स्वतन्त्रता से पूर्व प्राथमिक शिक्षा
Primary Education Before Independence
भारत में लगभग एक शताब्दी तक अंग्रेजों ने शासन किया। इसका परिणाम यह हुआ कि अनिवार्य शिक्षा की ओर भारत में कोई प्रगति न हो सकी। अंग्रेजी शासक शिक्षा की ओर उदासीन थे। अनेक विद्वानों एवं समाज सुधारकों ने सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया परन्तु तत्कालीन सरकार पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंग्रेजों की विचारधारा वैसी की वैसी बनी रही। केवल भारतीय विद्वानों ने ही नहीं बल्कि कुछ अंग्रेजी विद्वानों ने भी अनिवार्य शिक्षा में योगदान दिया। इसका विवरण निम्नलिखित प्रकार से है-
- विलियम एडम्स ने सन् 1838 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में शिक्षा के अनिवार्य बनाने पर बल दिया गया।
- कैप्टन विंगेट ने सन् 1852 में अनिवार्य शिक्षा के लिये आर्थिक सहायता प्रदान करने की व्यवस्था की। उसने 5% शिक्षा कर लगाने का सुझाव दिया।
- टी. सी. होप (T.C. Hope) नामक विद्वान ने अनेक विद्यालय खोलने के लिये कानून बनाया।
- सन् 1890 तक भारत में राष्ट्र चेतना की जागृति हुई। इसके फलस्वरूप भारतीयों का ध्यान स्वत: अनिवार्य शिक्षा की ओर गया तथा उनके द्वारा अनेक प्रयत्न किये गये।
- सन् 1885 में भारत में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई तब से शिक्षा के विकास के लिये अनेक प्रयत्न किये गये।
- सन् 1906 में बड़ौदा नरेश ने सम्पूर्ण रियासत में अनिवार्य शिक्षा लागू कर दी।
- सन् 1910 में गोपाल कृष्ण गोखले ने एक बिल पेश किया, जिसमें 6 वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक के छात्रों के लिये अनिवार्य शिक्षा का प्रस्ताव रखा गया था परन्तु यह बिल पास न हो सका।
- सन् 1919 में हर्टाग कमेटी ने अनिवार्य शिक्षा सम्बन्धी अनेक तथ्य प्रकाशित किये तथा अनेक समस्याओं पर विचार किया।
- सन् 1939 में भारत के कई प्रान्तों में कांग्रेस मन्त्रिमण्डल बना। उस समय शिक्षा को अनिवार्य बनाने का प्रयत्न किया गया परन्तु कुछ महीनों पश्चात् ही कांग्रेस मन्त्रिमण्डल को त्याग पत्र देना पड़ा तथा यह प्रयास भी अधूरा रह गया।
- सन् 1944 में सार्जेण्ट आयोग ने भी प्राथमिक शिक्षा के सम्बन्ध में एक योजना बनायी परन्तु यह योजना भी कार्यान्वित न हो सकी।
राष्ट्रीय आन्दोलन के समय राष्ट्रीय शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिये भारत में प्राथमिक शिक्षा की अनिवार्यता एवं इसे निःशुल्क रूप से प्रदान करने के भरपूर प्रयास किये जाने लगे। इनमें सर्वाधिक सराहनीय एवं अग्रणीय कार्यकर्त्ता गोपालकृष्ण गोखले तथा नरेश सयाजीराव गायकवाड़ थे। इनके प्रयासों का विस्तृत विवरण नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है-
1. महाराज सयाजीराव गायकवाड़ के प्रयास (Efforts-of Maharaja Saya ji Rao Gaikwad)- बड़ौदा नरेश महाराज सयाजीराव गायकवाड़ ने अपने राज्य की प्रजा की प्राथमिक शिक्षा के लिये भगीरथ प्रयत्न किये। इन प्रयलों ने तत्कालीन ब्रिटिश शासकों को भी स्तम्भित कर दिया था। मार्च 1892 में उन्होंने एक राजाज्ञा घोषित की कि अमरेली नगर के अनुसार ताल्लुका के नौ ग्रामों में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया जाय। इस राजाज्ञा के सात से दस वर्ष के समस्त बालक-बालिकाओं को प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के लिये विद्यालय में प्रवेश लेने की बाध्यता घोषित कर दी गयी। बड़ौदा नरेश ने इन प्रारम्भिक प्रयासों की अत्यधिक सफलता के फलस्वरूप इसे क्रमश:52 ताल्लुकों में अनिवार्य बना दिया गया। निरन्तर पन्द्रह वर्षों तक इस प्रयोग को बनाये रखने के बाद सन् 1906 में एक अधिनियम बनाकर अनिवार्य शिक्षा को सम्पूर्ण बड़ौदा राज्य में लागू कर दिया गया। बड़ौदा नरेश के ये प्रारम्भिक प्रयास भारतीय प्राथमिक शिक्षा के इतिहास में अत्यधिक स्तुतीय हैं।
