निरौपचारिक शिक्षा (Niropcharik Siksha) क्या हैं?
निरौपचारिक शिक्षा (Non-Formal Education)- भारत ही नहीं वरन् विश्व में जनसंख्या तथा ज्ञान का विस्फोट हो रहा है, जिसके कारण कक्षाओं में छात्रों की बेतहाशा भीड़ बढ़ती जा रही है। वर्तमान विद्यमान शैक्षिक-सुविधाओं का पूरा-पूरा उपयोग भी लोग उठा नहीं पा रहे हैं। इससे शिक्षा का संख्यात्मक विकास तो हुआ है, किन्तु गुणात्मक विकास अवरुद्ध रह गया। आज का युग जन-शिक्षा का युग है। प्रत्येक व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यालयों की ओर भाग रहा है, किन्तु उसे प्रवेश नहीं मिल रहा है। परिणामस्वरूप जनसंख्या का अधिकांश भाग अशिक्षा का शिकार हो रहा है। अत: जन-शिक्षा की बढ़ती हुई माँग को पूरा करने के लिए नौपचारिक शिक्षा ही एक मात्र उपाय है। दूसरे, प्रति छात्र शिक्षा व्यय बढ़कर आसमान को छूता जा रहा है। अत: इस बात की आवश्यकता, अनुभव की जा रही है कि ऐसी शिक्षा-व्यवस्था को जन्म दिया जाए, जिसमें व्यय अधिक न हो और एक साथ अधिक से अधिक लोगों को शिक्षित किया जाये। अन्त में, शिक्षा के क्षेत्र में विज्ञान का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। रेडियो, दूरदर्शन तथा कैसेट टेप के द्वारा शिक्षा का प्रसार सम्भव हो गया है। कम्प्यूटर के शिक्षा क्षेत्र में प्रवेश से यह संभावनाएँ और अधिक बलवती हो गयी हैं। इस कारण से भी नौपचारिक शिक्षा की आवश्यकता अनुभव की जा रही है।
औपचारिकेत्तर अथवा निरौपचारिक शिक्षा की परिभाषा
विद्वानों द्वारा दी गयी इस शिक्षा की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित है-
कुण्डू के अनुसार- “निरौपचारिक शिक्षा नियोजित होती है। परन्तु पूर्णता विद्यालयी नहीं, यह शिक्षा विद्यालय के बाहर योजनाबद्ध किन्तु औपचारिक शिक्षा की तरह नहीं होती।” वार्ड तथा
डेटम के अनुसार- “निरौपचारिक शिक्षा एक नियोजित अनुदेशात्मक अभिकल्प है, जो नियमित नीति द्वारा निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बाह्य तथा आन्तरिक दोनों प्रकार की विधियों का प्रयोग अधिक लचीले वातावरण में करता है।”
नौपचारिक शिक्षा की संकल्पना-
नौपचारिक शिक्षा वास्तव में औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा के मध्य की स्थिति है। दूसरे शब्दों में यह औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षाओं का एक सम्मिश्रण है। बालक एक निश्चित समय तक स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् समाज में पदार्पण करता है। देश, काल तथा परिस्थितियों के अनुसार उसे अपने ज्ञान में संशोधन करना पड़ता है। अतएव नौपचारिक शिक्षा इस प्रकार परिभाषित हो सकती है, “नौपचारिक शिक्षा से अभिप्राय उस शिक्षा से हैं, जो हर परिस्थिति में, हर समय, हर स्थान पर, औपचारिक तथा अनौपचारिक रूप से मनुष्य को कुशलतापूर्वक जीवन-यापन करने की तैयारी कराती है।”
नौपचारिक शिक्षा औपचारिक तथा अनौपचारिक की विरोधी नहीं वरन् उसकी सहयोगी होती है। नौपचारिक शिक्षा, विद्यार्थी जो सीखना चाहे, जब सीखना चाहे और जहाँ सीखना चाहे के प्रमुख सिद्धान्त पर आधारित है-नौपचारिक शिक्षा लचीली होती है। यह शिक्षा पाठ्यक्रम, विद्यार्थियों के पर्यावरण तथा परिवेश की आवश्यकताओं से सम्बन्धित होती है। नौपचारिक शिक्षा इस बात का प्रयास करती है कि शिक्षार्थी अपने परिवेश को भली-भाँति पहचानने में समर्थ हो, जो वैज्ञानिक तथा तकनीकी उन्नतियाँ हो रही हैं, उनको समझे, अपनी समस्याओं को समझे और उनका समाधान निकाले और