भारत में स्त्री की शिक्षा के स्रोत (Factors of Women’s Education in India in Hindi) –
भारत में स्त्री की शिक्षा के स्रोत को जानने से पहले हम जानेंगे की लिंग की समानता (Equality of Gender in Hindi) क्या होती है –
लिंग की समानता (Equality of Gender) –
लिंग की समानता से तात्पर्य है कि स्त्री व पुरूष में उनके लिंग के आधार पर कोई भेदभाग न करते हुये, उन्हें एक समान अधिकार प्राप्त हों। प्राचीन काल से ही हमारे देश में स्त्रियों की दशा बहुत ही दयनीय व सोचनीय रही है। कुछ लोग स्त्रियों को बोझ मानते हैं। इसलिये बालिका के जन्म लेते ही उसे मार देते हैं या फिर आजीवन तुच्छतापूर्ण व्यवहार करते हैं। स्त्रियों की स्थिति सुधारने व इनका प्रगतिशील विकास करने के लिये हमें मिल-जुलकर सोचना होगा व इसके लिये ठोस कदम उठाने होंगे। इसके लिये पुरुषों के समान स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए।
वर्तमान में हमारे देश की स्त्रियों की स्थिति में बहुत सुधार आया है। उनकी पारिवारिक, सामाजिक, शैक्षिक एवं आर्थिक स्थिति में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है। स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन का प्रमुख श्रेय स्त्री शिक्षा के प्रसार तथा प्रचार को जाता है।
पं. जवाहरलाल नेहरू के अनुसार, “मुझे सौ शिक्षित पुरुषों की अपेक्षा दस शिक्षित स्त्रियों की आवश्यकता है, आवश्यकता है, जिससे सम्पूर्ण राष्ट्र शिक्षित होगा।”
भारत में स्त्री की शिक्षा के स्रोत (Factors of Women’s Education in India)
1. राधाकृष्णन आयोग (1948-49)-
(i) स्त्रियों के लिये शिक्षा सम्बन्धी सुविधाओं को बढ़ाया जाये।
(ii) शिक्षित महिलाओं के बिना शिक्षित व्यक्ति नहीं हो सकते।
(iii) पाठयक्रम ऐसा होना चाहिए, जो बालिकाओं को समाज में उच्च स्थान व सम्मान दिला सके।
(iv) स्त्रियों के लिये व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए।
2. राष्ट्रीय महिला शिक्षा समिति (1958)-
(i) इस समिति को दुर्गाबाई देशमुख समिति कहकर भी पुकारा जाता है।
(ii) सरकार को प्रत्येक राज्य में स्त्री शिक्षा की प्रगति के लिये सुविधा सम्पन्न विद्यालयों की व्यवस्था करनी चाहिये।
(iii) गाँवों में स्त्री शिक्षा के प्रसार के लिये विशेष प्रयास करने चाहिए।
(iv) स्त्री शिक्षा के प्रसार के लिये राज्यों में लड़कियों तथा महिलाओं की शिक्षा की राज्य परिषदें (Council for Education for girl / women) गठित की जानी चाहिए।
कोठारी आयोग (1964) –
(i) इण्टरमीडिएट स्तर पर बालिकाओं के लिये अलग विद्यालय खोले जाने चाहिए।
(ii) बालिकाओं के लिये अल्पकालीन तथा व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए।
(iii) स्त्री शिक्षा के लिये अनुसंधान इकाइयों (Research units) की स्थापना की जानी चाहिए।
(iv) बालिकाओं की अनिवार्य शिक्षा के लिये और अधिक प्रयत्न किये जाने चाहिये।
(v) स्त्री शिक्षा के रास्ते में आने वाली सभी कठिनाइयों को समाप्त करने के लिये राज्य व केन्द्र को मिलकर निर्णय लेना चाहिए।
4. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986)-
(i) स्त्रियों की प्राथमिक शिक्षा के रास्ते में आने वाली समस्याओं का समाधान करने की उचित व्यवस्था करनी चाहिए।
(ii) लिंग-भेद जैसे उत्पन्न हो रहे विषयों को जड़ से समाप्त करना चाहिए।
(iii) स्त्रियों की प्रगति के लिये विभिन्न कला-कौशलों से सम्पन्न संस्थानों को खोलना चाहिये।
विभिन्न पाठ्यक्रमों में स्त्री शिक्षा के महत्व व अध्ययन हेतु पाठ्य-सामग्री को सम्मिलित करना चाहिए।
5. महिला समाख्या (1989)
(i) महिला समाख्या का अर्थ है- शिक्षा द्वारा महिलाओं को समानता देना।
(ii) यह कार्यक्रम आठ राज्यों के 51 जिलों में चलाया जा रहा है।
(iii) स्त्री शिक्षा के विकास हेतु 1955 में हिन्दू विवाह अधिनियम तथा 1952 में बना विशेष विवाह अधिनियम हैं
(iv) सन् 1983 में अपराधिक दण्ड संहिता अधिनियम तथा महिला का अश्लील प्रस्तुतीकरण विरोध अधिनियम 1986 में बनाया गया।
6. प्रो. राममूर्ति समिति (1991)-
(i) विद्यालयों में बाल विकास, पोषण तथा स्वास्थ्य का समावेश करना चाहिए।
(ii) स्त्रियों की शिक्षा के लिये अलग से धन की व्यवस्था करनी चाहिए।
(iii) छात्र तथा छात्राओं के लिये छात्रवृत्तियों तथा मुफ्त पाठ्य पुस्तकों का वितरण करना चाहिए।
(iv) विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में अधिक से अधिक अध्यापिकाओं की नियुक्ति करनी
चाहिए।
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