संवैधानिक विधि/constitutional law

संघात्मक एवं एकात्मक संविधान के क्या-क्या आवश्यक तत्व है ?

संघात्मक एवं एकात्मक संविधान के क्या-क्या आवश्यक तत्व है ?

संघात्मक एवं एकात्मक संविधान के क्या-क्या आवश्यक तत्व है ?

संघात्मक एवं एकात्मक संविधान के क्या-क्या आवश्यक तत्व है? विवेचना कीजिये।
What are the essential ingredients of a federal and unitary Constitution? Discuss.

संघात्मक शासन व्यवस्था

संविधान द्वारा केन्द्रीय तथा स्थानीय प्रशासन के बीच शक्तियों के वितरण के आधार पर आधुनिक सरकारों का वर्गीकरण संघीय तथा एकातम्क शासन  के रूप में भी किया जाता है। जहाँ शासन सत्ता एक ही केन्द्र में निहित होती है उस एकात्मक तथा जहाँ शकिायों का वितरण केन्द्र व स्थानीय इकाइयों के मध्य होता है उसे संघीय शासन कहते है। यह विभाजन संविधान द्वारा होता है तथा संविधान सर्वोच्च होता है।

परिभाषा- संघ शासन व संघवाद की परिभाषा विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने तरीके से की हैं-

डायसी के अनुसार- संघात्मक राज्य एक ऐसे राजनीतिक उपाय के अतिरिक्त और नहीं है जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय एकता व राज्य के अधिकारों में मेल स्थापित करना है।”

फाइनर के शब्दों में- “संघात्मक राज्य उसे कहते हैं जिसमें अधिकार व शक्ति का एक भाग स्थानीय क्षेत्रों के पास हो और दूसरा भाग एक केन्द्रीय संस्था के पास हो जिसका निर्माण स्थानीय क्षेत्रों ने अपनी इच्छा से मिलकर किया हो।”

हैमिल्टन के शब्दों में-  “संघात्मक राज्य ऐसे राज्यों का समुदाय है जो एक नये राज्य का निर्माण करते हैं।

गार्नर के अनुसार- “संघात्मक शासन वह प्रणाली है जिसमें केंद्रीय तथा स्थानीय सरकार एक ही प्रभुसत्ता के अधीन होती हैं। ये सरकारें अपने-अपने क्षेत्रों में सर्वोच्च होती हैं।”

के. सी. ह्वीयर के अनुसार- “संघात्मक प्रणाली शक्तियों के विभाजन की प्रणाली है। ताकि केन्द्रीय व क्षेत्रीय सरकारें अपने क्षेत्र में समान व स्वतंत्र रहें।”

आवश्यक तत्व

संघात्मक व्यवस्था के प्रमुख आवश्यकत तत्व निम्न हैं-

(1) संविधान की सर्वोच्चता-

इसमें संविधान सर्वोच्च होता है। संघ की स्थापना एक करार के तहत होती है जो संविधान का एक भाग होता है तथा जिसका पालन केन्द्र व राज्य दोनों सरकारों को करना पड़ता है। संविधान दोनों की शक्तियों का स्रोत होता है तथा इसी के अनुरूप दोनों प्रकार की सरकारों का संचालन होता है।

(2) लिखित व कठोर संविधान-

इसकी दूसरी विशेषता है संविधान का लिखित व कठोर होना। लिखित होना इसलिए आवश्यक है क्योंकि संविधान में ही दोनों पक्षों के बीच शक्तियों के विभाजन का उल्लेख रहता है। कठोर होना इसलिए आवश्यक है ताकि दोनों पक्षों की सहमति से ही संशोधन हो सके। कोई पक्ष मनमाने ढंग से अपने हित में संशोधन न कर ले। इसीलिए संघात्मक राज्यों में संशोधन प्रक्रिया कठोर होती है।

