जैव प्रदूषण का अर्थ
Meaning of Bio Pollution
जैव प्रदूषण (Bio pollution) वर्तमान वैज्ञानिक युग में जिस गति से औषधि विज्ञान में प्रगति हो रही है उसी गति मानव जीवन के लिये नये-नये खतरे विकसित होते जा रहे हैं। मानव में जहाँ एक ओर सृजनात्मकता प्रवृत्ति पायी जाती है वहीं दूसरी ओर उसमें विनाशात्मक प्रवृत्तियाँ भी बढ़ती जा रही हैं। मानव इतना सक्षम हो गया है कि बिना गोला-बारूद या तीर-तलवार चलाये मात्र जैव प्रदूषण के माध्यम से ही लाखों व्यक्तियों को काल का ग्रास बना सकता है। “जीवाणु (Bacteria), विषाणु (Virus) तथा अन्य सूक्ष्म जीवों (Microorganisms) जैसे प्लेग के पिस्सू आदि के द्वारा वायु, जल एवं खाद्य पदार्थों को प्रदूषित कर मनुष्यों को मृत्युकारित करना जैव प्रदूषण कहलाता है।”
वर्तमान में इस जैव प्रदूषण को जैव हथियार के रूप में प्रयोग किया जाने लगा है। अक्टूबर 2001 में संयुक्त राज्य अमेरिका के समाचार-पत्र सन के फोटो सम्पादक बॉब स्टीवेंस की एन्थेंक्स नामक रोग से हुई मृत्यु ने जैव प्रदूषण को जैव आतंक (Bio terrorism) का स्तर प्रदान कर दिया। इसके पश्चात् न केवल अमेरिका बल्कि भारत, पाकिस्तान तथा अन्य देशों में भी एन्थैक्स जीवाणु से प्रदूषित लिफाफे लोगों के पास पहुँचने लगे तथा कई देशों के निवासी इस जैव आतंक से भयाक्रान्त हो गये। रोगाणुओं की मारक क्षमता भी अपार है। ये परमाणु बम से भी अधिक प्राणघातक है। इसीलिये जैव अथियार के रूप में भी इनका प्रयोग किया जा सकता है। एक अध्ययन के अनुसार 100 किग्रा. एन्थैक्स के जीवाणु 10 से 30 लाख लोगों को मार सकते हैं। (यदि स्थितियाँ जीवाणुओं के लिये अनुकूल हों)। जबकि एक मेगा टन का परमाणु कम केवल 7.5 लाख से 19 लाख लोगों को ही मार सकता है। जैव प्रदूषण के कासरण जिम्बाब्से मकें सन् 1979 से 1985 तक 10000 मनुष्य काल कवलित हो गये थे।
जैव प्रदूषण के कारण (Causes of bio pollution)
जैव प्रदूषण का प्रमुख कारण जीवाणुओं, विषाणुओं तथा अन्य सूक्ष्म जीवाणुओं की उत्पत्ति है। ये जीवाणु एवं विषाणु मृदा, जल और वायु सभी स्थानों पर होते हैं। पर्यावरण में जीवाणुओं की उपस्थिति को हम सभी स्वीकार करते हैं। इनमें जीवाणु, वाइरस एवं कवक सम्मिलित हैं। जीवाणु न केवल मृदा, जल एवं वायु में वरन् खाद्य सामग्रियों एवं औषधियों आदि में भी पाये जाते हैं। इनमें से कुछ जीवाणु लाभदायक होते हैं तथा कुछ हानिकारक। ये हानिकारक जीवाणु ही जैव प्रदूषण के प्रमुख कारक हैं। उदाहरण के लिये, पोलियो वायरस, चेचक वायरस, पीतज्वर वायरस आदि। जीवाणु आविष तथा विषाणु आविष विभिन्न प्रकार के संक्रामक रोगों हैजा, टाइफाइड, टयूमर, कैन्सर, फेफड़े सम्बन्धी रोग तथा कान एवं हड्डियों का संक्रमण आदि को जन्म देते हैं।
कभी-कभी जन्तु या पौधों के शरीर में कुछ ऐसे विषैले पदार्थ उत्पन्न होते हैं जो मनुष्यों में भयंकर प्रभाव उत्पन्न करते हैं। वास्तव में मनुष्यों द्वारा ये पदार्थ भूलवश उपयोग कर लिये जाते हैं। उदाहरण के लिये, खुम्बी खाने वाले को पहचान न होने के कारण विषैली खुम्बियाँ भी उपयोग में लायी जा सकती हैं। ऐसे आलू जिसमें कलिकाएँ फूट रही हों में विषैले पदार्थ उत्पत्र हो जाते हैं। अनेक मछलियाँ विषैली होती हैं जो सामान्य मछली के स्थान