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उपकल्पना का अर्थ एवं परिभाषा तथा इसकी विशेषताएँ और प्रकृति – Sociology in Hindi

उपकल्पना का अर्थ एवं परिभाषा तथा इसकी विशेषताएँ

उपकल्पना का अर्थ

उपकल्पना का अर्थ

उपकल्पना को परिभाषित कीजिए तथा इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उपकल्पना

उपकल्पना (प्राकल्पना अथवा परिकल्पना) वैज्ञानिक अनुसंधान का अत्यन्त महत्वपूर्ण चरण है। उपकल्पना दो. अथवा दो से अधिक चरों के बीच अनुभवमूलक सम्बन्ध का अनुमानित विवरण है। यह मात्र अनुमान है जिसका परीक्षण करना अभी बाकी है। अधिकांश अनुसंधानों का उद्देश्य या तो उपकल्पनाओं का निर्माण करना होता है अथवा निर्मित उपकल्पनाओं का संकलित सामग्री द्वारा परीक्षण करना होता है। उपकल्पनाओं का निर्माण करना सरल कार्य नहीं है।

उपकल्पना का अर्थ एवं परिभाषाएँ

‘उपकल्पना’ अंग्रेजी के शब्द ‘Hypothesis ‘ का हिन्दी रूपान्तर है जिसे दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-‘Hypo’ तथा ‘Thesis’ प्रथम शब्द का अर्थ ‘कल्पना’ या काल्पनिक’ (Tentative) है, जबकि दूसरे का अर्थ ‘प्रस्तावना’ (Statement) है। अतः ‘उपकल्पना’ का शाब्दिक अर्थ ही ‘काल्पनिक प्रस्तावना’ है। यह साधारणतः ऐसा कथन है जो किसी सिद्धान्त, संस्कृति, उपमा या व्यक्तिगत अनुभव से प्राप्त किया जाता है परन्तु इसमें कोई नई बात कही जाती है जिसकी जाँच-परख का जाना हो। अतः उपकल्पना से अनुसंधान का विषय निर्दिष्ट किया जाता है। परन्तु कोई उपकल्पना सही है या गलत, इसका निर्णय वास्तविक अनुसन्धान के आधार पर ही किया जा सकता है। विद्वानों ने इसे निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है-

‘वेब्स्टर्स न्यू इण्टरनेशनल डिक्शनरी’ के अनुसार-“एक उपकल्पना एक मान्यता, शर्त अथवा सिद्धान्त है जिसे शायद विश्वास के बिना मान लिया जाता है ताकि इसके तार्किक परिणाम ज्ञात हो सकें तथा इस ढंग के द्वारा उसकी उन अन्य तथ्यों से समानता का परीक्षण किया जा सके जो ज्ञात हैं अथवा निर्धारित किए जा सकते हैं।”

गुड एवं हैट (Goode and Hatt) के अनुसार-“उपकल्पना इस बात का वर्णन करती है कि हम आगे क्या देखना चाहते हैं। एक उपकल्पना भविष्य की ओर देखती है। यह एक प्रस्तावना
है जिसकी प्रामाणिकता सिद्ध करने हेतु उसका परीक्षण किया जा सकता है। यह सही भी सिद्ध हो सकती है और गलत भी।”

लुण्डबर्ग (Lundberg) के अनुसार-“उपकल्पना एक काल्पनिक सामान्यीकरण है जिसकी प्रामाणिकता की जाँच करना अभी शेष है। प्रारम्भिक स्तर पर एक उपकल्पना प्रतिभ (Hunch) अनुमान, काल्पनिक विचार या सहज ज्ञान हो सकता है जोकि क्रिया या अनुसंधान का आधार बन सकता है।”

यंग (Young) के अनुसार-“एक कार्यवाहक विचार, जो उपयोगी खोज का आधार बनता है, कार्यवाहक उपकल्पना माना जाता है।” थियोडोरसन के अनुसार प्राक्कल्पना कुछ तथ्यों के बीच सम्बन्ध में दावे के साथ किया हुआ एक प्रयोगार्थ कथन है।