उनसे जूझने में समर्थ हो, तर्कशील तथा विवेकशील बुद्धि का विकास हो और सर्वोपरि बात यह है कि उसकी आदतों और अभिवृत्तियों में परिवर्तन आए जिससे कि वह सामाजिक परिवर्तन का भी प्रभावकारी कारक सिद्ध हो सके। वह अपने व्यावसायिक क्षेत्रों में पुरातन तथा दकियानूसी तरीकों का परित्याग कर उसके स्थान पर आधुनिकतम वैज्ञानिक तथा तकनीकी तरीकों को अपना सके। वैसे तो नौपचारिक शिक्षा को एक निश्चित परिभाषा की शब्दावली में बाँधना सम्भव नहीं है, फिर भी उसकी परिभाषा निम्नवत् दी जा सकती है-
“नौपचारिक शिक्षा परम्परागत विद्यालयी शिक्षा के बाहर किया गया एक ऐसा साभिप्राय और सुव्यवस्थित उपक्रम है, जिसमें पाठ्य-विषय, माध्यम, समय-विभाजन, प्रवेश, शिक्षक तथा संगठन आदि के चयन तथा अनुकूलन विशिष्ट प्रकार की परिस्थितियों को ध्यान में रखते व्यवस्था सम्बन्धी प्रतिबन्धों को न्यूनतम रखने तथा शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति अधिकतम करने के उद्देश्य से किया जाता है।”
नौपचारिक शिक्षा की धारणाएँ-
नौपचारिक शिक्षा का आधार निम्नलिखित धारणाएँ हैं-
(1) शिक्षा जीवनपर्यन्त की प्रक्रिया है।
(2) सीखने के लिए औपचारिक तथा नौपचारिक शिक्षा के भेद को समाप्त किया जाए।
(3) स्कूल के अतिरिक्त शिक्षा के कार्यक्रमों को संचालित करने का उत्तरदायित्व अन्य संस्थाओं पर भी होना चाहिए, जो कृषि उद्योग तथा रोजगार तथा प्रशिक्षण सम्बन्धी कार्यक्रमों को बनाती हैं।
(4) स्कूल के बाहर की शिक्षा में स्वयं नवयुवकों को भागीदार बनाया जाए। युवक केन्द्रों, क्लबों तथा स्वयंसेवी संगठनों का योगदान लेना आवश्यक है।
जिन युवकों के लिए नौपचारिक शिक्षा का कार्यक्रम लागू किया जा सकता है, उनको चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-
(1) वे नवयुवक जो कभी स्कूल न गए हों।
(2) वे नवयुवक जो प्राथमिक स्कूल में गए, किन्तु उन्होंने पाठ्यक्रम पूरा न किया हो।
(3) वे नवयुवक जो प्राथमिक शिक्षा के पश्चात् आगे शिक्षा निरन्तर नहीं करते।
(4) वे नवयुवक जो माध्यमिक शिक्षा समाप्त करने के पहले ही स्कूल छोड़कर चले जाते हैं।
भारत सरकार ने प्रौढ़ शिक्षा विभाग को नौपचारिक शिक्षा विभाग नाम देने का निश्चय किया है।
नौपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ-
नौपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ-नौपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ निम्न हैं-
1. विद्यालयत्तरी शिक्षा है,
2. विकेन्द्रित है,
3. संगठित एवं व्यवस्थित है,
4. उद्देश्य प्रधान है,
5. लचीली है,
6. पाठकों की एकरूपता चाहती है,
7. पाठकों की सुविधा पर आधारित है,
8. जीवन तथा जीविका से सीधे सम्बन्धित है,
9. सिखाने की नहीं स्वतः सीखाने की प्रक्रिया पर अधिक बल देती है,
10. मनुष्य क्या जान गया है, यह उतना ही नहीं, वरन् यह कि वह क्या हो गया है, यह उसके लिए अभीष्ट है।
नौपचारिक शिक्षा के उद्देश्य-
नौपचारिक शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्न हैं-
(1) वातावरण तथा परिस्थितियों की अनुभूति तथा ज्ञान,
(2) कार्य-कुशलता की वृद्धि,
(3) वैज्ञानिक तकनीकी का ज्ञान तथा उनको अपनाना,
(4) प्राप्त अनुभवों का नवीन परिस्थितियों में अनुप्रयोग,
(5) सामाजिक परिवर्तनों के अभिकरणों की भूमिका प्रस्तुत करना,
(6) सीखने तथा सिखाने की प्रवृत्तियों का सतत विकास,
(7) जनतांत्रिक कार्य-प्रणाली द्वारा राष्ट्र-निर्माण में योग प्रदान करना।
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