टिप्पणी लेखन की प्रक्रिया पर प्रकाश डालिए।
टिप्पणी लेखन (Noting)- सरकारी कार्यप्रणाली में विचाराधीन कागज के बारे में उनके निपटान हेतु सुझाव या निर्णय देने के परिणामस्वरूप जो अभियुक्तियाँ (Remarks) फाइल पर लिखी जाती हैं, उसे टिप्पणी (Noting) कहते हैं, अर्थात आवृत्तियों अथवा विचाराधीन मामलों के बारे में संक्षेप में महत्वपूर्ण बातों को लिखित रूप में उल्लिखित करना। सरकारी कार्यालयों में पत्र-विशेष के निपटान के लिए उस पर सहायकों से लेकर आवश्यकतानुसार सचिव, मंत्री या प्रधानमंत्री तक जो संक्षिप्त मंतव्य लिखा जाता है, उसे टिप्पण या टिप्पणी (Noting) कहा जाता है।
कार्यालयों के कार्य से सम्बन्धित मामलों पर जो आदेश, ज्ञापन या पत्रादि आते हैं, पर उस कार्यालय के अधिकारियों तथा कर्मचारियों को आवश्यक निर्णय लेकर ही अपनी कार्य सीमा के अर्न्तगत उन पर कार्यवाही करनी पड़ती है। प्राय: ऐसा होता है कि स्वयं किसी कार्यालय विशेष को अपनी ही किसी योजना के प्रसारण या कार्य-सम्पादन के लिए दूसरे विभिन्न सम्बद्ध या अधीनस्थ कार्यालयों को पत्र भेजने पड़ते हैं। उन पत्रों को जारी करने के पहले उन पर सक्षम अधिकारी या अधिकारियों का अनुमोदन लेना पड़ता है। इस तरह की कार्यवाही करने के लिए टिप्पणियाँ लिखनी पड़ती हैं।
टिप्पणी के संदर्भ के रूप में पूर्ववर्ती पत्रों का सार, निर्णय आदि हेतु प्रश्न तथा विवरणादि सब कुछ अंकित किया जाता है। वास्तव में सभी प्रकार की टिप्पणियाँ सम्बन्धित कर्मचारी – अधिकारियों द्वारा विचाराधीन मामले के कागज पर लिखी जाती हैं। कार्यालयीन आवश्यकता के अनुसार अत्यधिक महत्व प्राप्त मामलों में अनुभाग अधिकारी आदि के स्तर से टिप्पणी आरम्भ होती है, अन्यथा मामले के स्वरूप के अनुसार परम्परागत रूप से टिप्पणी लिपिक अथवा सहायक (Assistant) के स्तर में शुरू की जाती है। मंत्री, प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति आदि के द्वारा लिखी गयी विशेष टिप्पणियाँ मिनट’ (Minute) कही जाती हैं।
प्रक्रिया- कार्यालयीय टिप्पणी में निम्नलिखित बातों का सामान्यतः समावेश रहता है-
1. पूर्ववर्ती पत्र का सार-संक्षेप,
2. मामले का विश्लेषण
3. अनुवर्ती कार्यवाही के बारे में सुझाव तथा
4. निर्णय के लिए अभिमत।
टिप्पणी लेखन की प्रक्रिया सरकारी कार्यालयों में कुछ इस प्रकार की होती है-
(1) कार्यालय का लिपिक अथवा सहायक प्राप्त पत्र पर टिप्पणी लिखता है।
(2) कार्यालय का अधीक्षक अथवा अनुभाग अधिकारी उक्त टिप्पणी को पढ़कर उस पर हस्ताक्षर करता है। सहायक द्वारा लिखी गयी पूर्ववर्ती टिप्पणी पर अपना मत या करना चाहे तो अपनी टिप्पणी के साथ अवर सचिव को प्रस्तुत करता है।
(3) पूर्व प्रक्रिया के अनुसार अवर सचिव (Under Secretary) अपने विचारों को टिप्पणी के अनुसार उसे उपसचिव के पास प्रस्तुत करता है। यदि विचाराधीन मामला उपसचिव (Deputy Secretary) के स्तर पर निपटाया जा सकता है तो वह आवश्यक आदेश देकर उस पर हस्ताक्षर करता है और उस मामले का निपटान हो जाता है।
(4) यदि मामला अधिक महत्वपूर्ण और गम्भीर है तो उपसचिव उस पर अपनी टिप्पणी देकर उसे आवश्यक कार्यवाही हेतु संयुक्त सचिव (Joint Secretary) या अपर सचिव को भेज देता है।
(5) संयुक्त सचिव अथवा सचिव के स्तर पर यदि मामले का निपटान न होता हो तब आवश्यक टिप्णियों के बाद मामला आवश्यक निर्णय लेने हेतु संबंधित मंत्री अथवा प्रधानमंत्री आदि के पास भेज दिया जाता है। इस प्रकार कुछ महत्वपूर्ण मामलों का निपटान उच्च स्तर पर किया जाता है।
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