वे सदैव अन्य समूहों से मानव विकास के सूचकों की दृष्टि से पिछड़े ही रहेंगे।

आज अनेक प्रजातान्तिक देशों के लोगों में विभिन्न सांस्कृतिक दृष्टिकोण, प्रथाएँ, रीति रिवाज एवं जीवन के ढंग पाए जाते हैं। यदि ऐसे लोगों को राष्ट्रीय धारा से एकीकृत करना है तो उनकी इन भिन्नताओं को स्वीकार करना होगा। इसीलिए बहुसंस्कृतिवाद आधुनिक समाजों में सांस्कृतिक बहुलवाद के प्रति एक प्रतिक्रिया भी है तथा साथ ही उन्हें उनके साथ हुये पूर्व में बहिष्कार, भेद भाव तथा शोषण की क्षतिपूर्ति करने का प्रयास भी है। अनेक अल्पसंख्यक सांस्कृतिक समूहों का पूर्व में केवल बहिष्कार होता रहा है, अपितु उनके योगदान एवं पहचान का अवमूल्यन भी होता रहा है। बहुसंस्कृतिवाद समाज के विविधि समूहों के लोगों के दृष्टिकोण एवं उनके योगदान को समावेश कर उन्हें अपनी अलग पहचान बनाए रखने की स्वीकृति प्रदान करता है। यदि कोई समाज ऐसे अल्पसंख्यक समूहों पर प्रबल समूह के सांस्कृतिक मूल्यों को थोपने का प्रयास करता है तो इससे न केवल विभिन्न समूहों में एक-दूसरे के प्रति डर एवं आशंका की भावना विकसित होती है, अपितु यह राष्ट्रीय एकीकरण की दृष्टि से भी अत्यन्त घातक हो सकता है। जो समूह वे स्वतः प्रबल संस्कृति में एकीकृत हो गए हैं, उनमें आज भावनाएँ विद्यमान नहीं हैं, जो एकीकृत न होने वाले समूहों में विद्यमान हैं। इसका उदाहरण भारत की अनेक जनजातियाँ हैं, जिन्होंने संस्कृतिकरण की प्रक्रिया से जातीय संस्तरण में एक निश्चित स्थान प्राप्त कर लिया है तथा आज वे हिन्दू संस्कृति का अंग बन गए हैं।

बहुसंस्कृतिवाद उदारवादी प्रजातान्त्रितक देशों में एक चुनौती माना जाता है। प्रजातान्त्रिक व्यवस्था की यह मान्यता होती है कि सभी नागरिकों को एकसमान कानूनी अधिकार उपलब्ध हो तथा उन पर एक ही कानून लागू हो। उनके साथ किसी अन्य धर्म, जाति या प्रजाति का होने के नाते किसी प्रकार का भेदभाव न किया जाए। ऐसी मान्यता को जातीय एवं प्रजातीय संस्तरण के आधार पर विभाजित परम्परागत समाजों में लागू करना वास्तव में एक चुनौती है। आज भी भारत में समान नागरिक संहिता (Uniform civil code) को लागू किया जाना इसीलिए सम्भव नहीं हो पाया है।

बहुसंस्कृतिवाद की परम्पराएँ-

बहुसंस्कृतिवाद की एक कल्पित कथा इसे केवल मात्र राजनीतिक रुख के रूप में स्वीकार करने अर्थात् सांस्कृतिक विविधता को स्वीकार करने तथा खुशी मनाने के विश्वास से सम्बन्धित है। इसके विपरीत, बहुसंस्कृतिवाद एक वैचारिकीय विस्तार है, जिससे विविधता को चुनौती देने के अनेक प्रकार के उपागम सन्निहित होते हैं। सभी प्रकार के बहुसंस्कृतिवाद ‘एकता एवं विविधता’ के विश्वास को समाहित करते हैं अर्थात् सांस्कृतिक अन्तरों को केवल मात्र एकल राजनीतिक समाज में निहित रखने के पक्षधर हैं। बहुसंस्कृतिवाद के बारे में विविध स्पष्टीकरणों से इसकी निम्नलिखित तीन परम्पराएँ स्पष्ट रूप में उभरी हैं-

