प्रच्छन्न पाठ्यक्रम | Hidden Curriculum in Hindi
प्रच्छन्न पाठ्यक्रम (Hidden Curriculum)- प्रच्छन्न पाठ्यक्रम को किसी शिक्षक की बजाय विद्यालय द्वारा पढ़ाया जाता है। छात्रों को ऐसा कुछ अधिगम करने को मिलता है जो कभी उनके विषय के पाठ में न तो पढ़ाया जाता है और न ही इसे प्रार्थना सभा में बताया जाता है। वे जीवन के इस उपागम को व शिक्षण की इस अभिकृति को स्वयं ही सीखते रहते हैं।
प्रच्छन्न पाठ्यक्रम का छात्रों पर बहुत प्रभाव पड़ता है और इसीलिए यह महत्वपूर्ण भी है। परन्तु यह राष्ट्रीय पाठ्यचर्या से अधिक महत्वपूर्ण नहीं है। उदाहरण के लिए एक नागरिकता के पाठ में विद्यालय द्वारा प्रजातन्त्र के बारे में बताया जाता है, लेकिन यदि छात्रों को विद्यालय में बोलने का अवसर नहीं दिया जाता और विद्यालय प्रणाली के द्वारा उनके साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार किया जाता है तो समाज के स्वरूप के बारे में एक ज्यादा उग्र व नकारात्मक संदेश छात्रों तक पहुंच सकता है।
“प्रच्छन्न पाठ्यक्रम एक व्यापक अर्थ में पूर्ण है जिसमें सभी प्रकार का अबूझ (unrecognized) और अनजाने ही प्राप्त ज्ञात मूल्यों व विश्वासों का समावेश होता है जो विद्यालयों व कक्षाओं की अधिगम प्रक्रिया का अंश होते हैं।”
प्रच्छन्न पाठ्यचर्या की अवधारणा को सबसे पहले सन् 1968 में के फिलिप जैक्सन (Philip Jackson) ने अपनी पुस्तक ‘Life in Classrooms’ में प्रयोग किया था जहाँ वे ध्यानपूर्वक कक्षा व विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों को पढ़ते हुए देखते थे। उनका विचार था कि हमें शिक्षा को समाजीकरण की प्रक्रिया के रूप में देखना चाहिए। पॉलो फ्रेरे (Paolo Friere) ने छात्रों, विद्यालयों व समाज पर पूर्वअनुमानात्मक शिक्षण के कई प्रभाव देखे जो सभी प्रच्छन्न पाठ्यक्रम का हिस्सा थे।
रेमण्ड हार्न (Raymond Horn) के अनुसार, “प्रच्छन्न पाठ्यचर्या एक व्यापक अनुभाग (Broad Category) है जिसमें सभी अपरिचित व अक्सर अघोषित (unintended) ज्ञान, मूल्य व विश्वास शामिल होते हैं जो कि विद्यालयों व कक्षाओं में अधिगम प्रक्रिया का एक अंश है।”
थॉमस सिल्वा (Thomos Silva) प्रच्छन्न पाठ्यचर्या को एक ऐसी पाठ्यचर्या के रूप में व्यक्त करते हैं जिसमें विद्यालयी वातावरण के वे सभी पहलू शामिल होते हैं जो बिना किसी अधिकारिक पाठ्यचर्या के सार्थक सामाजिक अधिगम को प्रकट करते हैं। अभिहालिया, व्यवहार, मूल्य तथा दिशा निर्देश प्रच्छन्न पाठ्यचर्या में सिखाए जाते हैं।
समाजशास्त्र ब्लैकवेल डिक्शनरी (Blackwell Dictionary) के अनुसार, “प्रच्छन्न पाठ्यचर्या एक अवधारणा है जिसका प्रयोग उन अबूझी व मौखिक चीजों का वर्णन करने में किया जाता है जिन्हें विद्यालय में छात्रों को सिखाया जाता है।”
(Michael Haralambos) के अनुसार, “प्रच्छन्न पाठ्यचर्या में वे सभी वस्तुएँ शामिल हैं जिन्हें छात्र संस्थानों द्वारा कथित शिक्षक उद्देश्यों की अपेक्षा विद्यालय में उपस्थिति के दौरान अपने अनुभवों में सीखते हैं।”
इस प्रकार प्रच्छन्न पाठ्यक्रम एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग उन सभी अलिखित नियमों और व्यवहार की अपेक्षाओं हेतु किया जाता है जिनकी सभी से जानने की अपेक्षा तो की जाती है परन्तु कभी सिखाया नहीं जा सकता। आगे जो कुछ भी वर्णित किया जाता है उसे हमारे अधिकतर विद्यालयों में जाना जा सकता है। छात्र अपने मित्रों से बात करते समय चार अक्षर वाले शब्दों Slang भाषा का प्रयोग करते हैं, परन्तु ऐसा वह शिक्षकों की स्थिति में बिल्कुल भी नहीं करते। वे पूरी तरह से जागरूक रहते हैं कि कौन-से शिक्षक उनकी आपस की बातचीत को