2. गोपालकृष्ण गोखले का प्रस्ताव (Resolution of Gopal Krishna Gokhale, 1910)- बड़ौदा नरेश के प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी गम्भीर प्रयासों से राष्ट्रवादी नेताओं का मनोबल अत्यधिक बढ़ गया था। वे निरन्तर इस प्रयोग को सरकार द्वारा सम्पूर्ण राष्ट्र के लिये लागू करने के लिये बल देने लगे किन्तु सरकार की इस दिशा में कोई विशेष रुचि नहीं थी, अतः वह टालमटोल करती रही। इस स्थिति से जूझने का कठोर प्रयास गोपालकृष्ण गोखले ने किया। वे इस समय केन्द्रीय धारा सभा (Imperial Legislative Assembly) के सदस्य थे तथा अपने इन अधिकारों का प्रयोग अनिवार्य शिक्षा के संकल्प को पूरा करने हेतु तथा ब्रिटिश शासकों को बाध्य करने के लिये करते रहे।
गोखले ने 19 मार्च, 1910 को केन्द्रीय धारा सभा में अपना विस्फोटक प्रस्ताव प्रस्तुत करते हुए कहा-“यह सभा सिफारिश करती है कि सम्पूर्ण देश में प्राथमिक शिक्षा को निःशुल्क और अनिवार्य बनाने का कार्य प्रारम्भ किया जाय और इस विषय में निश्चित प्रस्तावों का निर्माण करने के लिये सरकारी और गैर-सरकारी अधिकारियों का एक संयुक्त आयोग शीघ्र ही नियुक्त किया जाय।” गोखले ने अपने प्रस्ताव में तात्कालिक प्राथमिक शिक्षा के दोषों, अनुपयुक्तता तथा संख्यात्मक रूप में विद्यालयों के अभाव तथा गुणात्मक शिक्षा की दुर्दशा की विस्तृत विवेचना की थी। उन्होंने तात्कालिक साक्षरता प्रतिशत (6%) को राष्ट्र के लिये कलंक बताया। प्राथमिक शिक्षा में उस समय बालकों एवं बालिकाओं के क्रमश: 23.8 तथा 2.7 प्रतिशत नामांकन के सन्दर्भ में ब्रिटिश सरकार की नीतियों की घोर भर्त्सना की। गोखले के प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी प्रस्ताव के मूल बिन्दु निम्नलिखित हैं-
- प्राथमिक शिक्षा की देखरेख के लिये एक पृथक् मन्त्री की नियुक्ति की जाये। इस प्रकार केन्द्र में प्राथमिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिये पृथक् विभाग की स्थापना की जाय।
- प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य एवं नि:शुल्क बनाने के लिये आवश्यक व्यय को स्थानीय संस्थाओं तथा सरकार के मध्य 1 :2 के अनुपात में सहभागिता की जाये।
- राष्ट्र के पिछड़े क्षेत्रों में जहाँ 33 प्रतिशत से भी कम छात्र प्राथमिक शिक्षा के लिये नामांकित हैं, वहाँ बालकों के लिये अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा लागू की जाये।
उपर्युक्त प्रस्तावों के प्रति सहानुभूतिपूर्वक विचार-विमर्श करने के आश्वासन के फलस्वरूप गोखले ने यह प्रस्ताव वापस ले लिया।
गोखले का प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी विधेयक-1911 (Gokhale’s Primary Education Related Bill-1911)- ब्रिटिश सरकार के खोखले आश्वासन से विक्षुब्ध होकर गोखले ने 16 मार्च, 1971 को केन्द्रीय धारा सभा के समक्ष प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी अपना विधेयक (Bill) प्रस्तुत किया। इस विधेयक को प्रस्तुत करते हुए गोखले ने कहा था-“इस विधेयक का उद्देश्य- देश की प्राथमिक शिक्षा प्रणाली में अनिवार्यता के सिद्धान्त को क्रमश: लागू करना है।” गोखले का विधेयक उनके पूर्व प्रस्तावों का संशोधित रूप था। इसमें निम्नलिखित बिन्दुओं की चर्चा की गयी थी-
