प्रधानाध्यापक के गुण
एक योग्य प्रधानाध्यापक में किन-किन गुणों का होना आवश्यक है? विस्तृत विवेचना कीजिए।
प्रधानाध्यापक के गुण – किसी भी विद्यालय में प्रधानाध्यापक का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है, क्योंकि एक रूप में विद्यालय की आन्तरिक व्यवस्था की जिम्मेदारी प्रधानाध्यापक पर ही होती है। इसके अतिरिक्त किसी भी विद्यालय की गरिमा को बढ़ाना भी प्रधानाध्यापक के व्यक्ति पर ही निर्भर करता है। इस रूप में प्रधानाध्यापक का विद्यालय में क्या महत्त्व अथवा स्थान होता है, इसको निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-
(1) विद्यालय की मुख्य शक्ति– विद्यालय में प्रधानाध्यापक के स्थान के विषय में मि. रायबर्न ने लिखा है कि- “विद्यालय में प्रधानाध्यापक का वही स्थान होता है जो एक पानी के जहाज के कैप्टन का जहाज पर होता है।”
(2) विद्यालय का केन्द्र-बिन्दु- इस विषय में रायबर्न महोदय लिखते हैं- “प्रधानाध्यापक विद्यालय के विभिन्न अंगों को एकीकरण के सूत्र में बाँधकर रखने वाला साधन है जो पूरी संस्थान में सन्तुलन बनाये रखता है।”
(3) विद्यालय की उन्नति का आधार– प्रधानाध्यापक विद्यालय की उन्नति और अवनति का मुख्य आधार होता है क्योंकि यदि वह चरित्रवान होता है तब विद्यालय के समस्त अध्यापक एवं छात्र उससे प्रेरणा प्राप्त करते हैं जिससे विद्यालय का वातावरण अच्छा बनता है। इसके विपरीत यदि प्रधानाध्यापक उच्च चरित्र का तथा प्रभावशाली नहीं होता तब विद्यालय का सम्पूर्ण वातावरण दूषित होता है तथा वह अवनति की ओर अग्रसर होता है।
(4) विद्यालय तथा समाज के मध्य की कड़ी- एक प्रधानाध्यापक का जितना सम्बन्ध विद्यालय से होता है उतना ही समाज से होता है। दूसरे शब्दों में, समाज प्रधानाध्यापक के माध्यम से ही विद्यालय से जुड़ता है। अतः प्रधानाध्यापक स्कूल और समाज के मध्य की कड़ी होता है।
प्रधानाध्यापक की विशेषताएँ या गुण
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि एक प्रधानाध्यापक विद्यालय का केन्द्र बिन्दु होता है। विद्यालय की उन्नति भी प्रधानाध्यापक की योग्यता पर ही निर्भर करती है। इसलिए इस पर नियुक्ति के समय यह देखना आवश्यक हो जाता है कि जिस व्यक्ति की इस पद के लिए नियुक्ति की जा रही है वह विशेष प्रतिभा सम्पन्न है अथवा नहीं, क्योंकि सामान्य प्रतिभा वाला व्यक्ति इस पद के दायित्व का पूर्ण रूप में निर्वाह नहीं कर सकता अतः उसका विशेष प्रतिभा- सम्पन्न होना आवश्यक है। इसका संक्षेप में निम्न प्रकार विवेचन किया जा सकता है।
(1) कुशल नेतृत्व की योग्यता- एक प्रधानाध्यापक अपने विद्यालय का नेता होता है, क्योंकि उसके नेतृत्व में ही विद्यालय के समस्त कार्य संचालित होते हैं अतः उसमें कुशल नेतृत्व की योग्यता का होना आवश्यक होता है। एक प्रधानाध्यापक अध्यापकों, छात्रों एवं शैक्षणिक कार्यों के मध्य धुरी का कार्य करता है।
(2) सहयोगपूर्ण भावना- नेतृत्व की योग्यता के साथ प्रधानाध्यापक में सहयोगपूर्ण भावना का गुण होना भी आवश्यक है, क्योंकि इस भावना से ही वह अध्यापक मण्डल की सहायता से कार्य चला सकता है। अन्यथा यदि प्रधानाध्यापक में सहयोगपूर्ण भावना का अभाव होगा तब विद्यालय प्रबन्ध का कार्य समुचित रूप से नहीं चल सकता।
(3) ज्ञान के प्रति उत्सुक्ता-एक प्रधानाध्यापक के लिए यह अनिवार्य होता है कि विश्व के विभिन्न देशों में शिक्षा के क्षेत्र में, जो नवीन प्रयोग किये जा रहे हैं उनकी जानकारी प्राप्त करे तथा उन संस्थाओं से सम्पर्क बनाये रखे जो शिक्षा सम्बन्धी आन्दोलनों एवं योजनाओं को संचालित करती हैं। यह तभी सम्भव है जबकि प्रधानाध्यापक में ज्ञान के प्रति उत्सुकता हो।
(4) जनतन्त्रीय भावना- प्रधानाध्यापक का कार्य केवल एक तानाशाह एक तानाशाह की भाँति आदेश देना ही नहीं है वरन् उनमें यह योग्यता होनी चाहिए कि अध्यापक एवं छात्र उसे अपना शुभ चिन्तक समझकर स्वशासित हो जायें। इसके लिए अनुशासन सम्बन्धी विषयों का भार छात्रों पर छोड़ना तथा छात्र-परिषद् आदि का अयोजन करना विद्यालय के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए आवश्यक है।
