संक्षेपण के नियम | Rules of Abbreviation in Hindi
संक्षेपण के सामान्य नियमों का वर्णन कीजिए।
संक्षेपण के नियम- यद्यपि संक्षेपण के निश्चित नियम नहीं बनाये जा सकते, तथापि अभ्यास के लिए कुछ सामान्य नियमों का उल्लेख किया जा सकता है। वे इस प्रकार हैं-
1. मूल सन्दर्भ को ध्यानपूर्वक पढ़ें। जब तक उसका सम्पूर्ण भावार्थ (substance) स्पष्ट न हो जाय, तब तक संक्षेपण लिखना आरम्भ नहीं करना चाहिए। इसके लिए यह आवश्यक है कि मूल अवतरण कम-से-कम तीन बार पढ़ा जाय।
2. मूल के भावार्थ को समझ लेने के बाद आवश्यक शब्दों, वाक्यों अथवा वाक्यखण्डों को रेखांकित करें, जिनका मूल विषय से सीधा सम्बन्ध हो अथवा जिनका भावों या विचारों की अन्विति में विशेष महत्व हो। इस प्रकार, कोई भी तथ्य छूटने न पायेगा।
3. संक्षेपण मूल सन्दर्भ का संक्षिप्त रूप है, इसलिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इसमें अपनी ओर से किसी तरह की टीका-टिप्पणी अथवा आलोचना-प्रत्यालोचना न हो। संक्षेपण के लेखक को न तो किसी मतवाद के खण्डन का अधिकार है और न ही अपनी ओर से मौलिक या स्वतन्त्र विचारों को जोड़ने की छूट है। उसे तो मूल के भावों अथवा विचारों के अधीन रहना है और उन्हें ही संक्षेप में लिखना है।
4. संक्षेपण को अन्तिम रूप देने के पहले रेखांकित वाक्यों के आधार पर उसकी रूपरेखा तैयार करनी चाहिए, फिर उसमें उचित और आवश्यक संशोधन (जोड़-घटाव) करना चाहिए। यहाँ एक बात ध्यान रखने की यह है कि मूल सन्दर्भ के विचारों की क्रमव्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन किया जा सकता है। यह कोई आवश्यक नहीं है कि जिस क्रम में मूल लिखा गया है, उसी क्रम में संक्षेपण भी लिखा जाय। लेकिन, यह अत्यन्त आवश्यक है कि विचारों का तारतम्य बना रहे। ऐसा मालूम हो कि एक वाक्य का दूसरे वाक्य से सीधा सम्बन्ध बना हुआ है।
5. उक्त रूपरेखा को अन्तिम रूप देने के पहले उसे एक-दो बार ध्यान से पढ़ना चाहिए, ताकि कोई भी आवश्यक विचार छूटने न पायें। जहाँ तक हो सके, वह अत्यन्त संक्षिप्त हो। यदि शब्दसंख्या पहले से निर्धारित हो, तो यह प्रयत्न करना चाहिए कि संक्षेपण में उस निर्देश का पालन किया जाय। सामान्तया उसे मूल सन्दर्भ का एक-तिहाई होना चाहिए।
6. अन्त में, संक्षेपण को व्याकरण के सामान्य नियमों के अनुसार एक क्रम में लिखना चाहिए।
7. उपर्युक्त सारी क्रियाओं के बाद संक्षेपण के भावों और विचारों के अनुकूल एक संक्षिप्त शीर्षक दे देना चाहिए। शीर्षक ऐसा हो, जो सभी तथ्य को समेटने की क्षमता रखे। शीर्षक लघु और कम-से-कम शब्दोंवाला होना चाहिए।
8. संक्षेपण में विशेषणों और क्रियाविशेषणों के लिए स्थान नहीं है। इन्हें निकाल देना चाहिए। संक्षेपण की शैली अलंकृत नहीं होनी चाहिए; उसे हर हालत में आडम्बरहीन होना चाहिए।
9. संक्षेपण में मूल के उन्हीं शब्दों को रखना चाहिए, जो अर्थव्यंजना में सहायक हों। जहाँ तक सम्भव हो, मूल के शब्दों के बदले दूसरे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए, लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि मूल के भावों और विचारों में अर्थ का उलट-फेर न होने पाये।
10. संक्षेपण में मूल अवतरण के वाक्यखण्डों के लिए एक-एक शब्द का प्रयोग होना चाहिए, जो मूल के भावोत्कर्ष में अधिक-से-अधिक सहायक सिद्ध हों। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं।
वाक्यखण्ड | एक शब्द |
एक से अधिक पत्नी रखने की प्रथा | बहुपत्नीत्व |
जिसका मन अपने काम में नहीं लगता | अन्यमनस्क |
जहाँ नदियों का मिलन हो | संगम |
किसी विषय का विशेष ज्ञान रखनेवाला | विशेषज्ञ |
कष्ट से होनेवाला काम | कष्टसाध्य |
जहाँ मुहावरों और कहावतों का प्रयोग हुआ हो, वहाँ उनके अर्थ को कम-से-कम शब्दों में लिखना चाहिए। मुहावरे के लिए मुहावरा रखना ठीक न होगा।
