संस्कृति एवं शैक्षिक मूल्य पर टिप्पणी लिखिए।
संस्कृति एवं शैक्षिक मूल्य- मूल्य का शाब्दिक अर्थ है कीमत, महत्त्व, योग्यता, उपयोगिता एवं श्रेष्ठता। मूल्य वस्तुतः व्यक्ति के दृष्टिकोण पर आश्रित होता है। यदि किसी व्यक्ति को कोई वस्तु उपयोगी लगती है, तो उस वस्तु में उस व्यक्ति की रुचि है तो वह उसके लिए मूल्यवान यदि किसी को वह वस्तु अच्छी नहीं लगती तो वह वस्तु उसके लिए मूल्य रहित है।
रूप शैक्षिक मूल्य का अर्थ- ऐसी क्रियाएँ जो शिक्षा के क्षेत्र में उपयोगी होती हैं, उनका निश्चित से कुछ न कुछ मूल्य होता है। शिक्षा प्रक्रिया में पाठ्यक्रम का चयन, शिक्षण विधि का प्रयोग, अनुशासन पालन के नियम आदि क्रियाएँ इसीलिए की जाती हैं, क्योंकि इनकी उपयोगिता होती है। बालक की शिक्षा में इनका कुछ मूल्य होता है। शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों मिलकर उपयोगिता की दृष्टि से जिन कार्यों को करते हैं, वास्तव में वे ‘शैक्षिक मूल्य’ ही होते हैं। कतिपय शिक्षा शास्त्रियों के अनुसार तो शिक्षा के उद्देश्य ही ‘शैक्षिक मूल्य’ होते हैं। इसी सम्बन्ध में ब्रूवेकर का कथन इस प्रकार हैं-
“शिक्षा के उद्देश्यों को निर्धारित करना शैक्षिक मूल्यों को निर्धारित करना है।”
बूवेकर के अनुसार शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को गुण एवं उपयोगिता को प्राप्त करना होता है। वस्तुतः शैक्षिक मूल्य शिक्षा की उस एकता, उपयोगिता एवं शिक्षार्थी को आत्म साक्षात्कार तथा वांछित विकास के लिए अध्ययन कार्य में लगे रहने की प्रेरणा देते हैं। शैक्षिक मूल्यों की उपयोगिता एवं उसके प्रति सम्मान भावना व्यक्ति की रुचि पर निर्भर हैं। इसीलिए कुछ विचारक शैक्षिक मूल्यों को आत्मनिष्ठा भी मानते हैं। शिक्षा के पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि आदि को उत्तम समझना व्यक्ति विशेष के दृष्टिकोण पर अवलम्बित है। जो व्यक्ति इन्हें जितनी उत्तम दृष्टि से देखता है, इसके लिए वे उतने ही मूल्यवान हैं। इसी आधार पर शैक्षिक मूल्यों को आत्मनिष्ठ कहा जाता है। इसके विपरीत कुछ विद्वान शैक्षिक मूल्यों को वस्तुनिष्ठ मानते हैं। उनका कथन है कि किसी वस्तु या व्यक्ति के मूल्य को कोई व्यक्ति माने या न माने, उसमें यदि कोई विशेष गुण विद्यमान है तो वह उसका मूल्य ही है। वस्तु का गुण, महत्त्व या मूल्य वस्तुतः सामाजिक वातावरण पर आश्रित होता है। व्यक्ति की रुचि या उसका वैयक्तिक दृष्टिकोण उस वस्तु के मूल्य को समाप्त नहीं कर सकता। वैयक्तिक दृष्टि से शैक्षिक मूल्यों के लिए बाह्य वातावरण तथा वैयक्तिक अभिरुचि दोनों का महत्त्व होता है।
मूल्यों के प्रकार
ब्रूवेकर के अनुसार संस्कृति एवं शैक्षिक मूल्यों का वर्गीकरण निम्नवत् प्रकार से हैं-
तात्कालिक मूल्य- जो मूल्य हमारी इच्छाओं तथा आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं, उन्हें तात्कालिक मूल्य कहते हैं। ये मूल्य केवल उन्हीं वस्तुओं से प्राप्त होते हैं जिससे हमारा सम्बन्ध होता है। इन मूल्यों की प्राप्ति का तात्पर्य इच्छाओं की तृप्ति या संतुष्टि होती है। उदाहरण के तौर पर एक खिलाड़ी व्यक्ति की तृप्ति खेलों के देखने से ही होगी। इस प्रकार चित्रकला के प्रति रुचि रखने वाला छात्र चित्र प्रदर्शनी देखने, चित्र बनाने तथा उसमें रंग भरने को तत्काल तृप्त कर देते हैं, इसीलिए उन्हें तात्कालिक मूल्य कहा जाता है।
इच्छित अथवा मध्यस्थ मूल्य- व्यक्ति की या बालक की इच्छायें अनेक होती हैं। विद्यालय में भी अनेक क्रियायें होती हैं, विभिन्न पाठ्यक्रम होते हैं, अनिवार्य तथा वैकल्पिक विषय भी अनेक होते हैं। बालक इन सभी को प्राप्त करने में असमर्थ होता है। इन क्रियाओं में से उसे चयन करना पड़ता है। छात्र सभी विषयों में से केवल महत्त्वपूर्ण विषयों को छाँट लेता है। छाँटे हुए विषयों में वह रुचि लेता है। इस प्रकार चयनित विषय या क्रियाएँ ही उसकी इच्छा को तृप्त करती है। इस विषय को चयन करने में विवेक से कार्य लेना पड़ता है। उचित, अनुचित, अधिक उपयोगी या कम उपयोगी विषयों का चयन हृदय एवं बुद्धि से सम्बन्धित मूल्य भी कहते हैं। इच्छाओं को तृप्त करने के लिए किसी एक ही कार्य या विषय को मध्यस्थ बनाने के कारण इन्हें मध्यस्थ बनाने के कारण इन्हें मध्यस्थ मूल्य कहा जाता है।
