जनजातीय युवा गृह का अर्थ तथा भारतीय जनजातियों में युवा गृह
जनजातीय युवा गृह से आप क्या समझते हैं? भारतीय जनजातियों में युवागृहों का वर्णन कीजिए।
जनजातीय युवा गृह का अर्थ –
मजूमदार के अनुसार, “जनजातीय युवागृह एक प्रकार का परिसंघ अथवा समिति है जिसकी स्थापना कुछ विशेष नियमों के अन्तर्गत कुछ इच्छित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए की जाती है।” वास्तविकता यह है कि भूख, यौन तथा सामूहिकता सदैव से ही आवश्यकताएँ रही हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए उसने तरह-तरह के संघों का निर्माण करना भी शुरू मनुष्य की कर दिया। आदिवासी समाजों में यह संघ साधारणतया व्यक्ति की आयु, लिंग, व्यवसाय तथा सामाजिक स्थिति के आधार पर बनाये गये। इनमें भी आयु तथा लिंग का आधार सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कहा क्योंकि समान आयु तथा समान लिंग के व्यक्ति के विचार एक-दूसरे से बहुत मिलते-जुलते होने के भी के हैं। युवागृह कारण उनके बीच बहुत जल्दी ही समानता की भावना विकसित हो जाती हैं। जनजातीय युवागृह इसी प्रकार का एक संघ है जिसकी सदस्यता व्यक्ति को एक निश्चित आयु प्राप्त कर लेने पर सहज जातियों में युवागृह को मान्यता दी जाती है, वहाँ एक निश्चित आयु के सभी लड़कों और लड़कियों जातियों में की गतिविधियों में भाग लेना आवश्यक हो जाता है। यदि कोई सदस्य युवागृह में अनुपस्थित रहता है तो उसे दण्डित भी किया जा सकता है। प्रत्येक सदस्य (लड़का या लड़की) अपना विवाह, होने तक युवागृह का सदस्य रहता है तथा युवागृहों के नियमों में बँधा रहता है।
भारतीय जनजातियों में युवा गृह-
भारत के लगभग सभी जनजातीय क्षेत्रों में द्विलिंगीय तथा एकलिंगीय यवा गृह पाए जाते हैं। आसाम के कोनयाक नागा लड़कों के युवागृह को मोरंग और लड़कियो और स्त्रियों के युवागृह को इलोइची, और अंगामी नागा इसे किचुकी कहते हैं। उत्तर प्रदेश के हिमालयवर्ती क्षेत्र में रहने वाले भोटियाओं में भी युवागृह पाए जाते हैं। ये इसे रंगबंग कहते हैं। मुंडा और हो युवागृह को गिटीओर कहा जाता है। उरांव इसे जोनकरपा या धुमकुरिया कहते हैं। मुंइया इसे धांगरवासा, और गोंड गोटुल कहते हैं। दक्षिण भारत में युवागृहों का प्रचलन मुथुवान, मॉनन और पालियान में पाया गया है। कुनिकर में भी अविवाहितों का कक्ष होता है। जिसे अविवाहितों एवं अतिथियों के लिए काम में लिया जाता है।
उपलब्ध प्रमाण के आधार पर यह कहना गलत होगा कि ये युवागृह स्वैच्छिक परिसंघ की सदस्यता, एक निश्चित आयु पूरी होने के साथ (जैसे उरांव में यह आयु चार या पांच वर्ष है, या इससे अधिक), सभी के लिए एक सामान्य अनिवार्यता होती है। यदि कि कोई धर्म परिवर्तन कर ईसाई न बन जाए और चर्च द्वारा उसे रोका न जाए, या नगरीय संभ्रातता से आकृष्ट हो और कोई ऐसा करना न चाहे। युवागृह में उपस्थिति का सभी स्वागत करते हैं और सभी इसका मजा लेते हैं। यदि कोई लड़का या लड़की आलसी हो तो उस पर जुर्माना कर उसे उपस्थित रहने करे लिए मजबूर किया जाता है। बिना किसी कारण अनुपस्थिति रहना दंडनीय माना जाता है। सामान्यतः जब कोई युवागृह में प्रवेश की आयु प्राप्त कर लेता है तब उसे युवागृह | भेजा जाने लगता है। किन्तु कोनयाक नागाओं में प्रवेश के पूर्व एक विस्तृत प्रदीक्षा (प्रवेश) समारोह आयोजित किया जाता है। लड़कों एवं लड़कियों के लिए युवागृह या तो संयुक्त हो सकता है, जैसे मुरिया गोटुल; या केवल समलिंगीय सदस्यों तक ही सीमित रखा जा सकता है, जैसे कोनयाक नागाओं में लड़कों के मोरुंग और लड़कियों के यों अलग-अलग युवागृह होते हैं।
युवागृह सामान्यतः एक विशेष रूप से बने हुए भवन में स्थित होता है। ऐसा भवन उरांव धुमकुरिया की तरह सामान्य और मामूली किस्म का एक दरवाजे और नीची छत वाला हो सकता है, या नागा मोरुंग की तरह साज-सज्जापूर्ण और उत्कीर्ण (कामदार) लड़की के दरवाजों वाला। इसे प्रायः गांव के बाहर, जंगल के मध्य बनाया जाता है। कभी-कभी यह नागाओं की तरह, खेतों से लगा हुआ हो सकता है, या उरांवों की तरह गाँव के ठीक मध्य में। इन भवनों को बाहरी तौर से विशिष्ट दिखाने की हर संभव कोशिश की जाती है। बाहरी दीवारों पर प्रायः टोटमी प्रतीक चित्रित किए जाते हैं, और इनके साथ खुले आंगन भी बना दिए जाते हैं।
एक व्यक्ति (लड़का या लड़की) अपना विवाह होने तक एक सदस्य या अधिकारी के रूप में युवागृह का आवासी होता है। युवागृह का जीवन कई प्रथाओं एवं अनुपालनों से जुड़ा हता है। इनमें से कुछ प्राचीन परम्परा के रूप में चले आ रहे हैं तो कुछ इस संस्था की क्रियाशीलता के दौरान प्राप्त अनुभव द्वारा जोड़ दिए गए हैं। युवागृह के अन्दर का जीवन और उल्लासपूर्ण होता है। जहाँ सभी खेलते और मनोरंजन करते दिखते हैं तथापि, इनके मूल में कई सामाजिक, लग जाते हैं। युवागृह के कक्ष को आग जलाकर गरम और प्रकाशित किया जाता है। वहाँ एकत्रित आर्थिक और शैक्षणिक प्रेरणाएँ निहित रहती हैं। संध्या होते-होते सदस्य युवागृह में एकत्रित होने सदस्य नाचते, गाते, खेतले और कहानियाँ कहते-सुनते हैं और अंततः वहीं सो जाते हैं। इसी सारी प्रक्रिया में सदस्यों की दो श्रेणियाँ आसानी से देखी जा सकती हैं वरिल और कनिष्ठ। वरिष्ठ सदस्य ही जनजातीय जनश्रुतियों एवं परम्पराओं के परारंगत जानकार होते है और ये ही इन्हें कनिष्ठ सदस्यों तक संप्रवाहित करते हैं जो अवसर आने पर वरिष्ठ सदस्यों की भूमिका ग्रहण कर इन्हें आगे बढ़ाते हैं। वरिष्ठ सदस्यों में ही युवागृह के अधिकारी चुने जाते हैं। ये अधिकारी युवागृह के क्रिया कलापों पर नियंत्रण रखने, अनुशासन बनाये रखने और सभी प्रकार के सहकारी प्रयासों को आयोजित करने का कार्य करते हैं। अधिकारियों का चयन चुनाव पद्धति से होता है। वरिष्ठ सदस्य वरिष्ठों