हिंदी भाषा एवं हिन्दी शब्द की उत्पत्ति
हिन्दी भाषा के विकास में भी युगीन परिस्थितियाँ, बोध, जनमानस के नैसर्गिक आवेग तथा परिवेशगत सम्प्रेरक तत्व विशेष रूप से कार्य करते रहे हैं। समस्त सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक परम्पराएँ भाषा की धारो को दिशा प्रदान करती हैं। हिन्दी के विकास में भी अनेक युगों की तत्कालीन परिस्थितियों ने पृष्ठभूमि का निर्माण किया और अपनी सहज गति के साथ हिन्दी ने अपने स्वरूप को प्राप्त करने का उपक्रम किया है।
हिन्दी शब्द की उत्पत्ति
हिन्दी शब्द किस प्रकार हिन्दी भाषा के लिए प्रयुक्त होने लगा, इसका एक लम्बा इतिहास है। प्राचीन समय में उत्तरी भारत को ‘भारत खण्ड’ तथा जम्बू द्वीप के नाम से जाना जाता था। बौद्ध धर्म के पालि ग्रन्थों में भी इस बात की पुष्टि होती है। हमारे देश का नाम ‘हिन्द’ नाम वास्तव में ‘सिन्धु’ का प्रारूप है। ईरान और फारस के निवासी सिन्धु नदी के तट के प्रदेशों को ‘हिन्द’ तथा वहाँ के रहने वालों को हिन्दू कहते थे। संस्कृत ‘स’ ध्वनि फारसी में ‘ह’ हो जाती है। ग्रीक निवासियों द्वारा भी सिन्धु नदी को ‘इन्दोस’ और यहाँ के निवासियों को ‘इन्दोई’ तथा प्रदेशों को ‘इन्दिका’ कहां गया और यहाँ शब्द आगे चलकर लैटिन में ‘इण्डिया’ बना। प्रारम्भ में यह शब्द (इण्डिया) पश्चिमी उत्तर प्रदेश का ही परिचायक था परन्तु कालान्तर में इसके अर्थ में विस्तार हुआ तथा पूरे देश के लिए प्रयोग किया जाने लगा। इस प्रकार हिन्दी शब्द का मूल शब्द ‘हिन्द’ ही है। संस्कृत या प्राचीन, मध्यकालीन अथवा आधुनिक आर्य भाषाओं के किसी भी ग्रन्थ में इस शब्द का प्रयोग नहीं मिलता। अतः हिन्दी शब्द फारसी भाषा का है और आज भी सभी भारतीय प्रदेश व उसकी प्रमुख भाषा के लिए प्रयोग हो रहा है।
हिन्दी शब्द का प्रयोग
(1) देश के अर्थ में – देश के अर्थ में हिन्दी शब्द जब फारस से अरंब पहुँचा और उसके बाद अरब निवासियों के द्वारा सिन्ध को जीत लेने पर उसे हिन्द न कहकर सिन्ध ही कहा गया। इसका कारण यह था कि सिन्ध प्रदेश का ही एक भाग था। इस हिन्द से ही ‘हिन्दी’ शब्द बना।
(2) भाषा के अर्थ में – सर्वप्रथम हिन्दवी शब्द का प्रयोग मध्यप्रदेश की देशीय भाषा के लिए हुआ। अमीर खुसरो के समय में हिन्दी शब्द भारतीय मुसलमानों के लिए प्रयोग किया जाता था। खुसरो ने स्वयं लिखा है-
“बादशाह ने हिन्दुओं को तो हाथी से कुचलवा डाला, किन्तु मुसलमान जो हिन्दुओं से सुरक्षित रहे।”
इस प्रकार भारतीय मुसलमानों को ‘हिन्दी’ तथा उनकी भाषा को भी हिन्दी कहा गया। इसी भाषा को हिन्दू तथा मुसलमान दोनों व्यवहार में लाते थे। भाषा के अर्थ में हिन्दी शब्द मुसलमानों की देन कहा जा सकता है।
(3) व्यापक अर्थ में आगे चलकर हिन्दी का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया जाने लगा। हिन्दी शब्द अत्यन्त प्राचीन है परन्तु आज इसने भाषा के रूप में समस्त भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया है।
डॉ. श्यामसुन्दर दास—“शब्दार्थ की दृष्टि से यह हिन्दी शब्द भारत में बोली जाने वाली किसी आर्य अथवा अनार्य भाषा के लिए हो सकती है।” किन्तु व्यवहार में हिन्दी आज उस बड़े भू-भाग की भाषा है जिसकी सीमा पश्चिम में जैसलमेर, उत्तर-पश्चिमी में अम्बाला, उत्तर में शिमला से लेकर नेपाल के पूर्वी छोर तक की पहाड़ी, पूर्व में भागतपुर और दक्षिण-पूर्व में रायपुर तथा दक्षिण भारत में खण्डवा तक पहुँचती है। ……इस अर्थ में बिहारी (अवधी, मगही, मैथिली) राजस्थानी (मारवाड़ी,मेवाती आदि) पूर्वी हिन्दी (हिन्दी, बघेली, छत्तीसगढ़ी), पहाड़ी आदि सभी हिन्दी की विभाषाएँ मानी जाती हैं। यह हिन्दी का प्रचलित अर्थ है। इसी के समानान्तर मध्य प्रदेश की बोलियों को भी हिन्दी की संज्ञा दी जाती है जिसमें हिन्दी के दोनों (पूर्वी तथा पश्चिमी) रूप की भी सभी बोलियाँ आती हैं।
(4) अन्य अर्थों में – शब्दार्थ, प्रचलित अर्थ और सैद्धान्तिक व साहित्यिक अर्थों में हिन्दी के निम्न रूप रहे हैं
(1) हिन्दवी, (2) रेख्ता, (3) खड़ी बोली, (4) उर्दू, (5) नागरी हिन्दी, (6) हिन्दुस्तानी, (7) दक्खिनी, (8) उच्च हिन्दी।
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