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शैक्षिक व्यय का अर्थ प्रशासनिक दृष्टि से विद्यालय व्यवस्था में होने वाले व्यय के प्रकार

शैक्षिक व्यय का अर्थ प्रशासनिक दृष्टि से विद्यालय व्यवस्था में होने वाले व्यय के प्रमुख प्रकार
शैक्षिक व्यय का अर्थ प्रशासनिक दृष्टि से विद्यालय व्यवस्था में होने वाले व्यय के प्रमुख प्रकार

शैक्षिक व्यय का क्या अर्थ है? प्रशासनिक दृष्टि से विद्यालय व्यवस्था में होने वाले व्यय के प्रमुख प्रकार कौन-कौन से हैं? विवेचन कीजिए।

शैक्षिक व्यय का अर्थ ऐसे व्यय से है, जो शिक्षण संस्थाएँ शिक्षा व्यवस्था के विभिन्न मानवीय साधनों तथा भौतिक साधनों की पूर्ति के लिए करती हैं। शिक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत व्यय की प्रमुख मदें, शिक्षकों एवं कर्मचारियोंको दिया जाने वाला वेतन, शैक्षिक सामग्री तथा उपकरण खरीदना, विद्यालय भवन का निर्माण करना, फर्नीचर की व्यवस्था करना आदि। सम्मिलित हैं। इसकी गणना प्रायः विद्यालय बजट में वित्तीय वर्ष की अवधि में की जाती है। विद्यालय व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए इसे कई भागों में विभाजित किया जा सकता है।

विद्यालय व्यवस्था में होने वाले व्यय के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-

1. आवर्तक व्यय, 2. अनावर्तक व्यय, 3. प्रत्यक्ष व्यय, 4. अप्रत्यक्ष व्यय, 5. विकास व्यय, 6. पूर्वबद्ध व्यय, 7. आकस्मिक व्यय, 8. स्वीकार्य व्यय, 9. विविध व्यय, 10. लागत।

1. आवर्तक व्यय- आवर्तक व्यय की परिधि में शिक्षकों एवं कर्मचारियों का वेतन, भवन की मरम्मत, पुस्तकालय व्यवस्था, दैनिक शिक्षण में आवश्यक पूर्तियाँ आदि आते हैं। ऐसे व्यय एक निश्चित अवधि के पश्चात् ही होते हैं। शिक्षा पर किया गया इस प्रकार का व्यय अन्य प्रकार के व्ययों से सदैव अधिक रहता है।

2. अनावर्तक व्यय – अनावर्तक व्यय के अन्तर्गत विद्यालय भवन का निर्माण करना, खेल के मैदान की व्यवस्था करना, विद्यालय के लिए अतिरिक्त भूमि खरीदना, स्थायी उपकरणों तथा फर्नीचर को खरीदना तथा विद्यालय के बस खरीदना आदि सम्मिलित हैं। ऐसा व्यय एक बार होता है और फिर जब तक वस्तु नष्ट नहीं हो जाती है उस पर व्यय करने की आवश्यकता नहीं होती। इस तरह का व्यय प्रतिवर्ष नहीं होता है।

3. प्रत्यक्ष व्यय – प्रत्यक्ष व्यय के अन्तर्गत वेतन, महँगाई, कण्टेन्जेंसी, यात्रा भत्ता, चतुर्थ वर्ग के कर्मचारियों की पोशाकें, पाठ्यक्रमेतर क्रियाओं पर किया गया व्यय तथा अन्य सामान्य व्यय आते हैं। फर्नीचर, उपकरण प्रयोग-कक्ष तथा पुस्तकालय पर किया गया अनावर्तक व्यय भी इसी की परिधि में आते हैं। प्रत्यक्ष व्यय को परिचालन लागत (ऑपरेटिंग कॉस्ट) भी कहते हैं। ऐसा व्यय विद्यालय को निरन्तर चालू रखने के लिए प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। इस प्रकार के व्यय से प्रशासन संस्था के कार्यों को विधिवत् रूप में चलाता है।

4. अप्रत्यक्ष व्यय- अप्रत्यक्ष व्यय के अन्तर्गत प्रशासन संचालित करने, पर्यवेक्षण तथा निरीक्षण करने, छात्रवृत्तियाँ एवं उपकरणों की व्यवस्था करने तथा भवन, फर्नीचरएवं छात्रावास पर व्यय करना आदि मद आते हैं। ऐसा व्यय किसी एक संस्था से सम्बन्धित न होकर सभी संस्थाओं अथवा कार्यों पर किया गया एकमुश्त में दिखाया जाता है। इस व्यय के अन्तर्गत समय-समय पर मदों में परिवर्तन होता रहता हैं।