(3) न्यायपालिका की व्यवस्था-

संघ शासन में एक स्वतंत्र व निष्पक्ष न्यायपालिका की व्यवस्था होती है। एक निश्चित संवैधानिक व्यवस्था के बावजूद शक्तियों को लेकर केन्द्र व राज्यों के मध्य विवाद उत्पन्न हो सकता है। अतः एक तीसरी निष्पक्ष शक्ति का होना आवश्यक है ताकि उचित व निष्पक्ष निराकरण हो सके। संघीय सर्वोच्च न्यायालय संविधान को सुरक्षा भी प्रदान करता है तथा इस पर भी नजर रखता है कि कोई सरकार अपनी अधिकार सीमा का उल्लंघन तो नहीं कर रही।

(4) शक्तियों का विभाजन-

केन्द्र व इकाइयों के मध्य स्पष्ट व निश्चित शक्ति विभाजन भी संघीय सरकार की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। शक्ति विभाजन का स्रोत संविधान होता है। सामान्यतया राष्ट्रीय महत्व के विषय संघ के पास तथा स्थानीय महत्व के इकाइयों के पास होते हैं। किन्तु पिछले कुछ समय में सामान्य महत्व के कुछ विषयों को समवर्ती सूची में रखने की प्रवृत्ति सरकारों का होता है पर विवाद की स्थिति में केंद्रीय कानून मान्य होता है। शक्ति विभाजन की पद्धति भारत व अमरीकी संघों में पृथक्-पृथक् पायी जाती है।

(5) दोहरी सरकार-

इसमें दो प्रकार की सरकारें पाई जाती हैं-राष्ट्रीय या संघ सरकार तथा इकाइयों की सरकारें। संघीय सरकार समस्त देश का शासन संचालन करती हैं जबकि प्रत्येक इकाई की अपनी-अपनी स्वतंत्र व सम्प्रभु सरकारें होती हैं जो अपने-अपने प्रदेश के शासन के लिए उत्तरदायी होती हैं।

(6) दोहरी नागरिकता-

संघीय शासन में नागरिकों को प्रायः दोहरी नागरिकता प्राप्त रहती है-संघ सरकार की तथा दूसरे उस राज्य की जहाँ का यह निवासी है। अमेरिका व अन्य संघों में दोहरी नागरिकता है, परन्तु भारत इसका अपवाद है।

(7) द्विसदनात्मक विधानमण्डल-

संघीय सरकार में व्यवस्थापिका के दो सदन होते ही है। प्रथम व निम्न सदन जनता का तथा द्वितीय व उच्च सदन राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है।

(8) द्वितीय सदन में समान प्रतिनिधित्व-

संघ शासन में प्रायः प्रान्तीय स्वायत्तता को महत्व दिया जाता है व इकाइयों को उच्च सदन में समान प्रतिनिधित्व दिया जाता है। किन्तु भारत इसका अपवाद है।

एकात्मक शासन

एकात्मक संविधान के अन्तर्गत समस्त शक्तियां एकही सरकार में निहित होती है, जो मुख्यतः केन्द्रीय सरकार होती है। स्थानीय सरकारों का अस्तित्व एवं शक्तियां केन्द्रीय सरकार की इच्छा पर निर्भर करती हैं। विभिन्न विद्वानों ने एकात्मक शासन की निम्नलिखित परिभाषाएँ दी हैं-

डायसी के अनुसार, “एक केन्द्रीय शक्ति के द्वारा सर्वोच्च सत्ता का प्रयोग किया जाना ही एकात्मक शासन है।”

