हम्मीर देव का जीवन परिचय (Biography of Hammir Dev in Hindi)- हम्मीर देव और समुद्रगुप्त के शासनकाल की तुलना किया जाना भी प्रासंगिक होगा, यद्यपि इन दोनों के शासनकाल में लगभग 900 वर्षों की दूरी अवश्य ही थी। समुद्रगुप्त के शासनकाल में हिंदुस्तान संगठित था, किंतु हम्मीर देव के शासन के समय में हिंदुस्तान कई राज्यों में बंट चुका था। स्थानीय स्तर पर ही राज्य कायम थे व चक्रवर्ती स्वरूप समाप्त हो गया था। इस कारण मुस्लिम शासकों के लिए ये आसान हो गया था कि वह किसी भी छोटे राज्य पर हमला करके उसे हथिया लें या उसे लूट लें। उस समय मुस्लिम आततायियों के खिलाफ एकजुट होने की बात को व्यापक स्तर पर नहीं सोचा गया था। आपस की प्रतिद्वंद्विता और फूट के कारण पड़ोसी शासक भी आक्रांता के खिलाफ स्थानीय राजा की मदद नहीं करते थे। पराई आग में क्यों हाथ डाला जाए! कदाचित यह भी सोचा जाता होगा, लेकिन तत्कालीन भारतीय शासकों को यह सोचना चाहिए था कि पराई आग इनके घर (शासक) तक भी आ सकती है।
हम्मीर देव के शासनकाल में भी यही स्थिति थी। कुछ शासक साथ हो जाते थे, लेकिन ऐसी कोई संधि उस समय स्थानीय शासकों ने नहीं की थी कि विदेशी हमलावर के खिलाफ संयुक्त सेना बनाकर इनका मुकाबला किया ही जाएगा। विदेशी आक्रमणकारी इसी अदूरदर्शिता का फायदा उठाया करते थे। आगे चलकर अंग्रेजों ने भी इसका फायदा उठाया और इससे कदम आगे बढ़कर ‘फूट डालो व राज करो’ की नीति का उपयोग किया।
यदि हम्मीर देव के व्यक्तिगत जीवन की चर्चा की जाए तो रणथंभौर के इस राजा ने 1282 से 1301 तक शासन किया था। यह एक प्रतापी शासक था। इसने राज्य विस्तार का कार्य भी किया और भारतीय शासकों को संगठित करने का प्रयत्न भी किया। मालवा का एक भाग और गढ़मंडल जीतकर इसने अपने राज्य को आबू और उज्जैन तक बढ़ा लिया था।
यह बेहद प्रतापी और शक्तिशाली शासक था। जलालुद्दीन खिलजी ने 1291 में रणथंभौर के किले पर कब्जा करने के लिए हमला किया, लेकिन हम्मीर देव की सैन्य शक्ति के समक्ष न टिक सकने की वजह से उसे अपना ये प्रयास त्यागना पड़ा। तब कुछ सरदार खिलजी की सेना से विद्रोह करके अलग हो गए थे। हम्मीर देव ने इनको अपने पास पनाह दे दी। यह खिलजी को खुली चुनौती थी। इसने पुनः हमले किए और दो बार उसे हम्मीर देव की सेना के सामने पीछे हटना पड़ा। अंततः सुल्तान ने खुद किला घेरकर 1301 में उस पर कब्जा कर लिया और हम्मीर देव भी शहीद हो गए।
FAQ’s
रणथंबोर में चौहान वंश की स्थापना कब हुई?
रणथम्भौर में चौहान वंश की स्थापना 1194 ई. में पृथ्वीराज तृतीय के पुत्र गोविन्दराज ने की थी।
हम्मीर देव चौहान राजगद्दी पर कब बैठा?
रणथम्भौर की राजगद्दी पर हम्मीर देव चौहान रविवार को माघ मास में विक्रम संवत 1339 को राजगद्दी पर बैठा था। वह पिता जैत्रसिंह के तीसरे पुत्र थे, किन्तु बहुत शक्तिशाली और बुद्धिमान योद्धा थे। इसलिए उनको रणथम्भौर का शासक बनाया गया।
अल्लाउदीन को हम्मीर देव चौहान ने कितने दिन कैद में रखा था?
दिल्ली के सुल्तान अल्लाउदीन खिलजी ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया और हार दिखने के कारण उसने हम्मीर देव चौहान को संधि करने का प्रस्ताव भेजा। Hammir Dev Chauhan उसके छल को भांप गए और दोनों सेनाओ के मध्य भयंकर युद्ध हुवा। इस युद्ध में हम्मीर देव चौहान ने अल्लाउदीन खिलजी को तीन माह अपनी जेल में कैद रखा।
हम्मीर देव चौहान की पुत्री का नाम क्या था?
हम्मीर देव चौहान की पुत्री का नाम देवल दे था
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