B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

राज्य शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप में | State as an Effecting Factors of Education

राज्य शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप
राज्य शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप

 राज्य शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप में
State as an Effecting Factors of Education

विद्यालय, परिवार तथा समाज के समान राज्य भी एक महत्त्वपूर्ण अभिकरण है जो शिक्षा के विकास में सहायक है। यह एक निश्चित समुदाय है जिसके कुछ निश्चित कार्य एवं उद्देश्य होते हैं। यह व्यक्तियों के सेवक तथा प्रबन्धक के रूप में कार्य करता है। इसके अन्तर्गत एक मानव समूह जो सरकार के रूप में होता है उसे कुछ विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं। यह सर्वोच्च तथा स्वतन्त्र होता है। वह नागरिकों के विकास एवं शासन की सुचारुता के लिये शिक्षा की व्यवस्था करता है। राज्य की परिभाषाएँ अग्रलिखित प्रकार हैं-

(1) गार्नर के शब्दों में-“राज्य मनुष्यों के उस बहुसंख्यक समुदाय या संगठन को कहते हैं जो स्थायी रूप से किसी निश्चित भू-भाग पर रहता है, जिसकी ऐसी संगठित सरकार है जो बाहरी नियन्त्रण से पूर्ण अथवा स्वतन्त्र है और जिसकी आज्ञा का पालन अधिकांश जनता स्वभावभिक रूप से करती है।”

(2) जॉन डीवी ने कहा है-“राज्य जन समूह का संगठन है जो जनता की रुचियों के संरक्षण को अपने सदस्यों द्वारा ही प्रवाहित करता है।”

राज्य का महत्त्व (Importance of State)

राज्य का शिक्षा की दृष्टि से निम्नलिखित महत्त्व है-

  1. राज्य बालक के लिये सुरक्षा प्रदान करता है।
  2. बालक के लिये उचित शिक्षा का प्रबन्ध करता है।
  3. बालक को शान्तिपूर्ण वातावरण प्रदान करता है।
  4. बालक को आदर्श नागरिक बनने के अवसर प्रदान करता है।
  5. राज्य भावात्मक एकता तथा संगठन का पाठ पढ़ाता है।
  6. बालक में नेतृत्व की भावना का विकास करता है।
  7. बालक से सम्बन्धित माता-पिता, परिवार एवं समाज के हित की रक्षा करता है।
  8. समाज के भ्रष्टाचारों पर रोक लगाता है।
  9. शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम तथा विधियाँ निर्धारित करके शिक्षा पर नियन्त्रण रखता है।
  10. बालकों के लिये नि:शुल्क पुस्तकों तथा पौष्टिक आहार की व्यवस्था करता है।
  11. आर्थिक व्यय की पूर्ति करता है क्योंकि शिक्षा अनुत्पादक व्यय है। शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप में राज्य की भूमिका को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

1. विद्यालयों की स्थापना (Establishment of schools)- बालकों को उचित नागरिकता के प्रशिक्षण के लिये उनका शिक्षित होना आवश्यक है। अतः राज्य आवश्यक स्थानों पर विद्यालयों की स्थापना करता है, जिससे उस क्षेत्र के बालकों को उचित तथा निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जा सके। राज्य की ओर से प्राथमिक, जूनियर हाईस्कूल, माध्यमिक तथा विश्वविद्यालयों की स्थापना की जाती है। बालकों के वैज्ञानिक, व्यावसायिक तथा तकनीकी ज्ञान के लिये भी विद्यालयों को स्थापित किया जाता है। अत: यह कहा जा सकता है कि बालक की शिक्षा का पूर्ण उत्तरदायित्व विद्यालय पर है।

2. निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा (Free and compulsory education)- राज्य को निश्चित स्तर तक निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिये, जिससे निर्धन वर्ग भी शिक्षा प्राप्त कर सके और अपने बालकों को नियमित रूप से विद्यालय में भेज सके।

3. शिक्षा के उद्देश्यों का निर्माण (Providing aims and objectives of education)- राज्य अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण करता है और यह निरीक्षण करता है कि शिक्षा के उद्देश्य किस सीमा तक प्राप्त हो गये हैं ? उद्देश्यों के निर्धारण में बालक के सर्वांगीण विकास की ओर ध्यान दिया जाता है।

4. पाठ्यक्रम निर्माण (Planning of curriculum)- विकसित समाज के अनुसार ही पाठ्यक्रम का निर्धारण किया जाना चाहिये क्योंकि जटिल तथा स्थिर पाठ्यक्रम बालक की नवीनतम सभी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाता। अत: उसमें लचीलापन तथा समय-समय पर परिवर्तन आवश्यक है।

5.आर्थिक सहायता (Financial assistance)- राज्य को नवीन विद्यालय की स्थापनाके साथ-साथ व्यक्तिगत संस्थाओं को भी महत्त्व देना चाहिये। उनका सामंजस्य सरकारी विद्यालयों के साथ करना चाहिये तथा समय-समय पर उन्हें आर्थिक सहायता भी देनी चाहिये, जिससे वे आवश्यक उपकरण, फर्नीचर इत्यादि का प्रबन्ध कर सकें।

6.आयोगों का गठन (Appointment of commission)- राज्य को क्षेत्रों के अनुसार आयोगों का गठन करना चाहिये, जिससे सभी विद्यालयों की समुचित देखभाल की जा सके और उनमें होने वाली अव्यवस्थाओं को दूर किया जा सके।

7. शैक्षिक अनुसन्धान (Action research)- शिक्षा के क्षेत्र में नवीन विधियों तथा क्षेत्रों का विकास आवश्यक है। अतः राज्य को चाहिये कि अध्यापक को अनुसन्धान की आवश्यक सामग्री की सहायता प्रदान करनी चाहिये। कक्षा में अनुसन्धान पर बल देना चाहिये, जिससे नवीन विधियों का अन्वेषण हो सके और शिक्षा का स्तर ऊँचा उठ सके।

8. पत्राचार शिक्षा व्यवस्था (Provision of correspondence education)- देश के उन भागों में जिनमें विद्यालयों की कमी है। जहाँ शीघ्र इतने विद्यालयों को नहीं खोला जा सकता है। सरकार को पत्राचार शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिये, जिसका उपयोग सेवारत
व्यक्ति भी कर सकता है।

9. योग्य शिक्षकों की व्यवस्था (Appointment of noble teachers)- शिक्षा की समुचित व्यवस्था के लिये उपयुक्त, प्रशिक्षित अध्यापकों की नियुक्ति करनी चाहिये जो बालक के स्वाभाविक विकास के साथ-साथ उसका सर्वांगीण विकास कर सकें। अध्यापक को सम्पूर्ण सम्बन्धित विषय का ज्ञान होना चाहिये तभी वे बालक को ठीक प्रकार से पढ़ा सकते हैं।

10. प्रशिक्षण विद्यालयों की स्थापना (Establishment of training schools)- राज्य का यह कर्त्तव्य है कि वह आवश्यकतानुसार अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिये प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना करें। जिनमें शिक्षण की आधुनिकतम विधियों का शिक्षक को ज्ञान कराया जाय तथा बीच-बीच में रिफ्रेशर कोर्स की भी व्यवस्था की जानी चाहिये।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider.in does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment