ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रारम्भिक शैक्षिक कार्य | Educational Works of East India Company
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रारम्भिक शैक्षिक कार्य – भारत प्राचीन समय से ही अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र बिन्दु रहा है। सर्वप्रथम भारत के जल मार्ग की खोज पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा ने सन् 1498 में की। भारत के जल मार्ग की खोज के बाद सबसे पहले सन् 1510 में पुर्तगाली व्यापारी आये। इनकी सफलता से प्रभावित होकर महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने ‘ईस्ट इण्डिया कम्पनी’ को भारत में व्यापार करने की अनुमति दी। कैप्टिन हॉकिन्स के आग्रह करने पर बादशाह जहाँगीर ने सन् 1613 में कैप्टिन हॉकिन्स को सूरत में अपने कारखाने एवं व्यापारिक केन्द्र खोलने की आज्ञा प्रदान कर दी। इन्होंने सूरत के बाद धीरे-धीरे बम्बई, कलकत्ता और मद्रास में अपने केन्द्र स्थापित किये।
सन् 1698 में ब्रिटेन की सरकार ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी को अपने नये आज्ञा पत्र में अपनी छावनियों में पादरी रखने और विद्यालय चलाने की आज्ञा प्रदान की। सन् 1757 के प्लासी युद्ध और सन् 1764 के बक्सर के की विजय के बाद कम्पनी बंगाल, बिहार और अवध प्रान्तों की शासक बन गयी। अब कम्पनी के सामने उनके क्षेत्र के अधीन बच्चों की शिक्षा की समस्या पैदा हुई। इस सम्बन्ध में कम्पनी में दो मत उभरे। एक वर्ग का मत था कि भारत में अंग्रेजी प्रणाली की शिक्षा की व्यवस्था की जाये। भारतीयों को पाश्चात्य भाषा, साहित्य, ज्ञान और विज्ञान की शिक्षा दी जाये और उसके साथ-साथ उन्हें ईसाई धर्म एवं संस्कृति की शिक्षा भी दी जाये। दूसरे वर्ग का मत था कि भारतीयों को पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान से परिचित न कराया जाये, उन्हें केवल उनकी भाषाओं का सामान्य ज्ञान कराया जाये और साथ में ईसाई धर्म की शिक्षा दी जाये।
ईस्ट इण्डिया कम्पनी को अपने व्यापारिक और शासन दोनों क्षेत्रों में कनिष्ठ पदों पर कार्य करने के लिये अंग्रेजी पढ़े-लिखे भारतीयों की आवश्यकता थी। कम्पनी ने अपनी शिक्षा नीति में परिवर्तन कर उच्च शिक्षा की संस्थाएँ खोलना शुरू किया। कम्पनी ने सन् 1781 में कलकत्ता मदरसा सन् 1791 में बनारस संस्कृत कॉलेज और सन् 1800 में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की। यहाँ इन कॉलेजों का सामान्य परिचय प्रस्तुत है-
(1) कलकत्ता मदरसा (Calcutta Madarsa)-
वारेन हेस्टिंग भारत का गवर्नर जनरल सन् 1772 में नियुक्त हुआ। सन् 1781 में वारेन हेस्टिंग ने कलकत्ता मदरसे की स्थापना की। इस मदरसे की स्थापना के पीछे उसके दो मुख्य उद्देश्य थे-
(i) कलकत्ता के मुसलमानों की सद्भावना प्राप्त करना।
(ii) कम्पनी तथा शासन के कनिष्ठ पदों के लिये भारतीयों, विशेषकर मुसलमानों को तैयार करना।
इस मदरसे में 7 वर्षीय उच्च शिक्षा की व्यवस्था की गयी। इसके पाठ्यक्रम में अरबी, फारसी और मुस्लिम कानून की शिक्षा के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा व साहित्य, अंकगणित, रेखागणित, तर्कशास्त्र, नक्षत्रशास्त्र और दर्शन की शिक्षा को भी सम्मिलित किया गया। इसमें शिक्षा का माध्यम अरबी भाषा थी।
(2) बनारस संस्कृत कॉलेज (Banaras Sanskrit College)-
इस कॉलेज की स्थापन बनारस राज्य के तत्कालीन रेजीडेन्ट जानेथन डंकन ने सन् 1791 में की थी। इस कॉलेज की स्थापना के मुख्य दो उद्देश्य थे –
(i) भारत के मूल निवासी हिन्दुओं की सद्भावना प्राप्त करना।
(ii) कम्पनी तथा शासन के कनिष्ठ पदों पर कार्य करने के लिये भारतीयों, विशेषकर हिन्दुओं को तैयार करना।
इसके पाठ्यक्रम में संस्कृत और हिन्दी भाषा, हिन्दू धर्म -दर्शन और हिन्दू नियम-कानून की शिक्षा की व्यवस्था की गई और साथ ही अंग्रेजी भाषा और साहित्य, अंकगणित, रेखागणित, तर्कशास्त्र, नक्षत्रशास्त्र, दर्शन और इतिहास की शिक्षा की व्यवस्था की गई। इसमें शिक्षा का माध्यम हिन्दी और अंग्रेजी दोनों को रखा गया।
(iii) फोर्ट विलियम कॉलेज (Fort William College)-
इस कॉलेज की स्थापना भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड वैलेजली ने सन् 1800 में कलकत्ता में की। मुसलमानों के लिये कलकत्ता मदरसा तथा हिन्दुओं के लिये बनारस संस्कृत कॉलेज स्थापित किया गया था। फोर्ट विलियम कॉलेज इन दोनों के लिये स्थापित किया गया था और साथ ही प्रवासी अंग्रेजों के बच्चों की शिक्षा के लिये किया गया था। फोर्ट विलियम कॉलेज इन दोनों के लिये स्थापित किया गया था और साथ ही प्रवासी अंग्रेजों के बच्चों की शिक्षा के लिये किया गया था। इसके मुख्य उद्देश्य थे- हिन्दू, मुसलमान और अंग्रेज सभी को उच्च शिक्षा प्रदान करना और उन्हें सभी प्रकार के असैनिक कार्यों के लिये तैयार करना । इसका पाठ्यक्रम विस्तृत था। इसमें संस्कृत, हिन्दी, अरबी, फारसी और अंग्रेजी भाषा की शिक्षा की व्यवस्था की गयी थी और साथ ही इतिहास, भूगोल, राजनीतिशास्त्र, अंकगणित, रेखागणित, तर्कशास्त्र और दर्शन आदि अन्य विषयों की शिक्षा की व्यवस्था की गयी। इसमें शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी था। डॉ. केरे, कोलब्रूक और पं. ईश्वरचन्द्र विद्यासागर आदि विद्वान इसमें शिक्षक नियुक्त किये गये। डॉ. गिलक्राइस्ट सन् 1804 से 1820 तक इसके प्रिन्सिपल रहे।
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