(5) सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार- जनतन्त्रीय भावना से जुड़ा हुआ एक मुख्य गुण सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार है अर्थात, प्रधानाध्यापक को अन्य अध्यापकों को सेवक मानकर नहीं अपितु सहयोगी मानकर उनके साथ व्यवहार करना चाहिए। अध्यापकों के साथ आत्मीयता के भाव को प्रदर्शित करने के लिए यह आवश्यक होता है यदि किसी अध्यापक से कभी कोई भूल हो जाये तो उसे सुधारने के लिए उचित सलाह का आश्रय लेना चाहिए न कि दण्ड का। इसके अतिरिक्त समय-समय पर अध्यापकों से मिलकर उनकी परेशानियों को दूर करने का सुझाव प्रदान करना चाहिए।
(6) मैत्रीपूर्ण व्यवहार- मैत्रीपूर्ण व्यवहार कुशल नेतृत्व का एक महत्त्वपूर्ण पहलू होता है। अर्थात् वही व्यक्ति कुशल नेतृत्व कर सकता है जो अपने सहयोगियों के साथ मित्रसम व्यवहार करता है। चूँकि प्रधानाध्यापक भी नेतृत्व करता है इसलिए उसमें भी इस गुण का होना आवश्यक है।
(7) कुशल संयोजक-पाठशाला में विभिन्न कार्यों को वर्गीकृत करके उनकों अध्यापकों व छात्रों में उनकी योग्यतानुसार विभाजित करना, नवीन योजना बनाकर उन्हें कार्यरूप में परिणत करना, एक प्रधानाध्यापक के मुख्य कार्य होते हैं तथा उसके कर्तव्यों में स्कूल के कार्यक्रम का विभाजन, एकीकरण तथा विद्यालय की उन्नति या अवनति को ज्ञात करना मुख्य है। इस सब कार्यों एवं कर्त्तव्यों का पालन करने के लिए उसमें कुशल संयोजक का गुण होना बहुत आवश्यक है।
(8) आत्म-विश्वास की दृढ़ता- दृढ़ आत्म-विश्वास होना एक प्रधानाध्यापक में परमावश्यक गुण है। दृढ़ आत्म-विश्वास से यह तात्पर्य है कि वह जो भी आदेश प्रसारित करे वह पूर्ण विश्वास के साथ करे जिससे वह पूर्ण रूप में लागू हो। यथार्थ यह है कि एक प्रधानाध्यापक अपने दृढ़ विश्वास से ही विद्यालय के स्तर को ऊँचा उठा सकता है, क्योंकि केवल प्रधानाध्यापक स्वयं ही नहीं वरन् अध्यापक और कर्मचारी उसके दृढ़ विश्वास से प्रेरणा- प्राप्त करते हैं और कठिन से कठिन कार्य को पूर्ण करने में सफल हो जाते हैं।
(9) चरित्र की दृढ़ता- दृढ़ आत्मविश्वास और चारित्रिक दृढ़ता दोनों एक-दूसरे से जुड़े होते हैं, क्योंकि एक चरित्रवान् व्यक्ति में ही दृढ़ विश्वास होता है। कारण यह है कि यदि किसी प्रधानाध्यापक में चारित्रिक दुर्बलता होती है तो वह सदैव इस कल्पना से भयभीत रहता है कि कहीं मेरी दुर्बलता समाज के सामने न आ जाये।
(10) सामाजिक सम्पर्क स्थापित करने में दक्ष- एक विद्यालय का समूचे समाज से सम्बन्ध होता है, क्योंकि विद्यालय एक सामाजिक संस्था ही होती है। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि प्रधानाध्यापक समाज की अन्य संस्थाओं एवं व्यक्तियों से सम्पर्क बनाये। समय- समय पर छात्रों के माता-पिता अथवा अभिभावकों को बुलाकर उनसे विद्यालय की नूतन योजनाओं के सम्बन्ध में विचार-विमर्श करना चाहिए। यही विद्यालय और समाज दोनों के लिए हितकर होता है।
(11) भाषण कला में निपुण– प्रधानाध्यापक समाज का एक प्रतिष्ठित व्यक्ति माना जाता है। इसी कारण उसके सामने अनेक ऐसे अवसर आते हैं जबकि उसे जन-समुदाय को सम्बोधित करना पड़ता है। अनेक बार उसे विद्यालय को समस्याओं के सम्बन्ध में सम्मेलनों एवं गोष्ठियों में भाषण देना पड़ता है। इसके अतिरिक्त कभी-कभी छात्र भी आन्दोलन कर देते हैं और उनकी उग्र भीड़ को शान्त करना प्रधानाध्यापक का ही काम होता है।
(12) न्यायप्रिय- प्रधानाध्यापक में न्यायप्रियता का गुण होना बहुत आवश्यक है अर्थात् उसे अध्यापकों व छात्रों के साथ पक्षपात रहित होकर न्यायपूर्ण व्यवहार करना चाहिए।
(13) समय की नियमितता– विद्यालय में सभी छात्र व अध्यापक प्रधानाध्यापक का अनुगमन करते हैं। यदि प्रधानाध्यापक समय से विद्यालय में आता है तब सभी अध्यापक और छात्र भी समय से आते हैं, अन्यथा यदि प्रधानाध्यापक स्वयं देर से आता है तब वह अन्य को समय से आने के लिए नहीं कह सकता।
(14) प्रभावशाली व्यक्तित्व- व्यक्तित्व से अभिप्राय सुन्दर शरीर अथवा प्रभावशाली वेशभूषा से नहीं है वरन् प्रभावशाली व्यक्तित्व का अर्थ है उसमें आत्म-संयम, सहनशीलता, दया, प्रेम, दूरदर्शिता, कुशलता आदि मौलिक गुणों का समावेश होना चाहिए।
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