जनजातीय सामाजिक संगठन
जनजातीय सामाजिक संगठन का वर्णन कीजिए। (Describe the social organisation of tribe )
जनजातियों के सामाजिक संगठन के अन्तर्गत परिवार, नातेदारी, विवाह, वंश-समूह, गोत्र, भ्रातृदल एवं गोत्रार्द्ध या युग्म संगठन एवं युवा गृह का वर्णन किया जा सकता हैं।
परिवार (Family) – जनजातीय परिवार का रूप पूर्णतया संस्थात्मक होता है जिसके द्वारा दो विषम लिंग के व्यक्तियों को यौन सम्बन्धों की स्वीकृति दी जाती है और साथ ही उनसे सन्तान की उत्पत्ति, पालन-पोषण तथा सांस्कृतिक प्रतिमानों के संचरण की प्रत्याशा की जाती है। जनजातियों में प्रत्येक व्यक्ति मूल रूप से दो परिवारों का सदस्य होता है-एक तो वह जिसमें उसका जन्म हुआ है, और दूसरा वह जिसमें वह स्वयं बच्चों को जन्म देता है अथवा भविष्य में जन्म देगा।
नातेदारी- परिवार की भाँति ही नातेदारी भी सामाजिक संगठन का मौलिक और प्राचीन आधार है। आधुनिक शोध कार्यों से यह ज्ञात है कि आदिम समाजों में लोगों को प्राथमिक सम्बन्धों में बाँधने वाला आधार नातेदारी ही था। यही कारण है कि आदिकाल से परिवार सामाजिक संगठन का आधार रहा है और नातेदारी उसका मुख्य सिद्धान्त। नातेदारी अधिकारों व कर्तव्यों तथा दायित्वों एवं सुविधाओं की वह व्यवस्था है जो न केवल परिवार के सदस्यों के सम्बन्धों को परिभाषित करती हैं वरन् कई पारिवारिक इकाइयों के सम्बन्धों को भी प्रकट करती है। यह व्यक्तियों और परिवारों को जोड़ने वाली एक कड़ी है।
विवाह- विवाह भी जनजातीय के सामाजिक संगठन का एक आधार है, जिससे जनजातियों में नातेदारी का विस्तार होता है। मानवशास्त्रियों ने पति व पत्नी की संख्या के आधार पर जनजातीय विवाह के तीन रूपों का उल्लेख किया है-एक विवाह (monogamy), बहुपत्नी विवाह (polygamy) तथा बहुपत्नी विवाह (polyandry)।
वंश-समूह (Lineage)- जनजातीय सामाजिक जीवन और संगठन का एक महत्त्वपूर्ण आधार वंश-समूह होता है। श्री हॉबल के अनुसार, “वंश-समूह साधारणतः पाँच या छः पीढ़ियों, से अधिक पहले का एक परिचित संस्थापक या सामान्य पूर्वज के उत्तराधिकारियों का एक विस्तृत और एकपक्षीय रक्त-सम्बन्धित समूह है। वह (पूर्वज) एक काल्पनिक या पौराणिक व्यक्ति नहीं बल्कि एक वास्तविक पुरुष है।” डॉ. मुखर्जी (Mukherjee) के शब्दों में, वंश-समूह एक सामान्य ऐतिहासिक और वास्तविक पूर्वज से सम्बन्धित समस्त रक्त-सम्बन्धी वंशजों का एक समूह होता है। वंश-समूह दो प्रकार का हो सकता है – (अ) मातृवंशीय वंश-समूह (Matrilineal lineage), और (ब) पितृवंशीय वंश-समूह (Patrilineal lineage)।
मातृवंशीय वंश-समूह के अन्तर्गत स्त्री, उसकी बहनें और उनके बच्चे आते हैं, भाई या उसके बच्चे वंश के बाहर चले जाते हैं। इसके विपरीत, पितृवंशीय वंश-समूह के अन्तर्गत पुरुष उसके भाई और उनकी सन्ताने ही आती हैं, इसमें बहन या उनके बच्चे वंश के बाहर चले जाते हैं।