गार्नर के शब्दों में, “यह शासन की वह प्रणाली है जिसमे संविधान केन्द्रीय शासन के एक अथवा एक से अधिक अंगों को पूरी शक्ति प्रदान करता है और इन्हीं से स्थानीय सरकारों को अपनी सारी शक्ति तथा अपना अस्तित्व प्राप्त होता है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि एकात्मक शासन में केन्द्र तथा प्रान्तों में वैधानिक दृष्टि से शक्तियों कोई विभाजन नहीं होता है अपितु सारी शक्तियों का वह स्वयं ही प्रयोग करे अथवा प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने की दृष्टि से कुछ शक्तियां स्थानीय सरकारों को दे दे। वर्तमान समय में इंग्लैण्ड, जापान, नार्वे, स्वीडन, बेल्जियम, हॉलैण्ड, फ्रांस, इटली, आदि राज्यों में एकात्मक शासन है।

एकात्मक शासन के आवश्यक तत्व या गुण

एकात्मक शासन व्यवस्था में सामान्यतः निम्न आवश्यक तत्व या गुण पाये जाते हैं-

(1) प्रशासन में एकता-

एकात्मक शासन के अन्तर्गत सम्पूर्ण राज्य में एक प्रकार के कानून होते हैं और इन सभी कानूनों को केन्द्रीय शासन के निर्देशन के अन्तर्गत कार्यरूप में परिणत किया जाता है। परिणामतः सम्पूर्ण राज्य में प्रशासन की एकरूपता नहीं रहती है।

(2) प्रशासनिक शक्तिसम्पन्नता-

केन्द्रीय शासन के हाथ में सम्पूर्ण शक्ति निहित होने के कारण केन्द्रीय सरकार जनता के हित को दृष्टि में रखकर सभी विषयों के सम्बन्ध में ठीक प्रकार से और दृढ़ता के साथ कार्य कर सकती है। इस शासन व्यवस्था में शक्ति का केन्द्रीयकरण होने के कारण प्रशासन का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व केन्द्रीय सरकार का ही होता है।

(3) संकटकाल के लिए उपयुक्त-

युद्ध, आर्थिक संकट और अन्य प्रकार की असाधारण परिस्थितियों में शीघ्रतापूर्वक निर्णय करने, उन्हें गुप्त रखने और शीघ्र उन्हें कार्यरूप में परिणत करने की आवश्यकता होती है और इस प्रकार से शीघ्रतापूर्वक कार्य केवल एकात्मक शासन के द्वारा ही किया जा सकता है, जिसके अन्तर्गत शक्ति का केन्द्रीयकरण होता है। इसी बात को दृष्टि में रखकर भारतीय संविधान के अन्तर्गत संकटकाल के समय संघात्मक शासन को एकात्मक शासन में परिवर्तित करने की व्यवस्था की गयी है।

(4) संगठन की सरलता-

संगठन की दृष्टि से एकात्मक शासन बहुत सरल होता है। इसके अतिरिक्त, इस संगठन में पर्याप्त परिवर्तनशीलता भी रहती है। केन्द्रीय सरकार आवश्यकतानुसार शासन में किसी भी प्रकार का परिवर्तन कर सकती है।

(5) राष्ट्रीय एकता-

शासन का एकात्मकता के कारण सम्पूर्ण देश के लिए एक से कानून होते हैं, एक ही प्रकार से उन्हें कार्य रूप से परिणत करने की व्यवस्था होती है और एक ही प्रकार की न्याय व्यवस्था होती है। सभी देशवासियों के एक ही प्रकार की परिस्थितियों में रहने के कारण स्वाभाविक रूप से उनमें राष्ट्रीयता के बन्धन बहुत अधिक दृढ़ हो जाते हैं।

(6) मितव्ययता-

इसमें विविध स्थानों पर केन्द्रीय और प्रान्तीय सरकारों के दोहरे कर्मचारी नियुक्त करने की आवश्यकता नहीं होती और शासन में मितव्ययता रहती है।

(7) छोटे देशों के लिए बहुत उपयुक्त-

एकात्मक शासन छोटे देशों के लिए बहुत उपयुक्त सिद्ध होता है क्योंकि यह उनमें सब भेद समाप्त करके संगठन और एकता स्थापित कर देता है।

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