1. बहुलवादी बहुसंस्कृतिवाद (Pluralist multiculturalism) –

इसके समर्थक एकता के स्थान पर विविधता पर अधिक बल देते हैं। इसमें विविधता को स्वयं में एक मूल्य के रूप में स्वीकार किया जाता है अर्थात् विभिन्न संस्कृतियों को एकसमान रूप में वैधानिक माना जाता है। फिर भी यह बहुसंस्कृतिवाद ऐसा है, जो स्पष्ट रूप में पहचान की रणनीति को लगाता है। यह सांस्कृति एवं अल्पसंख्यक समूहों के दमन को अस्वीकार कर निरपेक्ष उदारवाद को भी इसीलिए नकार देता है कि उदारवादी प्रजातान्त्रिक मूल्य अपने विरोधियों को प्राथमिकता नहीं देते हैं। इसके समर्थकों का मत है कि केवल सांस्कृतिक सम्बद्धता की सबल एवं सार्वजनिक स्वीकृति लोगों को अपने समाज में सहभागिता हेतु प्रेरित करती है ।

2. सर्वदेशीय बहुसंस्कृतिवाद (Cosmopolitan multiculturalism)-

बहुसंस्कृति वाद की यह परम्परा बृहत् वैश्विक न्याय आन्दोलनों के मानकों के अनुरूप स्थानीय (मूल) लोगों के अधिकारों एवं संस्कृतियों की पक्षधर है तथा सांस्कृतिक मिश्रण के गुणों पर बल देती है। इससे न केवल लोगों के राजनीतिक क्षितिज व्यापक बनते हैं, अपितु वैश्विक नागरिकता का आधार भी विकसित होता है। इस परम्परा के समर्थकों को ‘चुनने एवं मिश्रित करने वाले (Pick and Mix) अथवा ‘लाइट बहुसंस्कृतिवाद’ (Multiculturalism life) भी कहा जाता है, जिसका अर्थ यह है कि सांस्कृतिक पहचान एक जीवन शैली के चयन जीवन शैलियों की श्रृंखला का चयन है न कि वह जो, समाज या इतिहास में गहरी जड़ें रखता हो।

3. उदारवादी बहुसंस्कृतिवाद (Liberal multiculturalism ) –

यह परम्परा बहुसंस्कृति को एक जटिल वैचारिक प्रघटना मानती है। यह उदारवादियों द्वारा बहुलवाद अपनाकर सार्वभौमिकतावाद से दूरी बनाए रखने का प्रयास है। उदारवादी बहुसंस्कृतिवाद आधुनिक निष्पक्षता (Modern neutrality) के विचार को सम्मिलित कर इस धारणा पर आधारित है कि उदारवाद किसी विशेष प्रकार के मूल्य कुलकों को निर्धारित न कर, व्यक्तियों और समूहों को अपने नैतिक निर्णय लेने की अनुमति प्रदान करता है। फिर भी विविधता ‘उदारता ढाँचे के भीतर विविधता’ (Diversity within a liberal framework) के रुझान वाली होती है तथा उदारवादी उन सांस्कृतिक परम्पराओं को अनुमोदित करने में कठिनाई अनुभव करते हैं, जो अपने आप में गैर-उदारवादी एवं शोषणकारी होती है। इतना ही नहीं, उदारवादी सामान्यतया निजी क्षेत्र में नागरिक एकता के महत्व पर तो बल देते हैं, परन्तु सार्वजनिक क्षेत्र को एकीकरण का क्षेत्र मानते हुए छोड़ देते हैं। उदारवादियों का यह विश्वास है कि उदारवादी प्रजातन्त्र की आधुनिक युग में इसलिए विशेष उपयोगिता है क्योंकि इसमें वैयक्तिक स्वायत्तता को संरक्षण मिलता है तथा यह केवल मात्र ऐसी राजनीतिक व्यवस्था है, जिसमें विविधता को संरक्षण प्राप्त होता है ।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider.in does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment