आदर्श अध्यापक के वैयक्तिक गुणों का वर्णन कीजिए।
आदर्श अध्यापक के निम्नलिखित वैयक्तिक गुण होने चाहिए-
(1) उत्तम स्वास्थ्य- एक आदर्श अध्यापक के लिए आवश्यक है कि उसका स्वास्थ्य उत्तम हो, क्योंकि तभी वह अपने कर्तव्यों को भली प्रकार निभा सकेगा अन्यथा नहीं। यदि उसका स्वास्थ्य अच्छा हो तो उसका मस्तिष्क भी स्वस्थ होगा। प्रभावशाली शिक्षण एक स्वस्थ अध्यापक ही कर सकता है। जब उसका स्वास्थ्य अच्छा होगा तो उसका शरीर और व्यक्तित्व देखने में आकर्षक प्रतीत होगा जिसका प्रभाव बालकों पर भी अच्छा ही पड़ेगा और तब वे वैसा ही सम्मान भी देंगे। अच्छा स्वास्थ्य जीवन-शक्ति प्रदान करता है जिससे वह कर्त्तव्य पालन की प्रेरणा और उत्साह प्रदान कर सकता है।
(2) बुद्धिमान- अध्यापक को बुद्धिमान तथा अध्यापन प्रेमी होना चाहिए। यह जन्मात गुण है जिसके पास यह गुण हो वही इस व्यवसाय को ग्रहण करे अन्यथा नहीं, क्योंकि उसको सदैव अपने बुद्धि का ही प्रयोग करना पड़ता है। अतः उसका मानसिक विकास अच्छा होना चाहिए। इसमें मस्तिष्क का मस्तिष्क से सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। इसलिए इस व्यवसाय वालों को तीव्र बुद्धि का होना चाहिए। अतः एक अध्यापक की बुद्धि लब्धि (I.Q.) कम से कम 100-110 के बीच अवश्य होनी चाहिए।
(3) स्फूर्ति- एक अध्यापक को न केवल स्वस्थ तथा हृष्ट-पुष्ट वरन् उसमें स्फूर्ति भी होनी चाहिए, क्योंकि उत्साह उत्पन्न कर सके।
(4) संवेगात्मक स्थिरता- अध्यापकों में संवेगात्मक स्थिरता तथा सन्तुलन होना आवश्यक है। इसके प्रभाव से उसे तरह-तरह की समस्याओं का समाधान करने में सरलता पड़ती है जिससे वह छात्रों का भावात्मक विकास कर पाता है। शिक्षक को शीघ्र ही क्रोध नहीं दिखाना चाहिए। उसके स्वभाव में माधुर्य का होना आवश्यक है।
(5) रूचि तथा उत्साह- एक आदर्श अध्यापक का यह परम कर्तव्य है कि वह अपने व्यवसाय में रूचि ले तथा उत्साहित रहे तथी वह सफल अध्यापक हो सकता है अन्यथा नहीं। अतः उसे रूचि, लगन और उत्साह से छात्रों को शिक्षित करना चाहिए नहीं तो छात्र भी उसका आदर नहीं करेंगे।
(6) सहानुभूति- शिक्षक में सहानुभूति का होना आवश्यक है। सहानुभूति का अर्थ दूसरे के सुख के साथ सुख और दुःख का अनुभव करना होता है। यदि अध्यापक बालकों साथ सदा सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार रखेगा तो छात्र भी उसको सम्मान देगा और प्रत्येक आज्ञा को पालन करेगा।
(7) उच्च स्वर- एक अध्यापक के लिए उच्च स्वर का होना नितान्त आवश्यक है, क्योंकि यदि अध्यापक धीरे-धीरे बोलता है और कक्षा के आखिरी पंक्ति वाले विद्यार्थी नहीं सुन पाते तो वे ही निश्चय पढ़ने में रूचि न लेंगे और कक्षाओं में गड़बड़ मचाया करेंगे। अतः उसका स्वर ऊँचा, कोमल और नम्र होना चाहिए। उसका स्वर सदा बीच वाला होना चाहिए अर्थात् न बहुत तेज और न बिल्कुल धीमा। उसकी आवाज में रूखापन तथा कटुतापन नहीं होना चाहिए।