सहन कर सकते हैं और कौन-से शिक्षक नहीं सहन कर सकते हैं। छात्र यह जानते हैं कि यदि शिक्षक पूरी कक्षा से खराब प्रदर्शन के कारण नाराज हैं तो उसे बेवकूफ बनाने का यह सही समय नहीं है। इस प्रकार किस प्रकार व्यवहार किया जाये और कैसा व्यवहार न किया जाये (How not to behave) प्रच्छन्न पाठ्यचर्या का एक अंश है। यह ऐसा कुछ है जिसमें कोई भी विद्यालय की सामाजिक प्रणाली का अंग बनकर सीख सकता है। यह एक अभाषिक व अस्पष्ट शैक्षिक सामाजिक व सांस्कृतिक सन्देश है जिन्हें छात्रों द्वारा विद्यालय में एक-दूसरे से सम्प्रेषित किया जाता है।
प्रच्छन्न पाठ्यचर्या औपचारिक पाठ्यचर्या द्वारा सिखाये गये पाठों को प्रबल करती है या औपचारिक पाठ्यचर्या में प्रकट विचारों व परिकल्पनाओं का विरोध द्वारा सत्यापन करती है।
प्रच्छन्न पाठ्यक्रम की विशेषतायें (Characteristics of Hidden Curriculum)
1. प्रच्छन्न पाठ्यक्रम प्रायः छात्रों, शिक्षकों व वृहद समाज द्वारा अनजानी (unacknowledged) व अपरीक्षित होती है।
2. प्रच्छन्न पाठ्यक्रम विद्यालय संस्कृति से प्रभावित होती है। उदाहरणार्थ कुछ विद्यालयों में बोर्ड परीक्षाओं में मूल्य प्रदर्शन को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके लिए विद्यालय अनावश्यक रूप से उन छात्रों को कक्षा में रोक भी सकता है, जो औसत प्रदर्शन दिखाते हैं। इस प्रकार छात्रों, अभिभावकों व समुदाय द्वारा यही सन्देश लिया जाता है कि विद्यालय खराब प्रदर्शन को सहन नहीं करता।
3. सांस्कृतिक मूल्य व सांस्कृतिक अपेक्षाएँ प्रच्छन्न पाठ्यचर्या का एक अभिन्न अंग (integral part) हैं। विद्यालय जहाँ पर स्थित होता है उसकी अपनी एक विशिष्ट संस्कृति होती है जो प्रच्छन्न पाठ्यचर्या का आकार देती है। विद्यालय की दृष्टि व लक्ष्य (Vision and Mission) तथा सांस्कृतिक मूल्य जो उस परिवेश में व्याप्त होते हैं, सभी इस प्रच्छन्न पाठ्यचर्या को प्रभावित करते हैं। एक विद्यालय जहाँ सम्भ्रान्त परिवारों के बच्चे पढ़ते हैं, किसी भी प्रकार की असभ्यता को स्वीकार नहीं करता। दूसरी तरफ एक ऐसे विद्यालय के परिवेश पर विचार किया जहाँ अधिकतर कम आय वर्ग के परिवारों के बच्चे पढ़ते हैं तो ऐसे विद्यालय में यदि यूनिफार्म भी प्रेस नहीं होती है तो इससे बच्चों या विद्यालय के अधिकारियों को कोई फर्क नहीं पड़ता है। पहले वाले विद्यालय में, यह अलिखित व अभाषिक सन्देश व्याप्त रहता है कि विद्यालय में चुस्त दुरुस्त पोशाक में आओ, जबकि दूसरे विद्यालय में इस तरह का सन्देश छात्रों में व्याप्त नहीं रहता। इसके पीछे छिपा कारण प्रच्छन्न पाठ्यचर्या का क्रियान्वयन ही है।
प्रच्छन्न पाठ्यचर्या प्रायः स्तर के निर्धारण का प्रश्न है, विशेष रूप से, उस विद्यालयी परिवेश में व्याप्त सामाजिक, आर्थिक श्रेणीक्रम का। इसीलिए कोई भी व्यक्ति प्रच्छन्न पाठ्यचर्या पर सवाल नहीं उठाता। यह प्रणाली का इतना महत्वपूर्ण अंश बन जाता है कि यह विस्मरण हो जाता है कि यह स्कूल के मानकों का हिस्सा नहीं है। प्रच्छन्न पाठ्यचर्या, छात्रों को मूल्यों, दृष्टिकोणों/अभिवृत्तियों तथा सिद्धान्तों का गुप्त सन्देश देती है। उदाहरण के लिए, जब विद्यालय में शिक्षक समर्थित स्टाफ (Supported Staff) से विनम्रतापूर्वक बात करते हैं तो छात्र अप्रत्यय रूप से, कार्य को महत्व दिये बिना स्तर का ख्याल रखे बिना सभी का सम्मान करना सीखते हैं।
प्रच्छन्न पाठ्यचर्या को विद्यालयी व्यवस्था के समाजीकरण के रूप में समझा जा सकता है। कुछ तरीकों से यह भी कहा जाता है कि यह प्रच्छन्न पाठ्चर्या, नियमित पाठ्यचर्या से भी अधिक महत्वपूर्ण है।
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