5. विकास व्यय — विकास व्यय के अन्तर्गत किसी संस्था का विकसित करने की दृष्टि से नये भवन निर्मित करना व नयी भूमि क्रय करना, नयीं कक्षाओं को खोलना, नये शिक्षकों की नियुक्ति करना तथा नया फर्नीचर खरीदना आदिआते हैं। ऐसे व्यय की व्यवस्था भारत की पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत के कारण इसे योजना व्यय भी कहते हैं। विकास व्यय का लक्ष्य किसी योजना के आधार पर संस्था की प्रगति करना है।

6. पूर्वबद्ध व्यय – पूर्वबद्ध व्यय कहलाता है, जो एक पंचवर्षीय योजना समाप्त होने की स्थिति में उस काल में जो कुछ शिक्षा का विकास हुआ है, आगे बढ़ाने हेतु दूसरी पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत व्यय किया जाता है। यद्यपि पंचवर्षीय योजनाओं में इस प्रकार के व्यय का प्रावधान नहीं रहता है, किन्तु उसकी व्यवस्था राज्य के साधारण आय-व्यय से करनी पड़ती है। पूर्वबद्ध व्यय की मात्रा पंचवर्षीय योजनाओं की उपलब्धियों परआधारित है।

7. आकस्मिक व्यय – आकस्मिक व्यय के अन्तर्गत छोटी-छोटी वस्तुओं क्रय करने तथा छोटे कार्यों जैसे—बिजली व पानी का खर्च, लेखन-सामग्री पर होने वाला व्यय, टापराइटर अथवा साइकिल की मरम्मत पर होने वाला व्यय सम्मिलित है। ऐसे व्यय का पहले से अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। किसी आपत्तिपूर्ण स्थिति में अचानक ऐसे व्यय करने पड़ते हैं। विद्यालय बजट में ऐसे व्यय की व्यवस्था करना प्रशासनिक दृष्टि से अत्यन्त आवश्यक है।

8. स्वीकार्य व्यय- स्वीकार्य व्यय के अन्तर्गत विभिन्न राज्यों की सरकारें विभिन्न मदों को रखती हैं, किन्तु कुछ मद ऐसे भी हैं जिन्हें प्राय: सभी राज्य सरकारें शैक्षिक बजट में सम्मिलित करती हैं। स्वीकार्य व्यय के अन्तर्गत मुख्यतः कर्मचारियों का वेतन, भत्ता और उनकी भविष्य निधि, भृत्यों की वर्दियाँ, कर, किराया, बिजली, टेलीफोन का बिल, पत्र-पत्रिकाएँ आदि से सम्बन्धित व्यय सम्मिलित हैं। स्वीकार्य व्यय में जिन मदों की चर्चा है, यदि उनके अतिरिक्त किसी नये मद पर धन व्यय करना हो तो उसकी अनुमति सरकार अथवा प्रशासकों से पहले ही प्राप्त कर लेना आवश्यक है। प्रशासनिक दृष्टि से ऐसे व्यय को जिन पर सरकार अनुदान देना स्वीकार कर लेती है, स्वीकार्य व्यय कहते हैं।

9. विविध व्यय – विद्यालय प्रशासन में कुछ व्यय ऐसे होते हैं, जो उपर्युक्त किसी व्यय में नहीं आते, ऐसे व्यय को विविध व्यय कहते हैं। विविध व्यय के अन्तर्गत स्काउंटिंग, एन.सी.सी., ए.सी.सी., प्राथमिक चिकित्सा, मध्याह्न भोजन, वृक्षारोपण आदि पर होने वाले व्यय सम्मिलित हैं। प्रशासनिक दृष्टि से विद्यालय के प्रत्येक बजट में विविध व्यय की व्यवस्था होना आवश्यक है।

10. लागत – किसी वस्तु को बनवाने या उसे खरीदने में व्यय हुआ धन लागत कहलाता है। लागत के अन्तर्गत प्रायः तीन प्रकार की लागतों का अध्ययन किया जाता है। प्रथम, इकाई लागत जिसमें उत्पादन या सेवा की इकाई पर व्यय होने वाला धन सम्मिलित रहता है। द्वितीय, पूँजीगत लागत (कैपिटल कॉस्ट), जिसमें विद्यालय भवन, उसकी साज-सज्जा पर होने वाला व्यय, विभिन्न उपकरणों तथा बस आदिपर होने वाला व्यय आदि सम्मिलित हैं। तृतीय, पोषण लागत, जिसमें किसी संस्था अथवा विद्यालय के परिचालन में होने वाला वार्षिक व्यय सम्मिलित रहता है।

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