शैक्षिक प्रशासन का क्षेत्र— डी.एन. गैण्ड एवं आर.पी. शर्मा ने अपनी पुस्तक ‘Education and Secondary Administration’ में शैक्षिक प्रशासन के क्षेत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित बातों का समावेश किया है-
(1) समाज के उद्देश्यों उसकी आवश्यकताओं, परिपाटियों, आशाओं एवं आकांक्षाओं आदि को भली-भाँति समझकर शिक्षा के उद्देश्यों को निश्चित करना।
(2) समाज को सभी बालकों के लिए शिक्षा की योजना बनाना।
(3) इस योजना को कार्य रूप में परिणत करने के लिए समस्त उपलब्ध साधनों को एकत्रित करना।
(4) इन समस्त साधनों का समायोजन करना और यह देखना कि किसी भी प्रकार संचालन के कार्य में श्रम, सामग्री, धन, साधन आदि में से किसी का अपव्यय एवं बर्बादी तो नहीं हो रही है।
(5) शिक्षा की क्रिया को ठीक ढंग से संचालित करना और परिणाम का मूल्यांकन करना तदुपरान्त उनके आधार पर आगे की योजना बनाना, फिर उसी प्रकार सामग्री, साधन आदि इकट्ठा करके योजना को चलाना।
अमेरिकन शिक्षा-शास्त्रियों व शिक्षा-विशेषज्ञों ने शैक्षिक-प्रशासन के क्षेत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित बातों को सम्मिलित किया है-
- शिक्षा के उद्देश्य के सम्बन्ध में सहमति प्राप्त करना।
- शिक्षकों, अन्य सम्बन्धित व्यक्तियों, शैक्षिक उपकरणों तथा विद्यालयों के लिए वित्तीय व्यवस्था करना।
- शिक्षक एवं अन्य सम्बन्धित व्यक्तियों को भर्ती करना और उन्हें उनके कार्यों एवं उत्तरदायित्वों से परिचित करना।
- सम्बन्धित व्यक्तियों को परस्पर सहयोग के लिए प्रेरित करना।
- योजनाओं, नीतियों एव व्यक्तियों की क्रियाओं का समय-समय पर मूल्यांकन करना।
ओरिन बी. गैफ एवं केलविन एम. स्ट्रीट ने शिक्षा-प्रशासन के विभिन्न अंगों के रूपों का विभाजन अग्र प्रकार से किया है-
(1) पाठ्यक्रम एवं शिक्षक- पाठ्यक्रम में शिक्षण-प्रविधियों, भौतिक साधनों एवं परिणाम के मूल्यांकन का समावेश होता है।
(2) कार्यकर्ता छात्र- इसके अन्तर्गत छात्रों की भर्ती, उनकी स्थापना, वर्गीकरण, उनका सम्मिलन, मार्ग-प्रदर्शन, उपदेश, उनका उन्नति विवरण, अनुशासन, असन्तुलन की परिचर्या एवं सेवा-कार्य की हीनता का समावेश होता है।
(3) कार्यकर्ता अध्यापक-वर्ग- यह भर्ती शिक्षकों की सेवा प्राप्ति, व्यापारिक विकास के अवसर तथा सेवा-कार्य के लिए अधिकाधिक सुयोग्य अवसर प्रदान करके कल्याण-भावना आदि की नीति निश्चितं करती है।
(4) स्कूल भवन— इसके अन्तर्गत विद्यालय भवन नियोजन, निर्माण एवं स्थापना और उसके कुशल प्रयोग के लिए प्रबन्ध का समावेश होता है।
(5) संगठनात्मक संरचना- इसके अन्तर्गत अध्यापकों, छात्रों एवं अन्य साधनों का संयोजन होता है।
(6) वित्त एवं व्यापारिक संगठन— इसमें स्रोतों की उपलब्धि, धनराशि की प्राप्ति की सुगमता, उसका विभाजन एवं उसका लेखा-जोखा तैयार करना आदि आता है।
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