(8) धैर्य और सहनशीलता- अध्यापक को बड़ा धैर्यवान और सहनशील होना चाहिए। यदि अध्यापक जरा-जरा सी बातों पर क्रोधित हो जाता है और मारना-पीटना आरम्भ कर देता है तो इसका बड़ा भयंकर परिणाम अनुशासन पर पड़ता है। उसे बालकों की समस्याओं को समझकर धैर्य और सहनशीलता के साथ समाधान करना चाहिए। उसको अपनी उन्नति तथा अवनति दोनों में धैर्य के साथ काम लेना चाहिए।
(9) भाषा- अध्यापक की भाषा सरल, मधुर और स्पष्ट होनी चाहिए जिससे छात्र उसको अच्छी तरह से समझ सकें। यदि उसकी भाषा कठिन तथा संस्कृत-गर्भित भाषा होगी तो बालक समझ न पायेंगे और वह पाठ उनके लिए नीरस प्रतीत होगा तथा वे कक्षा से भागने लगेंगे। सरल भाषा के द्वारा पढ़ाने से पाठ उसकी समझ में आने लगता है।
(10) सामाजिकता- अध्यापक को सामाजिक होना चाहिए। समाज से अलग तो कोई रह ही नहीं सकता अध्यापक समाज का नेता है और वह भावी नागरिकों का निर्मता है। इसलिए उसे अपने को समाज के निकट रखना चाहिए। एक सामाजिक अध्यापक के लिए आवश्यक है कि वह छात्रों, अध्यापकों तथा अभिभावकों के सुख-दुःख में सम्मिलित हो और उनके प्रति उसका व्यवहार सहानुभूतिपूर्ण तथा उदारता का हो।
(11) नेतृत्व की योग्यता- अध्यापकों में नेतृत्व का गुण होना चाहिए किन्तु उसका नेतृत्व राजनीतिक नेतृत्व न हो बल्कि उसका नेतृत्व उसके चरित्र, प्रभावपूर्ण वाणी, अनुशासनप्रियता तथा सामाजिकता हो तथा दूसरों से प्राप्त श्रद्धा तथा आदर पर आधारित हो। अध्यापक को छात्रों की कठिनाइयों को दूर करना चाहिए। अध्यापक का व्यवहार प्रेमपूर्ण हो जिससे छात्रों के हृदय हो जीत सके।
(12) समय की नियमितता– अध्यापकों को प्रत्येक क्षेत्र में आदर्श होना चाहिए। उसे स्वयं विद्यालय में समय से आना चाहिए, क्योंकि वह यह आशा करता है कि प्रत्येक छात्र कक्षा समय से आये और यदि वह स्वयं देर से आता है तो उसे छात्रों के समय पर आने के लिए कड़ाई करने का साहस नहीं रहेगा, क्योंकि छात्र अध्यापकों के गुणों का ही अनुकरण करते हैं।
(13) देशभक्ति- अध्यापकों में देश-भक्ति की प्रबल भावना होनी चाहिए, क्योंकि उसे राष्ट्र का निर्माता कहा जाता है। उसका बड़ा व्यापक दृष्टिकोण होना चाहिए। उसे साम्प्रदायिकता, प्रान्तीयता, भाषावाद आदि भावनाओं से मुक्त रहना चाहिए। ऐसी ही भावना उसे छात्रों के सामने उपस्थित करनी चाहिए जिससे वे भी इन संकीर्ण भावनाओं के शिकार न बनने पायें और जिससे राष्ट्रीय भावना का विकास हो सके।
(14) निष्पक्षता- अध्यापक को निष्पक्ष होना चाहिए। कक्षा में हर प्रकार के छात्र पढ़ते बालक पढ़ते हैं, लेकिन अध्यापक को इन सभी को एक दृष्टि से देखना और न्यायपूर्ण व्यवहार करना चाहिए जिससे कक्षा में अनुशासन बना रहे और यदि वह पक्षपातपूर्ण व्यवहार करेगा तो वह शीघ्र ही घृणा का पात्र हो जायेगा और छात्रों की नजरों में नीचा देखा जाने लगेगा।
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