- अनिवार्य शिक्षा का अधिनियम केवल उन स्थानीय बोर्डो (Local boards) के क्षेत्रों में लागू किया जाय, जहाँ बालकों एवं बालिकाओं का एक निश्चित प्रतिशत प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर रहा हो। यह प्रतिशत गवर्नर जनरल की काउन्सिल के द्वारा निश्चित किया जाये।
- इस अधिनियम को लागू करने से पूर्व स्थानीय बोर्डों द्वारा सरकार की अनुमति प्राप्त की जाये।
- इस अधिनियम को स्थानीय बोर्डों द्वारा अपने सम्पूर्ण या किसी निश्चित क्षेत्र में लागू किया जाये।
- स्थानीय बोडौँ एवं सरकार द्वारा प्राथमिक शिक्षा का व्यय भार 1:2 के अनुपात में वहन किया जाये।
- स्थानीय बोर्डों को शिक्षा-कर (Education tax) लगाने के लिये छूट दी जाये।
- छ: से दस वर्ष की आयु के समस्त बालकों को विद्यालयों में प्रवेश के लिये माता-पिता को बाध्य किया जाये।
- जिन बालकों के अभिभावकों की मासिक आय 100 रुपये से कम है, उनसे शिक्षा शुल्क न लिया जाय।
- श्रमिक रूप में बालिकाओं के लिये प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य घोषित किया जाये।
17 मार्च, सन् 1912 को केन्द्रीय धारा सभा में विधेयक पर तीक्ष्ण वाद-विवाद हुआ। अन्त में इस विधेयक को हार का सामना करना पड़ा। सरकारी प्रवक्ता सर हार्टकोर्ट बटलर (Sir Hart court Butler) ने गोखले के विधेयक के विरुद्ध निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये-
- प्रान्तीय सरकारें ऐसे विधेयक को स्वीकार करने के लिये मानसिक तौर से तैयार नहीं हैं।
- शिक्षित भारतीय वर्ग भी इसका विरोध कर रहे हैं।
- राष्ट्र अनिवार्य शिक्षा के लिये किसी भी स्थिति में तैयार नहीं है।
- जनसाधारण अभी अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा के प्रति आकृष्ट नहीं हैं।
- अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा के क्रियान्वयन में अनेक गम्भीर प्रशासकीय कठिनाइयाँ उपस्थित हो जाती हैं।
- स्थानीय संस्थाएँ प्राथमिक शिक्षा के लिये नवीन कर देने की स्थिति में नहीं हैं।
प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी सरकारी प्रस्ताव-1913 (Government Resolution on Primary Educatin-1913)- लॉर्ड कर्जन की राष्ट्र विरोधी नीति, राष्ट्रीय नेतृत्व में शैक्षिक चेतना, गोपालकृष्ण गोखले के प्राथमिक शिक्षा के विधेयक को सरकार द्वारा अमान्य घोषित कर देना तथा 12 दिसम्बर, 1911 को अंग्रेज सम्राट जार्ज पंचम् का भारत यात्रा के समय दिया गया अभिभाषण आदि सभी कारणों से ब्रिटिश सरकार को अपनी प्राथमिक शिक्षा नीति को स्पष्ट करने के लिये बाध्य होना पड़ा। इसे सरकार ने एक दस्तावेज के रूप में प्रकाशित किया। इस दस्तावेज के प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी नीति-निर्देशों को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है, जो कि अनलिखित हैं-
- पूर्व प्राथमिक शिक्षा के विस्तार के लिये अधिकाधिक विद्यालयों की स्थापना की जाये। इसमें क्षेत्रीय भाषाओं तथा क्षेत्रीय आवश्यकता के अनुरूप पाठ्यक्रमों का समावेश किया जाय।
- उच्च प्राथमिक विद्यालयों की आवश्यकतानुसार स्थापना की जाये। निम्न प्राथमिक विद्यालयों को उन्नत करके उच्च विद्यालयों में परिवर्तित किया जाय।
- स्थानीय निकायों द्वारा अधिकाधिक स्कूलों की स्थापना की जाये तथा व्यक्तिगत संस्थाओं को प्रोत्साहन दिया जाय ।
- प्राच्य हिन्दू एवं मुस्लिम शिक्षा संस्थाओं के लिये उदार सहायता- अनुदान राशि की व्यवस्था की जाये।
- निजी विद्यालयों के व्यवस्थित निरीक्षण का प्रबन्ध किया जाय तथा पर्याप्त निरीक्षकों की नियुक्ति की जाये।
- विद्यालयों में क्षेत्रीय शिक्षकों को नियुक्त किया जाये।
- शिक्षक-प्रशिक्षण की अवधि एक वर्ष हो तथा न्यूनतम योग्यता मिडिल हो।