गोत्र (Clan)- गोत्र वंश का ही एक विस्तृत रूप होता है। माता या पिता के किसी वंश के सभी रक्त-सम्बन्धियों को अगर जोड़ा जाये और अगर इस प्रकार के वंश-समूह में एक ही पूर्वज (वास्तविक या काल्पनिक) की सभी सन्तानें सम्मिलित कर दी जाएँ तो उसे गोत्र कहते हैं। दूसरे शब्दों में कई वंश मिलकर एक गोत्र बनता है। गोत्र का प्रारम्भ परिवार के किसी प्रमुख पूर्वज से होता है। पूर्वज को प्रमुख और प्रतिष्ठित होने के कारण उस परिवार का प्रवर्तक या संस्थापक मान लिया जाता है। इसी कारण उसी के नाम से परिवार के सब वंशजों का परिचय दिया जाता है और सब मिलकर एक गोत्र कहलाते हैं। ये वंशज या तो मातृवंशीय वंश-समूहों के होते हैं या पितृवंशीय वंश-समूहों के। गोत्र सदैव एकपक्षीय (unilateral) होता है। दूसरे शब्दों में, माता और पिता दोनों पक्ष के वंश-समूहों को मिलाकर गोत्र का निर्माण कभी नहीं होता।
भ्रातृदल या गोत्र-समूह (Phratry)- सामाजिक संगठन को और मजबूत बनाने के लिए बहुधा एकाधिक गोत्र एक साथ मिलकर एक सामान्य संगठन को विकसित करते हैं। यही भ्रातृदल या गोत्र-समूह (Phratry) है। डॉ. श्यामचरण दुबे ने लिखा है, “संगठन की दृष्टि से कभी-कभी कई गोत्र मिलकर एक बृहत् समूह बना लेते हैं। इसे ही हम भ्रातृदल या गोत्र-समूह कहते हैं।’ भ्रातृदल में विवाह सम्बन्धी प्रतिबन्ध दृढ़ और निश्चित नहीं होता जितना गोत्र में, होता है। इस प्रकार भ्रातृदल बहिर्विवाही हो भी सकती है और नहीं भी हो सकती। उदाहरणार्थ, टोडा जनजाति की दो भ्रातृदल, तारथाटोल तथा तिवालिवल, अन्तर्विवाही हैं। इसी प्रकार अनगामी नागा पहले तो अन्तर्विवाही करते थे, परन्तु अब नहीं करते।
द्विदल संगठन और अर्द्धाश- कुछ समाजों में समस्त आदिवासी समूह को जब दो अर्द्धाशों में बांट दिया जाता है तो प्रत्येक अंश को अर्धांश (द्विअंशक या मोइटी) और पूरे संगठन को युग्म या द्विदल संगठन (Dual Organization) कहते हैं। मजूमदार और मदान लिखते हैं, किसी जनजाति के सभी कुल जब केवल दो भ्रातृदलों में बंटे रहते हैं तब इससे पैदा होने वाले सामाजिक संरचना को द्वैध संगठन कहा जाता है और इनमें से प्रत्येक भ्रातृदल को मोइटी (Moiety) कहते हैं।” यह अ‘श या मोटी सामान्यतः बहिर्विवाही होते हैं। अत; प्रत्येक अर्द्धाश के लोग अपना जीवन-साथी दूसरे अांश या मोइटी से चुनते हैं। जब कभी मोइटी संख्या की दृष्टि से छोटी या बड़ी होने लगती हैं तो उसे पुनर्गठित किया जा सकता है और सम्पूर्ण समूह को दो भागों में विभाजित कर दिया जाता है। यह दोनों ही अर्धांश जनजातीय संगठन को चलाने में सहयोग देते हैं। बोडों (Bondo) लोगों में ओण्टल (Ontal) तथा किल्लो (Killo) दो अर्द्धाश हैं। वे दोनों ही बहिर्विवाही हैं।
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