के लिए सभी प्रकार के श्रमसाध्य काम करते हैं। ये ही हर तरह का शारीरिक श्रम करते हैं, जैसे जलाऊ लड़की इकट्ठा करना, वरिष्ठों के दूत का कार्य करना और लड़कियां जब लड़कों के युवागृहों में अपने प्रेमियों में मिलने आएँ और वापस अपने युवागृह लौट नव उनका अनुरक्षण करना। वरिष्ठों और कनिष्ठों के बीच आयु का अन्तर प्रायः काफी अधिक होत पुनः प्रवेश पाने वाले विधुर प्रायः बीस या तीस वर्ष की आयु से ऊपर हो सकते हैं जबकि नव-प्रविष्ठ केवल चार या पाँच वर्ष के ही होते हैं।
मनोरंजक क्रियाएँ इन युवागृहों की सामान्य बात हैं। किन्त इनके अतिरिक्त भी सदस्य, अपने अधिकारियों के नेतृत्व में, वक्त जरूरत, विभिन्न सामुदायिक कार्यों में सहायता प्रायः करते रहते हैं। इनमें विवाह आयोजन, गृह निर्माण, या फसल सम्बन्धी कामों में सहायता की अपेक्षा की जा सकती है। सामान्यतः ये सदस्य अपना दिन का समय अपने परिवार वालों के साथ खेल पर पशु-चराई में बिताते हैं। सायंकालीन भोजन के पश्चात् ही ये युवागृह में आते हैं। मुरियाओं में प्रचलित संयुक्त युवागृह में लड़कों को चेलिक और लड़कियों को मोटिआरी कहा जाता है। ये मोटिआरियां चेलिकों की थकावट दूर करने के लिए उनके पाँव दबाती हैं और उनके बालों को सवारती हैं। बढ़िया संवरे हुए बालों वाले मुरिया या उरांव लड़के बड़े मनोहारी दिखते हैं।
युवागृह के सदस्यों की दो या तीन श्रेणियाँ होती हैं। उरांव धुमकुरिया में वरिष्ठों और कनिष्ठों की दो श्रेणियाँ पाई जाती हैं। वरिष्ठ श्रेणी में प्रवेश करने पर एक लड़का रसिक कहलाता है। रसिक युवागृह की कलाओं में पारंगत माने जाते हैं। युवागृह के अन्दर जो कुछ होता है उसे पूर्णतः गोपनीय रखा जाता है। ऐसा इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए किया जाता है कि युवागृह के अन्दर शृंगारात्मक क्रियाएँ स्वतन्त्रतापूर्वक की जाती है, यद्यपि कि संभोग युवागृह की चारदीआरी के अन्दर प्रायः नहीं करने दिया जाता है। मुरिया गोटुल में वरिष्ठ लड़कियाँ छोटे लड़कों को काम-कला सिखाने का काम प्रायः करती हैं। इनमें संभोग करने के लिए नेताओं की स्वीकृति लेने की जरूरत भी नहीं पड़ती। इंद्रजीत सिंह के अनुसार, गोटुल के अन्दर संभोग नहीं किया जाता है। किन्तु एल्विन के विस्तृत वृत्तांतों से ऐसा लगता है कि युवागृह के अन्दर सहवास किया जाता है। वरिष्ठ लड़के भी कनिष्ठों को काम-कला सिखाते हैं और नृत्य के दौरान सांकेतिक क्रियाओं द्वारा इसकी बारीकियाँ बताते हैं। युवागृह के जीवन में ऐसे यौन पक्ष का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है।