(1) साधन मूल्य- जिन मूल्यों से कोई हित या कार्य सिद्ध होता है उन्हें साधन मूल्य कहते हैं। किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए या किसी इच्छा को तृप्त करने के लिए इन मूल्यों का उपयोग साधन रूप से होता है। यदि कोई छात्र शिक्षक बनने की इच्छा रखता है तो बी.एड. कक्षा को उत्तीर्ण करना उसके लिए साधन मूल्य है। इस प्रकार इंजीनियर के लिए गणित एवं विज्ञान का, एक डॉक्टर के लिए विज्ञान एवं जीव विज्ञान का एक चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट के लिए वाणिज्य का अध्ययन साधन मूल्य ही समझा जाएगा। साधन मूल्यों का उपयोग केवल उसी के लिए होता है जिसका उससे सम्बन्ध होता है। ये मूल्य आत्मनिष्ठ होते हैं, एवं व्यक्ति तथा पारिस्थिति के अनुसार बदलते रहते हैं।
(2) साध्य मूल्य- ऐसे जो किसी बाह्य वस्तुओं पर आश्रित नहीं होते हैं; ये कार्य में पूर्ण होते हैं साध्य या आन्तरिक मूल्य कहलाते हैं। साध्य का अर्थ होता है जिसके लिए साधन की जरूरत न हो। कवि के लिए कविता लिखना, संगीतज्ञ के लिए गाना साध्य मूल्य हैं। इसी तरह ज्ञान प्राप्ति, आध्यात्मिक जागृति के मूल्य साध्य मूल्य कहलाते हैं। इसके अतिरिक्त सौन्दर्यात्मक मूल्य भी माने जाते हैं। जो इस प्रकार हैं-
सौन्दर्यात्मक मूल्य- ऐसे मूल्य जिसमें रसानुभूति हो, उन्हें सौन्दर्यात्मिक मूल्य कहा जाता है। इन मूल्यों की प्राप्ति हेतु हृदय एवं भावना की आवश्यकता होती। जिन वस्तुओं के प्रति हमारी हार्दिक अनुभूति का लगाव होता है अथवा जिनमें हमारा सम्बन्ध भावात्मक अधिक होता है वास्तव में वे सौन्दर्यात्मक मूल्यों से युक्त होती है। किसी कारुणिक दृश्य से सम्बन्धित कविता को सुनकर हम दया विभोर हो उठते हैं। सुन्दरतम गीत को सुनकर हम भावना में बह जाते हैं, इसी प्रकार कोई सुन्दर चित्र भी हमारी भावनाओं को उभारने में सफल हो जाते हैं। ललित कलाओं (वस्तु, कला, मूर्तिकला, चित्र कला, संगीतकला एवं काव्यकला) में निश्चित रूप से सौन्दर्यात्मक मूल्य होते हैं। किन्तु यदि कोई व्यक्ति गणित के प्रश्नों को हल करने में उतनी ही रसानुभूति करता है तो यह गणित का विषय भी उसके लिए सौन्दर्यात्मक मूल्य वाला ही होगा। इतना जरूरी है कि सौन्दर्यात्मक मूल्यों की प्राप्ति के लिए किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति भावात्मक या रागात्मक सम्बन्ध का होना आवश्यक है।
आगबर्न के अनुसार सांस्कृतिक एवं शैक्षिक मूल्य- आगवर्न ने मूल प्रवृत्तियों के आधार पर निम्नलिखित मूल्य बतलाये हैं-
मूल प्रवृत्ति | मूल्य |
क्षुधा एवं काम | शारीरिक मूल्य |
संग्रह एवं अभिव्यक्ति | आर्थिक मूल्य |
सामूहिकता | सामाजिक मूल्य |
सहानुभूति, आत्म प्रकाशन | चारित्रिक मूल्य |
जिज्ञासा | बौद्धिक मूल्य |
क्रीड़ा | सौन्दर्यात्मक मूल्य |
धार्मिक | धार्मिक मूल्य |
क्रीड़ा- प्रवृत्ति | मनोरंजनात्मक मूल्य |
आगबर्न द्वारा निर्देशित शैक्षिक मूल्यों को शिक्षा प्रक्रिया में स्थान देना अत्यन्त आवश्यक है। मूल प्रवृत्तियों को रोका नहीं जा सकता। अतएव उन्हें उभार कर शिक्षा प्रक्रिया में इनका उचित लाभ उठाया जा सकता है।
संस्कृति एवं शैक्षिक मूल्यों के कार्य- शैक्षिक मूल्यों के कार्य शिक्षा प्रक्रिया में सहायता करने के लिए ही होते हैं। इनके कार्य निम्नवत् हैं-
- विद्यालय के वातावरण को उपयोगी बनाने में सुझाव प्रदान करना।
- छात्रों के व्यक्तित्व का अध्ययन करने में शिक्षक की सहायता करना।
- शिक्षकों को आत्म निरीक्षण का अवसर देना।
- शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण करना।
- पाठ्य पुस्तकों का निर्धारण करना।
शैक्षिक मूल्यों का कार्य शैक्षिक उद्देश्यों के निर्माण में सहायता करना है। शैक्षिक उद्देश्यों का निर्माण करने में शैक्षिक एवं दार्शनिक विचारों का महत्व होता है।
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