शैक्षिक प्रशासन की आवश्यकता महत्व एंव कार्य
शैक्षिक प्रशासन की आवश्यकता, महत्त्व एंव कार्य- शैक्षिक प्रशासन की आवश्यकता, महत्त्व व कार्य को निम्न रूपों में प्रस्तुत कर सकते हैं-
(1) शिक्षा की प्रक्रिया को व्यक्ति एवं समाज दोनों के हित में संचालित करने के लिए आवश्यकता।
(2) शिक्षा के कार्यों में सुगमता, कुशलता एवं सरलता उत्पन्न करने के लिए आवश्यकता।
(3) बालकों के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यकता।
(4) शिक्षार्थियों एवं शिक्षकों दोनों की उपलब्धियों में वृद्धि करने के लिए आवश्यकता।
(5) शिक्षा के ‘अवसरों समानता’ के आधार पर देश के प्रत्येक नागरिक को समान रूप से शिक्षा प्रदान करने के लिए आवश्यकता।
(6) आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षिक दृष्टि से परिवर्तित होती हुई परिस्थितियों से शिक्षार्थियों एवं शिक्षकों के समायोजित करने हेतु आवश्यकता।
(7) शिक्षा से सम्बन्धित अधिकारियों, प्रधानाध्यापकों तथा शिक्षकों को निर्देश प्रदान करने के लिए आवश्यकता।
(8) शिक्षण संस्थाओं के वातावरण को मनोवैज्ञानिक बनाने तथा साधनों, उपकरणों एवं आवश्यक सामग्री को उपलब्ध करने के लिए आवश्यकता।
(9) शिक्षा के विभिन्न स्तरों, पक्षों एवं साधनों में ‘समन्वय एवं समायोजन’ स्थापित करने के लिए आवश्यकता।
(10) विद्यालयों के पाठ्यक्रम को निर्धारित करने, उसे संचालित करने, शिक्षण की नवीन पद्धतियों एवं प्रविधियों का प्रसार व प्रचार करने तथा विकास का मार्ग प्रशस्त करने के लिए आवश्यकता।
(11) सहयोग, सहानुभूति तथा परस्पर के निकट सम्पर्क को प्रोत्साहित करके स्वतन्त्र वातावरण में शिक्षा प्रदान करने के लिए आवश्यकता।
(12) वैयक्तिक विभिन्नता के सिद्धान्त के आधार पर शिक्षा की व्यवस्था करके छात्रों में सामाजिक कुशलता, आत्मनिर्भरता, व्यवसायिक कुशलता, समायोजन क्षमता तथा आदर्श नागरिकता के गुणों का विकास करने के लिए आवश्यकता।
(13) शिक्षा-व्यवस्था या संगठन के कार्य को सरल बनाने के लिए आवश्यकता।
(14) शैक्षिक नीतियों एवं योजनाओं को निर्धारित करने, क्रियान्वयन करने तथा उनका मूल्यांकन करने के लिए आवश्यकता।
(15) शिक्षा पर नियंत्रण रखने तथा ‘पर्यवेक्षण’ करने के लिए आवश्यकता।
शिक्षा की उपर्युक्त आवश्यकताओं पर यदि हम पुनः एक विहंगम दृष्टि डालें तो उन्हें हम निम्न रूपों में प्रस्तुत कर सकते हैं-
(1) शिक्षा को समाजोपयोगी बनाना– शिक्षा एक ‘सामाजिक प्रक्रिया’ है और बालक का सर्वांगीण विकास समाज में ही रहकर ‘समजीकरण’ की प्रक्रिया द्वारा होता है। शैक्षिक प्रशासन सामाजिक आदर्शों, आवश्यकताओं एवं विशेषताओं के अनुसार शिक्षा प्रक्रिया सम्पन्न करता है। सामाजिक आवश्यकतओं एवं माँगों के अनुसार ही विद्यालय का संगठन किया जाता. है। शैक्षिक प्रक्रिया में सामाजिक क्रियाओं एवं अनुभवों को स्थान प्रदान किया जाता है। इस प्रकार शैक्षिक प्रशासन प्रक्रिया को समाजोपयोगी बनाता है।
(2) बालकों के चरित्र निर्माण में सहायक- शैक्षिक प्रशासन शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य बालकों के चरित्रिक विकास व निर्माण में सहायक होता है। वर्तमान समय में अनेक विघटनकारी तत्त्वों के कारण देश में सर्वत्र चरित्रहीनता व्यापता होती जा रही है। ऐसी स्थिति में शिक्षा संस्थाओं का यह दायित्व हो जाता है कि वे बालकों के चरित्र विकास में योगदान दें और भावी पीढ़ी को राष्ट्र के विकास के लिए तैयार करें। ऐसा वातावरण सृजित किया जाय कि बालक के चरित्र का विकास हो सके। शिक्षा संस्थाओं में इस प्रकार का अनुकूल वातावरण उपस्थित करने में शैक्षिक प्रशासन की अहम् भूमिका अपेक्षित रहती है।
(3) शिक्षा प्रक्रिया के संचालन में सहायक– अन्य क्रियाओं के समान शिक्षा प्रक्रिया के लिए भी एक व्यवस्था होनी चाहिए तभी उसका संचालन सुचारु रूप से हो सकता है। शिक्षा प्रणाली के सफल बनाने के लिए उसका क्रमबद्ध रूप से क्रियान्वयन करना अति आवश्यक है। शिक्षा की आवश्यकतओं को ध्यान में रखना शैक्षिक प्रशासन का एक अति महत्त्वपूर्ण कार्य है।
(4) शैक्षिक तत्त्वों में सन्तुलन बनाने में सहायक- शिक्षा प्रमुख रूप से दो प्रकार के तत्त्वों से सम्बन्धित होती है-पहला ‘मानवीय तत्त्व’ (Human Elements) तथा भौतिक तत्त्व। मानवीय तत्त्वों के अन्तर्गत शिक्षार्थी, शिक्षक, अभिभावक तथा शिक्षा विभाग के कर्मचारी आदि हैं तथा भौतिक तत्त्वों के अनतर्गत विद्यालय भवन, फर्नीचर, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, धन और शिक्षा के लिए अन्य सामग्री आती है। इन मानवीय एवं भौतिक तत्त्वों में सन्तुलन बनाये रखने में शैक्षिक प्रशासन की अति महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
(5) शिक्षा विभिन्न अंगों के समन्वय में सहायक- शैक्षिक प्रशासन शिक्षा के विभिन्न अंगों में समन्वय स्थापित करने का कार्य करता है। शिक्षा के विभिन्न अंग हैं—शैक्षिक कार्यकर्ता तथा शैक्षिक सामग्री। शैक्षिक प्रशासन शैक्षिक कार्यकर्ताओं के प्रयासों में समन्वय स्थापित करता है। साथ ही वह शैक्षिक सामग्री का प्रयोग इस प्रकार करता है जिससे कि शिक्षा प्रक्रिया में सरलता एवं स्पष्टता आ सके।
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