पर खाये जाने से विषाक्तता उत्पन्न करती हैं। अनेक सामान्य उपभोक्ता पदार्थ; जैसे-पीतल या ताँबे के बर्तनों में रखे खाद्य पदार्थ खट्टे होकर विषाक्त हो सकते हैं। इस प्रकार कीटाणुनाशक, जीवाणुनाशक एवं अपतृणनाशक आदि पदार्थ भी भोजन को विषाक्त बनाते हैं। जीवाणुओं की अनेक जातियाँ भोजन की एक बड़ी मात्रा को नष्ट कर देती हैं। ये जीवाणु मृतजीवी होते हैं। अत: भोज्य पदार्थों पर ये एन्जाइम्स के द्वारा क्रिया करके उन्हें सड़ा-गला देते हैं। दूध का खट्टा होना तथा अनेक खाद्य पदार्थों का सड़ना अधिकांशत: जीवाणुओं के द्वारा ही होता है। अनेक मृतजीवी कवक भोज्य पदार्थों पर उगते हैं तथा उन्हें खराब करने के साथ-साथ विषैले पदार्थ उत्पन्न करते हैं जो अनेक प्रकार के रोगों को जन्म देते हैं।
जैव प्रदूषण के प्रभाव (Effects of bio pollution)
जैव प्रदूषण से उत्पन्न जीवाणु, विषाणु एवं सूक्ष्म जीव-जन्तुओं तथा वनस्पति जगत् को गभीर रूप में प्रभावित करते हैं। जब जैव प्रदूषण को जैव हथियार के रूप में भी प्रयुक्त किया जाने लगा है। जैव प्रदूषण के माध्यम से विभिन्न घातक रोगों को फैलाया जा सकता है; जैसे-एन्थैक्स, प्लेग, चेचक आदि। एन्थैक्स ‘मूलतः पशुओं का रोग है। इसे जहरीला बुखार भी कहते हैं । यह रोग बैसिलस एन्थ्रेसिस नामक जीवाणु द्वारा फैलता है। प्लेग भी बैक्टीरियाजनित रोग है। इसके बैक्टीरिया का नाम है- यर्सिनिया पेस्टिक। पहले यह महामारी के रूप में फैलता था तथा गाँव के गाँव इस बीमारी से समाप्त हो जाते थे परन्तु अब इसे नियन्त्रित कर लिया गया है। यह पिस्सुओं (मच्छर की तरह उड़ने वाला एक कीड़ा) द्वारा फैलता है। जब पिस्सू प्लेग से संक्रमिक चूहे को काटता है तो प्लेग के जीवाणु उसके शरीर में आ जाते हैं। इसके बाद जब यह मनुष्य को काटता है तो मनुष्य प्लेग से पीड़ित हो जाता है। प्लेग से पीड़ित व्यक्ति शीघ्र ही मर जाता है।
जैव प्रदूषण के बचाव के उपाय (Measures of prevention of bio pollution)
आधुनिक वैज्ञानिक एवं तकनीकी युग में जैव प्रदूषण सर्वाधिक प्रभावकारी है। द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान ने प्लेग संक्रमिक पिस्सुओं द्वारा प्रदूषण फैलाकर चीन के कुछ क्षेत्रों में बीमारी फैला दी थी। अतः सन् 1972 में सभी प्रकार के जैव हथियारों को निषिद्ध करने के लिये जैव हथियार सभा के प्रस्तावों पर विभिन्न देशों द्वारा हस्ताक्षर किये गये। सन् 1925 में रासायनिक तथा जैविक हथियारों को निषेध करने के लिये जिनेवा प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये गये। भारत में जैव प्रदूषण से बचने के लिये रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संगठन ने सन् 1972 में ग्वालियर में एक प्रयोगशाला स्थापित की। स्वास्थ्य मन्त्रालय ने सन् 10000 में राष्ट्रीय डिजीज सर्विलेन्स प्रोग्राम आरम्भ किया। इसके अन्तर्गत इण्डियन इस्टीट्यूट ऑफ कम्यूनिकेबल डिजीजेज का चौकसी प्रोग्राम कार्य कर रहा है। रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संगठन द्वारा एक ऐसा फिल्टर तैयार किया गया है जो सेना के सभी जवानों को सभी प्रकार के जैविक एवं रासामयिक आक्रमणों से सुरक्षित रखता है।
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