समाजशास्‍त्र / Sociology

नातेदारी की परिभाषा एवं इसके प्रमुख भेद

नातेदारी की परिभाषा एवं इसके प्रमुख भेद
नातेदारी की परिभाषा एवं इसके प्रमुख भेद

नातेदारी की परिभाषा दीजिए एवं इसके प्रमुख भेदों को स्पष्ट कीजिए।

नातेदारी की परिभाषा एवं इसके प्रमुख भेद Types and Definition of Kinship – नातेदारी से अभिप्राय ऐसे व्यक्तियों के परस्पर सम्बन्धों की व्यवस्था से है जो कि प्रजनन एवं वास्तविक वंशावली के आधार पर परस्पर सम्बन्धित है अर्थात् विवाह या रक्त सम्बन्धों के आधार पर जुड़े हुए व्यक्ति (नातेदार) नातेदारी व्यवस्था का निर्माण करते हैं। प्रो. श्यामलाल शर्मा (S.L. Sharma) ने डॉ. इरावती कर्वे की पुस्तक Kinship, Organization Indian के हिन्दी अनुवाद के पुनरीक्षक रूप में बन्धुत्व व्यवस्था के दो पक्ष बताये हैं- (i) आन्तरिक्ष पक्ष, तथा (ii) बाह्य पक्ष। रक्त सम्बन्धों की व्यवस्था नातेदारी का आन्तरिक पक्ष है जबकि विवाह सम्बन्धों की व्यवस्था इसका ब्राह्य पक्ष है। इसकी कुछ प्रमुख परिभाषायें निम्नलिखित हैं-

(1) रॉबिन फॉक्स (Robin Fox) के अनुसार- “नातेदारी की अत्यन्त सामान्य परिभाषा यह है कि नातेदारी केवल मात्र स्वजन अर्थात् वास्तविक, ख्याल अथवा विवाह समरक्तता वाले व्यक्तियों के मध्य सम्बन्ध हैं।”

(2) श्यामाचरण दुबे ( S.C. Dube) के अनुसार- “मानव समाज में जन्म अथवा कल्पित के आधार पर परिवारों के सदस्य सम्बन्ध और व्यवहार की दृष्टि से एक-दूसरे के बहुत समी आ जाते हैं। इस प्रक्रिया के कारण कुछ प्रकार के सामाजिक सम्बन्धों की सृष्टि होती है। इस विशिष्ट सुव्यवस्थित सम्बन्ध-श्रृंखला को नियोजित करने वाली प्रथा को हम नातेदारी कहते हैं।”

(3) मजूमदार एवं मदन (Majumdar and Madan) के अनुसार- “सभी समान के सदस्य विभिन्न प्रकार के सम्बन्धों के आधार पर कई समूहों के रूप में एक दूसरे के साथ व रहते हैं। इन सम्बन्धों में से अत्यन्त सार्वभौमिक एवं अत्यधिक आधारभूत सम्बन्ध वे हैं। प्रजनन पर आधारित होते हैं। प्रजनन सहज मानवीय अन्तर्नोद (ड्राइव), पर आधारित इन सम्बन को नातेदारी कहा जाता है। हैं और कल्पित भी। प्रमुख उदाहरण हैं।

(4) श्यामलाल शर्मा (S. L. Sharma) के अनुसार- “नातेदारी उस व्यवस्था का नाम है जो स्वजनों के परस्पर सम्बन्धों को नियमित करती है। ये स्वजन वास्तविक हो सकते उपरोक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि नालेदारी व्यवस्था से अभिप्राय नातेदारी सम्बन्धों (दोनों रक्त एवं विवाह सम्बन्धी) द्वारा बंधे व्यक्तियों की व्यवस्था से है। परिवार, वंश, कुल, गोत्र आदि ऐसे समूहा के कुछ उदाहरण है।

नातेदारी के भेद- दो प्रकार के नातेदारों को सम्मिलित किया जाता है-

(1) रक्तमूलक नातेदार (Consanguineous relatives)-

रक्त सम्बन्धों पर आधारित नातेदारों को रक्तमूलक नातेदार कहा जाता है। उदाहरणार्थ माता-पिता का बच्चों से सम्बन्ध तथा बच्चों का परस्पर सम्बन्ध (जैसे भाई-बहन का सम्बन्ध) इस प्रकार के नातेदारों में

