विज्ञापनों का महत्त्व पर निबंध
प्रस्तावना- आधुनिक समय का आर्थिक तथा सामाजिक ढाँचा विज्ञापनों पर आधारित है। विभिन्न वस्तुओं के निर्माता अपनी वस्तुओं का विक्रय बढ़ाने के लिए विज्ञापनों पर आश्रित हैं। इसीलिए विज्ञापन कला के विशेषज्ञों तथा विज्ञापनों पर आज का निर्माता असीम धनराशि खर्च करता है, क्योंकि विज्ञापन जितना आकर्षक एवं प्रभावी होगा, वस्तुओं की बिक्री उतनी ही अधिक होगी तथा उत्पादक भी लाभ पा सकेगा। आज तो सुई से लेकर बड़े-बड़े विमानो को भी विज्ञापन की सहायता लेनी पड़ती हैं। यदि यह कहा जाए कि आज का युग विज्ञान तथा विज्ञापन का युग है, तो अतिशयोक्ति न होगी।
अर्थ एवं स्वरूप- जब समाचारपत्रों में सर्वसाधारण के लिए कोई सूचना प्रकाशित की जाती है, तो उसको विज्ञापन कहते हैं। यह सूचना नौकरियों से सम्बन्धित हो सकती है, खाली मकानों को किराए पर उठाने के सम्बन्ध में हो सकती है, या किसी औषधि, शैम्पू, साबुन आदि के प्रचार से सम्बन्धित हो सकती है। शादी ब्याह से लेकर पहेली प्रतियोगिता तक, अचार-मुरब्बे से लेकर जन्म घुट्टी तक जितनी भी प्रचार सम्बन्धी सूचनाएँ समाचारपत्रों में प्रकाशित होती है, वे सभी विज्ञापन की ही श्रेणी में आती है। अतः विज्ञापन वह विक्रय कला है जो वस्तुओं तथा विचारों की सूचना देती है एवं विक्रय व्यवस्था में मदद करती है।
विज्ञापन-जगत का शुभारम्भ- कई साल पहले जब समाचारपत्रों का अभाव था, तब विज्ञापन शब्द के बारे में लोग जानते भी नहीं थे। किसी भी वस्तु के गुण का गुणगान मौखिक परम्परा के द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे, तीसरे, चौथे तक पहुँचती-पहुँचती अपना क्षेत्र तैयार कर लेती थी। उस समय लोगों की आवश्यकताएँ भी अधिक विस्तृत नहीं थी, वे थोड़े में ही सन्तोष कर लेते थे किन्तु विज्ञापन की तीव्र प्रगति के साथ-साथ हमारी आवश्यकताएँ भी निरन्तर बढ़ रही हैं तथा हमारे रहन-सहन का स्तर भी बढ़ रहा है। इसी के परिणामस्वरूप विज्ञापनों का शुभारम्भ हुआ।
विज्ञापन के कार्यक्षेत्र- विज्ञापन एक प्रभावशाली कला है, जिसका सर्वाधिक विकास विकसित देशों में हुआ है। भारतवर्ष में विज्ञापन यूरोप की देन है। विज्ञापन का कार्यक्षेत्र भी बहुत विस्तृत है। सर्वप्रथम यह एक व्यवसायिक कला है। उत्पादक विज्ञापन द्वारा ही अपने उत्पादन की गुणवत्ता का प्रचार जन साधारण के बीच करता है तथा ग्राहक के बीच माध्यम का कार्य विज्ञापन ही करते हैं। आज कितनी ही वस्तुओं का ज्ञान तो हमें विज्ञापनों द्वारा ही प्राप्त होता है। विज्ञापन व्यवसायिक के साथ-साथ शिक्षाप्रद भी होते हैं तभी तो नयी-नयी बीमारियों तथा उनके निवारण की जानकारी हमें विज्ञापनों द्वारा प्राप्त होती है।
विज्ञापन के माध्यम- विज्ञापन देने के लिए अलग-अलग माध्यम अपनाएँ जाते हैं। सर्वप्रथम समाचारपत्रीय विज्ञापन प्रकाशित किए जाते हैं, जिनमें पत्र-पत्रिकाएँ एवं समाचार-पत्रों का विशेष स्थान है। विज्ञापन बोर्डी, विज्ञापन पोस्टरों, स्टेशनो तथा स्टीमरो द्वारा तथा बस एवं रेलगाड़ियों द्वारा भी विज्ञापन प्रकाशित किए जाते हैं। इन सबके अतिरिक्त मनोरंजक साधन जैसे रेडियो, टेलीविजन, वीडियो फिल्मे, नाटक, संगीत, मेले, दूरदर्शन आदि भी विज्ञापन के साधन हैं लेकिन इन सबमें टेलीविजन की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि टेलीविजन पर दिखाए जाने वाले विज्ञापन जनसाधारण पर सबसे अधिक प्रभाव बामा छोड़ते हैं।
आधुनिक समय में विज्ञापन- कला का महत्त्व- किसी भी देश के राष्ट्रीय जीवन-निर्माण में विज्ञापन महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। विज्ञापनों के उचित प्रयोग से विभिन्न वस्तुओ के निर्माता ग्राहकों के सम्पर्क में आते हैं। उन्हें नए-नए ग्राहक बनाने का अवसर मिलता है, जिससे उनकी ख्याति में वृद्धि होती है तथा उनके उत्पादन की स्थायी माँग बढ़ती है। इन विज्ञापनो से उत्पादक को ही लाभ नहीं पहुँचता, वरन् उपभोक्ता वर्ग को भी विज्ञापन से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। विज्ञापन से उपभोक्ताओं के ज्ञान में वृद्धि होती है और उनके पास अपनी पसन्द की वस्तु चुनने की पूरी छूट होती है। वे सही मूल्य पर अपनी रुचि के अनुरूप वस्तुएँ खरीद पाते हैं। विज्ञापन समाज के लिए भी बहुत लाभकारी है। विभिन्न विचित्र मुद्राओं के चित्र, आकर्षक भावपूर्ण शैली, लालसा एवं कौतूहल उत्पन्न करने वाले ढंग बरबस ही हमें मोह लेते हैं। विज्ञापनों से ही मुख्य उत्पादकों के अतिरिक्त कई लोगों की रोजी-रोटी चलती है। विज्ञापनों से समाज के रहन-सहन में भी सुधार आता है तथा सभ्यता का भी विकास होता है।
विज्ञापन की हानियाँ- विज्ञापन से लाभ के अतिरिक्त हानियाँ भी हैं। सच्चाई एवं ईमानदारी के अभाव में विज्ञापन देश की समृद्धि एवं सर्वसाधारण की उन्नति में, विश्वास में, व्यवहार में एक प्रकार की दुविधा सी पैदा कर देते हैं। कुछ लोगों का विचार है कि विज्ञापन कोरा अपव्यय है। यह धन तथा समय दोनों की बर्बादी है। कभी-कभी विज्ञापनों से प्रेरित होकर लोग बेमतलब की वस्तुएँ भी खरीद लेते हैं; विशेषकर ग्रहणियाँ तो इन विज्ञापनों के मोहजाल में बहुत जल्दी फँस जाती है। बच्चे भी विज्ञापन देख देखकर फालतू के खिलौने, खाने की वस्तुएँ आदि खरीदने की जिद करते हैं, जो सेहत तथा पैसे दोनों की बरबादी है। अश्लील विज्ञापनों से समाज में नैतिकता का पतन होता है।
उपसंहार- कुछ कमियों के होते हुए भी आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में विज्ञापनों का बहुत महत्त्व है। विज्ञापन से ही हमारे व्यापार को गौरवशाली स्वस्थता मिलती है। राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार-विस्तृत करने हेतु विज्ञापन नितान्त आवश्यक है। भारत जैसे विकासशील राष्ट्र मे तो इन विज्ञापन की महत्ता और भी अधिक बढ़ जाती है।
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