कैरलिंगर ने इसकी व्याख्या इस प्रकार की है, “प्राक्कल्पना अनुमान से कहा गया कथन है जो कि दो या दो से अधिक चरों के बीच सम्बन्धों को बताता है।” ब्लैक और चैम्पियन ने इसे इस प्रकार कहा है “किसी वस्तु के विषय में प्रयोगार्थी कथन जिसकी वैधता आमतौर पर अज्ञात हो।” इस कथन का परीक्षण स्वानुभव से किया जाना है और फिर या तो उसे प्रामाणित माना जाता है या इसे अस्वीकार कर दिया जाता है। यदि कथन पर्याप्त रूप से स्थापित नहीं होता तो इसे वैज्ञानिक नियम नहीं माना जाता।

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट हो जाता है कि उपकल्पना एक काल्पनिक प्रस्तावना या विचार है जो सामाजिक तथ्यों एवं घटनाओं की खोज करने एवं विभिन्न चरों में कार्य-कारण सम्बन्धों का पता लगाने का आधार बनती है। सैल्टिज आदि का कहना है कि हम अनुसंधान में तब तक एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते जब तक कि हम सम्भावित व्याख्या अथवा समस्या के समाधान के बारे में न सोचें। जब काल्पनिक व्याख्याओं का निर्माण प्रस्तावनाओं के रूप में किया जाता है तो इन्हें उपकल्पना कहा जाता है।

प्राक्कल्पनाओं की प्रकृति

एक वैज्ञानिक तर्कसंगत प्राक्कल्पना में निम्नलिखित विशेषता होनी चाहिए-

  1. यह सार्थक समाजशास्त्रीय तथ्यों को सटीक रूप से प्रदर्शित करता है।
  2. यह विज्ञान के अन्य अध्ययन क्षेत्रों के स्वीकृत सार्थक विवरणों के विपरीत नहीं होना चाहिए।
  3. इसे अन्य अनुसंधानकर्ताओं के अनुभवों पर विचार करना चाहिए।

प्राक्कल्पनाएँ सही या गलत नहीं कही जा सकती। वे तो अनुसंधान के शीर्षक के. अनुरूप या विपरीत हो सकती हैं।

उदाहरणार्थ, एक गांव में गरीबी के कारणों को इन अर्थों में खोजा जा सकता है-

  • कृषि का कम विकास (सिचाई की कमी, रेतीली मिट्टी, अनिश्चित वर्षा और कृषि के परम्परागत साधनों के प्रयोग) गरीबी का कारण है।
  • मूल संरचना की कमी (बिजली, बाजार, सड़कें) गरीबी के कारण हैं।
  • संसाधनों की कमी (पानी, मिट्टी, खनिज पदार्थ), सहायक साधनों की कमी (वर्गा सिंचाई, पशुधन) सामाजिक व्यवस्था के व्यवधान (ऋण, मूल संरचना फिजूल खर्च और बाजार ग्रामीण विकास में बाधा डालती है।

महत्वपूर्ण प्राक्कल्पनाएँ निम्नानुसार हो सकती हैं-

  1. ग्रामीण ऋण की उपलब्धता तथा ऋण तक पहुंच से सापेक्ष रूप से जुड़ी होती है।
  2. ग्रामीण निर्धनता मूल संरचनात्मक सुविधाओं की कमी के कारण होती है।
  3. निर्धनता फिजूल के सामाजिक खर्चों से जुड़ी हुई है।
  4. ग्रामीण गरीबी संसाधन की कमी (पानी, मिट्टी, खनिज) से विपरीत रूप से जुड़ी है।

सरान्ताकोस ने धर्म पर शिक्षा के प्रभावों से सम्बद्ध कुछ प्राक्कल्पनाएँ बताई हैं-

  • उच्च शिक्षित व्यक्ति कम धार्मिक होते हैं,
  • शिक्षा धार्मिकता से विपरीत रूप में सम्बद्ध है,
  • शिक्षा धार्मिकता से सकारात्मक रूप से सहसम्बन्धित है,
  • शिक्षा और धार्मिकता के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है।

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