(2) विवाहमूलक नातेदार (Affinal relatives)–

इसमें उन नातेदारों को सम्मिलित किया जाता है जो सामाजिक अथवा कानूनी दृष्टि से मानव विवाह सम्बन्धों द्वारा परस्पर सम्बन्धित होते हैं। उदाहरणार्थ पति-पत्नी विवाह मूलक नातेदार हैं। पति और पत्नी के परिवार के अन्य सदस्य भी परस्पर विवाह सम्बन्धी हैं जैसे कि सास, ससुर, ननद, भौजाई, जीजा, साला, साली इत्यादि।

नातेदारी सम्बन्धों के आधार पर ही व्यक्ति को दो परिवारों का सदस्य माना गया है-

(1) जन्म का परिवार- जिसमें व्यक्ति जन्म लेता है तथा,

(2) जनन का परिवार- जिसमें व्यक्ति का विवाह होता है।

व्यक्ति के अनेक नातेदार होते हैं तथा वह प्रत्येक नातेदार से समान सम्पर्क, निकटता एवं घनिष्ठता नहीं रखता है। वास्तव में यह इस बात पर निर्भर करता है कि अमुक नातेदार व्यक्ति से किसी आधार पर सम्बन्धित हैं। निकटता, घनिष्ठता एवं सम्पर्क के आधार पर नातेदारों को प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक, चातुर्थिक तथा पाँचमिक आदि विभिन्न नातेदारी श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है।

(1) प्राथमिक नातेदार या सम्बन्धी (Primary relatives) –

यदि एक व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से प्रत्यक्षतः सम्बन्धित है तो उसे हम प्राथमिक सम्बन्धी कहते हैं। उदाहरण के लिये पति-पत्नी और माता-पिता एवं सन्तान परस्पर प्राथमिक रूप में सम्बन्धित हैं। किसी भी परिवार में प्राथमिक सम्बन्धी आठ प्रकार के हो सकते हैं- (i) पति-पत्नी, (ii) पिता-पुत्र, (iii) माता-पुत्री, (iv) पिता-पुत्री, (v)माता-पुत्र, (vi) ज्येष्ठ-लघु भ्राता, (vii) ज्येष्ठ लघु बहन, (viii) भ्राता-बहन। इसमें पति-पत्नी का प्राथमिक सम्बन्ध विवाह पर आधारित है जबकि अन्य सम्बन्धियों का रक्त पर।

(2) द्वितीयक नातेदार या सम्बन्धी (Secondary relatives) –

जो लोग उपरोक्त प्राथमिक सम्बन्धियों के प्राथमिक सम्बन्धी हैं, उन्हें हम द्वितीयक सम्बन्धी कहते हैं। उदाहरण के लिये बहन का पति बहन के लिये तो प्राथमिक है परन्तु भाई के लिए (जिसका कि वह जीजा लगा) द्वितीयक सम्बन्धी है। इस प्रकार किसी व्यक्ति का पिता उसका प्राथमिक सम्बन्धी है परन्तु दादा द्वितीयक सम्बन्धी है। बहु-सास, बहु-ससुर, देवर-भाभी, साला-जीजा, साली-जीजा, तथा चाचा-भतीजा, मामा-भानजा इत्यादि द्वितीयक सम्बन्धियों के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। मरडौक (Murdock) ने द्वितीयक सम्बन्धियों की संख्या 33 बताई है।

(3) तृतीयक नातेदार या सम्बन्धी (Tertiary relatives)–

इस श्रेणी में उन नातेदारों को सम्मिलित किया जाता है जो कि हमारे प्राथमिक सम्बन्धों के द्वितीयक सम्बन्धी या हमारे द्वितीयक सम्बन्धी के प्राथमिक सम्बन्धी हैं। उदाहरणार्थ पितामह (पड़दादा) हमारा तृतीयक सम्बन्धी है क्योंकि वह हमारे प्राथमिक सम्बन्धी (पिता) का द्वितीयक सम्बन्धी हैं अथवा हमारे द्वितीयक सम्बन्धी (दादा) का प्राथमिक सम्बन्धी हैं। मरडौक ने ऐसे सम्बन्धों की संख्या 151 बताई है।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider.in does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment