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शैक्षिक प्रावधान या रणनीति Educational Provisions of Strategies in Hindi

शैक्षिक प्रावधान या रणनीति
शैक्षिक प्रावधान या रणनीति

शैक्षिक प्रावधान या रणनीति Educational Provisions of Strategies in Hindi

शैक्षिक प्रावधान या रणनीति (Educational Provisions of Strategies in Hindi)– दृष्टि बाधित बच्चों की अनेक आवश्यकताएँ व समस्याएँ होती हैं। इसलिए इनकी शिक्षा, देखभाल व समायोजन की विशेष आवश्यकता होती है। दृष्टि बाधित बच्चों की शिक्षा के लिए सामान्य बच्चों से अलग कार्यक्रम बनाये जाते हैं। भारत में दृष्टि बाधितों की शिक्षा सम्बन्धी सुविधाओं को निम्न दो भागों में बाँटा जाता है-

1. विशेष आवासीय विद्यालय (Spceial Residential School)-

अत्यधिक दृष्टि बाधित बच्चों को आमतौर पर आवासीय स्कूलों में रखा जाता है। विशेश प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षक ऐसे विद्यालयों में छात्रों को पढ़ने के लिए ब्रेल लिपि का प्रयोग करते हैं। ऐसे बच्चों के लिए बनाया गया पाठ्यक्रम उसी स्तर के सामान्य बच्चों के समान होता है। इस प्रकार के संस्थानों में बच्चों की शिक्षा, रुचि, संगीत, सामाजिक क्रियाओं और खेल आदि सम्बन्धी क्रियाओं को समर्थन व सहयोग प्रदान किया जाता है।

2. एकीकृत विद्यालय ढाँचा (Integrated School Setting)-

इस प्रकार के विद्यालयों में आंशिक रूप से दृष्टि बाधित बच्चों को शिक्षित किया जाता है। एकीकरण के आधार पर दृष्टि बाधितों व सामान्य बच्चों के लिए एक जैसी शिक्षा व्यवस्था की जाती है। दृष्टि बाधितों के लिए धनात्मक पाठ्यक्रम को विशेष महत्त्व दिया जाना चाहिए। धनात्मक पाठ्यक्रम द्वारा उन्हें सीखने में सहायता मिलती है और उनके लिए सुविधाजनक होता है। कौशलों के विकास से सीखने में सरलता होती है। धनात्मक पाठ्यक्रम में निम्न छः क्षेत्र शामिल हैं-

1. ब्रेल लिपि (Braille)

2. रुचि या रुझान व गतिशीलता (Orientation and Mobility)

3. सहायक सामग्री का उपयोग (Use of equipment)

4. सामाजिक कौशलों का विकास (Development of Social Skills)

5. दिनचर्या सम्बन्धी कौशल (Daily Living Skills)

6. विविध इन्द्रियों का प्रशिक्षण (Multi Sensory Training)

1.ब्रेल लिपि का प्रयोग-

यह अन्धों के लिए पढ़ने-लिखने की एक मूल प्रणाली फ्रांसीसी संगीतकार थे। पूर्ण रूप से अन्धों व जिनको बहुत ही कम दिखाई देता है, उनके लिए है। इस लिपि का प्रतिपादन लुईस ब्रेल (Louis Bralle) ने 1829 में किया जो कि एक ब्रेल प्रणाली का प्रयोग किया जाता है। यह 6 डाट सेल की बनी होती है जो 63 भिन्न-भिन्न चरित्रे को बताती है। 26 बिन्दुओं (Dots) का प्रयोग 26 अक्षरों (Alphabets) के लिए किया जाता है तथा बाकी 33 बिन्दु चिन्हों आदि का प्रतिनिधित्व करते हैं। ब्रेल प्रणाली में प्रायः लिखने के दो तरीकों का वर्णन किया जाता है-

(i) Perkins Brailler, (ii) The slate and Stylus.

Perkins Brailler में 6 चाबियाँ होती हैं। पिंजरे की हर एक dot के लिए। इन बिन्दुओं (Dots) पर 1 से 6 तक नम्बर दिये जाते हैं तथा उन 6 नम्बरों पर ब्रेल अक्षरों (Alphabet) का प्रयोग किया जाता है।

Slate और Stylus ब्रेल प्रणाली Perkins Brailler से अधिक कठिन होती है। इस प्रणाली में छात्रों को स्पर्श व महसूस करके ब्रेल लिपि को पढ़ना होता है। इसके बाद इसी तरह ब्रेल लिपि को याद किया जाता है।

आजकल ब्रेल लिपि को विकसित करने के लिए Computer Braille Printers का प्रयोग किया जा रहा है।

2. रुचि/रुझान व गतिशीलता-

बच्चों की रुचि व योग्यता के अनुसार उन्हें आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध करानी चाहिए। इसका आधार श्रवण क्षमता, स्पर्श, सुगन्ध, स्वाद आदि होना चाहिए। लोगों द्वारा परामर्श और मशीनी उपकरणों का प्रयोग करके दृष्टि बाधित बच्चों को गतिशील बनाया जा सकता है। ऐसे बच्चों की मानसिक मानचित्र बनाने में सहायता करनी चाहिए जिससे उन्हें दूरी व दिशा का ज्ञान प्राप्त हो जाये। उनको इस प्रकार की शिक्षा दी जाये जिससे वे कम व ज्यादा दूरी में फर्क कर सकें और अपने रास्ते की बाधाओं को पार कर सकें।

3. सहायक सामग्री का प्रयोग-

तकनीकी विकास ने दृष्टि बाधित बच्चों के लिए भी सामान्य बच्चों की तरह नम्रतापूर्ण कार्य करना आसान बना दिया है। आंशिक व पूर्ण अन्धों के लिए बोलने वाले कैलकुलेटर का प्रयोग किया जाता है। इसमें संख्यात्मक प्रविष्टियों को ईयर प्लग द्वारा ऊँचा बोला जाता है। संख्यात्मक घड़ियों व मैगनिफाइंग शीशा का भी प्रयोग बढ़ा है। इस प्रकार के शीशे द्वारा हम मुद्रित सामग्री को बड़े देख सकते हैं और सुगमता से पढ़ सकते हैं। कुर्जवैल पढ़ने वाली मशीन छपी हुई सामग्री को मौखिक अंग्रेजी में बदल देती है।

उत्तल दर्पण, चश्मे व अन्य दृष्टि यन्त्रों को भी प्रयोग किया जाता है। दृष्टि कैमरा व चलायमान टेलिस्कोप का भी प्रयोग किया जाता है। ओप्टेकॉन एक छोटी-सी मशीन है, जिससे हम हर एक अक्षर को व्यवहारगत हावभाव में आसानी से बदल सकते हैं। इस मशीन को हाथ में भी रखा जा सकता है। इस प्रकार हम मुद्रित सामग्री को बिना ब्रेल लिपि में बदले आसानी से पढ़ सकते हैं। सोनिक शीशों द्वारा अल्ट्रासोनिक आवाज किरणें निकलती हैं जिनको हर किसी के
द्वारा सुना नहीं जा सकता है। लेकिन जब ये किरणें किसी माध्यम/बाधा से टकराती हैं तो आवाज उत्पन्न करती हैं और इस प्रकार इन्हें सुनकर अन्धे लोग आसानी से सीख सकते हैं।

4. सामाजिक कौशल का विकास-

दृष्टि बाधित बच्चों के लिए समाजीकरण एक समस्या है। इनमें सामाजिक कौशल का अभाव होता है। इन्हें अपने साथी बच्चों द्वारा हीन दृष्टि से देखा जाता है। वे इन्हें आसानी से अपना नहीं पाते। अतः इनमें सामाजिक कौशल विकसित करने के लिए शाब्दिक अभिप्रेरणा दी जानी चाहिए। सामाजिक अच्छे व्यवहारों के लिए प्रोत्साहित किया जाये। साथी समूह द्वारा अपनाया जाये। कक्षा में बोलने का अवसर दिया जाये, जिससे उनमें आत्मविश्वास का विकास हो सके। उत्तम आचरण का प्रशिक्षण दिया जाये।

5. दिनचर्या सम्बन्धी कौशल-

दृष्टि दोष होने के कारण ये बालक अपनी दिनचर्या सम्बन्धी गतिविधियाँ भी सुचारु रूप से नहीं कर पाते हैं। इन्हें बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार इन बच्चों को उचित मार्गदर्शन व अनुभव द्वारा इनके खाने समबन्धी कौशल, कपड़े पहनना, अपने आप को स्वस्थ रखना, नहाना, खरीदारी, मशीनी उपकरण प्रयोग, खाना बनाना व अपना बिस्तर लगाना आदि दिनचर्या सम्बन्धी कौशलों को विकसित किया जा सकता है। इनकी दिनचर्या नियमित करने के लिए माता-पिता व अध्यापक दोनों ही अहम् भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार ये बच्चों को कठिनाइयों का निदान करना सिखाते हैं ताकि वे अपने आपको आत्मविश्वासी बना सकें।

6.विविध इन्द्रियों का प्रशिक्षण-

दृष्टि बाधित बच्चों को बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री का उपयोग करने से बहुत लाभ होता है। इनकी इन्द्रियाँ प्रशिक्षित होती हैं व कौशलों का विकास होता है। इस प्रकार के प्रशिक्षणों में भाषा शिक्षक का बहुत योगदान होता है। टेलीविजन भी सूचना का प्राथमिक स्रोत है। जिससे इन्द्रियों का विकास होता है।

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