जातिवाद को दूर के उपाय
जातिवाद को रोकने के उपाय या सुझाव इस प्रकार हैं-
(1) नैतिक एवं राष्ट्रीय शिक्षा- जातिवाद की समस्या के समाधान हेतु सबसे उचित उपाय यह है कि लोगों की मानसिकता ही बदल दी जाय। इसके लिए नैतिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिए कि लोगों में राष्ट्रीय चरित्र का विकास हो सके। राष्ट्रीय भावना का विकास इस प्रकार का होना चाहिए कि जाति जैसे समूह को लोग द्वैतीयक और राष्ट्र को प्राथमिक मानने लगे।
(2) अन्तर्जातीय विवाह को प्रोत्साहन- विडम्बना की बात है कि आज भी भारत में एक प्रतिशत अन्तर्जातीय विवाह नहीं होते है। जो होते भी है वह प्रेम विवाह होते हैं। लोग अन्य जातियों में विवाह इसलिए नहीं करते हैं कि वे जातिगत बन्धन को दूर करना चाहते हैं बल्कि इसलिए करते हैं क्योंकि वे शारीरिक व अन्य पक्षों से आकर्षित होकर विवाह करते हैं और ये झूठा स्वांग रचाते हैं कि मैंने तो अन्तर्जातीय विवाह सम्बन्ध स्थापित किया है। आज इतना जरूर है कि प्रेम के सामने जाति के बन्धन को तोड़ने में लोग अब उतनी हिचकिचाहट व विरोध नहीं महसूस करते जितना कि आज से एक दशक पहले हुआ करता था। सही अर्थों में अन्तर्जातीय विवाह की प्रथा व पद्धति जातिवाद व जाति प्रथा को समूल नष्ट कर सकता है। सहशिक्षा इस प्रकार के विवाह के लिए सहायक पद्धति है।
(3) जाति संगठनों पर रोक- जाति संगठनों पर रोक लगना चाहिए, क्योंकि ये संगठन जाति की प्रथा एवं परम्परा को अनावश्यक रूप से तीव्रता के साथ क्रियान्वित करवाने का प्रयास करते हैं और जातिवाद को बढ़ावा देते हैं।
(4) औद्योगीकरण व नगरीकरण- इन प्रक्रियाओं के कारण जातिगत दूरी, खाने-पीने की पाबन्दी, वैवाहिक प्रतिबन्धों में शिथिलता आयेगी और जातिवाद को रोका जा सकता है।
(5) कानूनी उपाय- जातिवाद को रोकने के लिए उचित सामाजिक अधिनियमों को प्रतिपादित किया जाना चाहिए। जाति के आधार पर भेद-भाव नहीं किया जाना चाहिए। अनुसूचित जाति व जनजाति का आरक्षण जाति के आधार पर न करके आर्थिक स्थिति के आधार पर किया जाना चाहिए। अस्पृश्यता निवारण अधिनियम इस दिशा में सराहनीय कदम है। नौकरी के आवेदन पत्रों, विद्यालयों में प्रवेश आवेदन पत्रों में जाति का कालम समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
(6) प्रचार- जातिवाद की बुराई से सामान्य जनता को अवगत कस्या जाना चाहिए। मनोवैज्ञानिक व समाजशास्त्रियों की मदद से जातिवाद की कमियों तथा इसके निराकरण के लिए प्रचार किया जाना चाहिए। इसके लिए स्वस्थ्य जनमत का निर्माण किया जाना चाहिए।
(7) शुद्ध राजनीति-आधुनिक भारत में राजनीति को अगर जातिवाद का एक मात्र निर्णायक कारण माना जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। भ्रष्ट व मूल्यविहीन राजनेताओं ने जातिगत भावनाओं को शोषित कर अपनी कुर्सी को सुनिश्चित करने का प्रयास किया है। जब तक देश की राजनीति में नैतिकता की भावना नहीं आयेगी, जातिवाद जैसी समस्याएँ हमारे लिए सिरदर्द बनी रहेंगी।
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