युवागृह जीवन का एक रोचक किन्तु अपूर्ण रूप में अन्वेषित पक्ष, युवागृह काल की सदस्य के दौरान स्थापित अनेक यौन सम्बन्धों के बावजूद तुलनात्मक बाँझपन पाए जाने का है। एल्विन ने गोटुल के सन्दर्भ में इसकी व्याख्या करने की कोशिश की है। वे यह बताते प्रतीत होते. हैं कि इसका मुख्य कारण संभोगेत्तर बंध्या-काल है। जन्म निरोध की बह्य-स्खलन विधि के प्रमाण भी इनमें पाए गए हैं। ‘जहाँ तक मुरियाओं की अपनी बात है, वे बाँझपन की कई दैनिक व्याख्या भी प्रस्तुत करते हैं। इनमें से एक यह है कि गोटुल का संरक्षक देवता लिंगो गोटुल के अंदर किए जाने वाले सहवास से गर्भाधान नहीं होने देता, क्योंकि ऐसा होना स्वयं लिंगो देवता के लिए अशोभनीय सिद्ध होता है। गर्भधारण से बचने के लिए ये प्रार्थनाएँ करते हैं और बलियाँ भी चढ़ाते हैं। तथापि, यदि गर्भ रह ही जाता है तो इसे सामाजिक लांछन नहीं माना जाता। ऐसे बच्चे के जन्म से विवाह के आर्थिक पक्ष सम्बन्धी कठिनाइयाँ अवश्य उठ खड़ी होती है। फिर भी, ऐसा बच्चा अपनी माँ के विवाह (बच्चे के पिता या किसी अन्य के साथ) के पश्चात् अपनी माँ के होने वाले पति के परिवार का पूर्ण सदस्य मान लिया जाता है।
Important Links
- पारसन्स: सामाजिक व्यवस्था के संरचनात्मक | Social Structure in Hindi
- टालकाट पारसन्स के सामाजिक व्यवस्था एवं इसके सकारात्मक \नकारात्मक तत्व
- रेडक्लिफ ब्राउन के सामाजिक संरचना सिद्धान्त | Radcliffe Brown’s social structure theory
- प्रोटेस्टेन्ट नीति और पूँजीवाद की आत्मा सम्बन्धी मैक्स वेबर के विचार
- मैक्स वेबर के समाजशास्त्र | Sociology of Max Weber in Hindi
- मैक्स वेबर के पद्धतिशास्त्र | Max Weber’s Methodology in Hindi
- मैक्स वेबर की सत्ता की अवधारणा और इसके प्रकार | Concept of Power & its Variants
- मैक्स वेबर के आदर्श-प्रारूप की धारणा | Max Weber’s Ideal Format Assumption in Hindi
- स्पेन्सर के सामाजिक संगठन के ऐतिहासिक विकासवाद | Historical Evolutionism in Hindi
- स्पेन्सर के समाज एवं सावयव के बीच समानता | Similarities between Spencer’s society & matter
- मार्क्स के वर्ग-संघर्ष सिद्धांत | Marx’s class struggle Theory in Hindi
- आधुनिक पूँजीवादी व्यवस्था में मार्क्स के वर्ग-संघर्ष | Modern capitalist system in Hindi
- अगस्त कॉम्टे के ‘प्रत्यक्षवाद’ एवं कॉम्टे के चिन्तन की अवस्थाओं के नियम
- आगस्ट कॉम्टे ‘प्रत्यक्षवाद’ की मान्यताएँ अथवा विशेषताएँ | Auguste Comte of Positivism in Hindi
- कॉम्ट के विज्ञानों के संस्तरण | Extent of Science of Comte in Hindi
- कॉम्ट के सामाजिक स्थिति विज्ञान एवं सामाजिक गति विज्ञान – social dynamics in Hindi
- सामाजिक सर्वेक्षण की अवधारणा और इसकी प्रकृति Social Survey in Hindi
- हरबर्ट स्पेन्सर का सावयवि सिद्धान्त एवं सावयवि सिद्धान्त के विशेषताएँ
- मार्क्सवादी द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical materialism) की विशेषताएँ
- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद (कार्ल मार्क्स)| Dialectical materialism in Hindi