- ग्रीष्मकालीन शिविरों में शिक्षकों के सेवाकालीन प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाये।
प्राथमिक शिक्षा के अतिरिक्त अंग्रेजों द्वारा अपने शासन के प्रारम्भ से ही दो अन्य संस्थान भी स्थापित किय गये थे। इनमें सन् 1780 में कलकत्ता मदरसा खुला और सन् 1791 में बनारस रेजीडेन्ट जोनाथन डंकन ने बनारस संस्कृत कॉलेज को प्रारम्भ किया।
Important Links
- समाज शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप में | Society as an Effecting Factor of Education
- विद्यालय शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप में | The School as an Effecting Factor of Education
- राज्य शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप में | State as an Effecting Factors of Education
- परिवार शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप में | Family As an Affecting Factors of Education
- मानवीय मूल्यों की शिक्षा की आवश्यकता | Need of Education of Human Value
- मानवीय मूल्यों की शिक्षा के सिद्धान्त | मानवीय मूल्यों की शिक्षा के उद्देश्य
- मानवीय मूल्यों के विकास में विद्यालय की भूमिका | Role of School in Development of Human Values
- मानवीय मूल्यों की शिक्षा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि | Historical Background of Education of Human Values
- मानवीय मूल्यों की शिक्षा की अवधारणा एवं अर्थ | Concept and Meaning of Education of Human Values
- मानवीय मूल्य का अर्थ | Meaning of Human Value
- मानवीय मूल्यों की आवश्यकता तथा महत्त्व| Need and Importance of Human Values
- भूमण्डलीकरण या वैश्वीकरण का अर्थ तथा परिभाषा | Meaning & Definition of Globlisation
- वैश्वीकरण के लाभ | Merits of Globlisation
- वैश्वीकरण की आवश्यकता क्यों हुई?
- जनसंचार माध्यमों की बढ़ती भूमिका एवं समाज पर प्रभाव | Role of Communication Means
- सामाजिक अभिरुचि को परिवर्तित करने के उपाय | Measures to Changing of Social Concern
- जनसंचार के माध्यम | Media of Mass Communication
- पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता की आवश्यकता एवं महत्त्व |Communal Rapport and Equanimity
- पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता में बाधाएँ | Obstacles in Communal Rapport and Equanimity
- प्रधानाचार्य के आवश्यक प्रबन्ध कौशल | Essential Management Skills of Headmaster
- विद्यालय पुस्तकालय के प्रकार एवं आवश्यकता | Types & importance of school library- in Hindi
- पुस्तकालय की अवधारणा, महत्व एवं कार्य | Concept, Importance & functions of library- in Hindi
- छात्रालयाध्यक्ष के कर्तव्य (Duties of Hostel warden)- in Hindi
- विद्यालय छात्रालयाध्यक्ष (School warden) – अर्थ एवं उसके गुण in Hindi
- विद्यालय छात्रावास का अर्थ एवं छात्रावास भवन का विकास- in Hindi
- विद्यालय के मूलभूत उपकरण, प्रकार एवं रखरखाव |basic school equipment, types & maintenance
- विद्यालय भवन का अर्थ तथा इसकी विशेषताएँ |Meaning & characteristics of School-Building
- समय-सारणी का अर्थ, लाभ, सावधानियाँ, कठिनाइयाँ, प्रकार तथा उद्देश्य -in Hindi
- समय – सारणी का महत्व एवं सिद्धांत | Importance & principles of time table in Hindi
- विद्यालय वातावरण का अर्थ:-
- विद्यालय के विकास में एक अच्छे प्रबन्धतन्त्र की भूमिका बताइए- in Hindi
- शैक्षिक संगठन के प्रमुख सिद्धान्त | शैक्षिक प्रबन्धन एवं शैक्षिक संगठन में अन्तर- in Hindi