11. संक्षेपण की शैली अलंकृत नहीं होनी चाहिए, इसलिए उपमा (simile), उत्प्रेक्षा (metaphor) या अन्य अलंकारों का प्रयोग नहीं होना चाहिए; अप्रासांगिक बातों, उद्धरणों और विचारों की पुनरावृत्ति भी हटा देनी चाहिए। संक्षेपण की भाषाशैली स्पष्ट और सरल होनी चाहिए, ताकि पढ़ते ही उसका मर्म समझ में आ जाय।
12. संक्षेपण की भाषाशैली व्याकरण के नियमों से नियंत्रित होनी चाहिए, वह टेलीग्राफिक न हो।
13. संक्षेपण में परोक्ष कथन (indirect narration) सर्वत्र अन्य पुरुष में होना चाहिए। जिस तरह किसी समाचारपत्र का संवाददाता अपने वाक्यों की रचना में परोक्ष कथन का प्रयोग करता है, उसी तरह संक्षेपण में उसका व्यवहार होना चाहिए। संवादों के संक्षेपण में इसका उपयोग सर्वथा अनिवार्य है। ऐसा करते समय एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि हिन्दी में जब वाक्यों को परोक्ष ढंग से लिखना होता है, तब सर्वनाम क्रिया या काल को बदलने की जरूरत नहीं होती, केवल ‘कि’ जोड़ देने से काम चल जाता है। लेकिन अंग्रेजी में ऐसा नहीं होता। एक उदाहरण इस प्रकार है-
- प्रत्यक्ष वाक्य (Direct narration)- राम ने कहा- ‘मैं जाता हूँ।
- परोक्ष वाक्य (Indirect narration)- राम ने कहा कि मैं जाता हूँ।
14. संक्षेपण की वाक्यरचना में लम्बे-लम्बे वाक्यों और वाक्यखण्डों का व्यवहार नहीं होना चाहिए, क्योंकि उसे हर हालात में सरल और स्पष्ट होना चाहिए, ताकि एक ही पाठ में मूल के सारे भाव समझ में आ जायें। अत: संक्षेपण में शब्द इकहरे, वाक्य छोटे, भाव सरल और शैली आडम्बरहीन होनी चाहिए।
15. संक्षेपण में शब्दों के प्रयोग में संयम से काम लेना चाहिए। कोई भी शब्द बेकार और बेजान न हो। उन्हीं शब्दों का प्रयोग करना चाहिए, जिनका प्रासंगिक महत्व है। मूल के उन्हीं शब्दों का प्रयोग करना चाहिए जो भावव्यंजना और प्रसंगों के अनुकूल सार्थक है जिनके बिना काम नहीं चल सकता। शब्दों को दुहराने की कोई आवश्यकता नहीं। अप्रचलित शब्दों के स्थान पर प्रचलित और सरल शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
16. संक्षेपण की भाषाशैली में साहित्यिक चमत्कार और काव्यात्मक लालित्य लाने का प्रयत्न व्यर्थ है। इसलिए यहाँ न तो भाषा को सजाने-सँवारने की आवश्यकता है और न उसके भावों को ललित-कलित बनाने की। जो कुछ लिखा जाय, वह साफ हो, स्पष्ट हो। कल्पना के पंख लगाकर उड़ना यहाँ नहीं हो सकता। संक्षेपण की कला तलवार की धार पर चलने की कला है। इसके लिए कुशाग्र बुद्धि, गहरी पैठ और तीव्र मनोयोग की आवश्यकता है। यह काम अभ्यास से ही सम्भव है। अतएव, आवश्यक है कि संक्षेपण के लेखक की दृष्टि हर तरह वस्तुवादी हो भावुक नहीं।
17. संक्षेपण से समानार्थी शब्दों को हटा देना चाहिए। ये एक ही भाव या विचार को बार-बार दुहराते हैं। इसे पुनरुक्तिदोष कहते हैं। अंग्रेजी में इसे Verbosity कहते हैं, उदाहरणार्थ- ‘आजादी स्वतन्त्रता, स्वाधीनता, स्वच्छन्दता और मुक्ति को कहते हैं। यहाँ ‘आजादी’ के लिए अनेक समानार्थी शब्दों का प्रयोग हुआ है। भाषण में प्रभाव जताने के लिए ही वक्ता इस प्रकार की शैली का सहारा लेता है। संक्षेपण में ऐसे शब्दों को हटाकर इतना ही लिखना चाहिए कि ‘आजादी मुक्ति का दूसरा नाम है।’ संक्षेपण की कला कम-से-कम शब्दों में निखरती है।
18. पुनरुक्तिदोष शब्दों में ही नहीं, भावों अथवा विचारों में भी होता है। कभी-कभी एक ही वाक्य से एक ही बात को विभिन्न रूपों में रख दिया जाता है। उदाहरण के लिए एक वाक्य इस प्रकार है-‘रंगमंच पर कलाकार क्रमश: एक-एक कर आये’। इस वाक्य में क्रमशः’ शब्द ‘एक-एक कर’ के भाव को दुहराता है। दोनों का एक ही अर्थ है, इसलिए ऐसे शब्दों को हटा देना चाहिए। अंग्रेजी में इस दोष को Tautology कहते हैं।
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