बीरबल बनाम महेशदास का जीवन परिचय (Birbal Biography in Hindi)- कोई विरला ही होगा, जो प्राथमिक शिक्षा का ज्ञान प्राप्त कर लेने के पश्चात् भी हाजिरजवाब बुद्धि वाले बीरबल बनाम महेशदास से अनभिज्ञ हो। 485 वर्ष की यात्रा करता हुआ ये नाम किस्सा कोई में मील का स्तंभ बन चुका है। प्रतिभा ऐसी ही चीज है, जो अपने मालिक की कीर्ति को अक्षुण्ण बनाए रखने का कार्य करती है। प्रतिभा और शुभकार्य स्वयं बोलते हैं, इन्हें भोंपू की आवश्यकता नहीं पड़ती।
बीरबल बनाम महेशदास का जीवन परिचय
जन्म का नाम (Birth Name ) | पण्डित महेश दास भट्ट |
प्रसिद्धि (Famous For ) | अकबर ने बीरबल को ‘राजा’ और ‘कविराय’ की उपाधि से सम्मानित किया था |
जन्मदिन (Birthday) | 1528 ई. |
जन्म स्थान (Birth Place) | सीधी जिला ,मध्यप्रदेश, भारत |
उम्र (Age ) | 58 साल (मृत्यु के समय ) |
मृत्यु की तारीख (Date of Death) | 16 फरवरी 1586 |
मृत्यु का स्थान (Place of Death) | स्वात घाटी , भारत (अब पाकिस्तान) |
नागरिकता (Citizenship) | भारतीय |
जाति (Cast ) | ब्राह्मण (जन्म के समय ) |
गृह नगर (Hometown) | सीधी जिला ,मध्यप्रदेश, भारत |
धर्म (Religion) | हिन्दू धर्म, दीन ए इलाही |
पेशा (Occupation) | अकबर के साम्राज्य में दरबारी और सलाहकार |
वैवाहिक स्थिति Marital Status | विवाहित |
बादशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल बीरबल का शुरुआती नाम महेशदास था। इनके पिता गंगादास के नाम से जाने जाते थे। महेशदास का जन्म 1528 में कानपुर के पास स्थित अकबरपुर में एक ब्रह्मभट्ट परिवार में हुआ था। कुछ विद्वान इनका जन्म नारनौल, हरियाणा में भी मानते हैं। दूसरा कयास ज्यादा सत्यता के करीब जान पड़ता है, किंतु साक्ष्य नहीं है।
महेशदास बाल्यकाल से ही प्रतिभाशाली रहे थे। बचपन में ही इनके द्वारा हिंदी, फारसी और संस्कृत का श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त किया गया था। काव्य प्रतिभा इनमें नैसर्गिक ही थी। ये ‘ब्रह्म कवि’ के छद्म नाम से काव्य रचा करते थे। हास्य- व्यंग्य में भी इनकी प्रतिभा विलक्षण रही थी। इन्हीं गुणों के कारण सबसे पहले इन्हें जयपुर के राजा भगवंत दास के दरबार में आदर प्राप्त हुआ, लेकिन अकबर के दरबार में पहुंचने तक ‘ब्रह्मकवि’ नाम की ख्याति के पश्चात् भी ये महेशदास के नाम से ही पहचाने जाते थे। माना जाता है कि महेशदास दक्ष सेनापति भी थे। अकबर की सेना का संचालन करते हुए इन्होंने पंजाब और मुल्तान में कई उल्लेखनीय जीत दर्ज की थी। इसी से खुश होकर अकबर ने इन्हें ‘बीरबर’ का खिताब देकर मान प्रदान किया। यही खिताब बाद में अपभ्रंश रूप में बीरबल बन गया और ये इसी नाम से जगप्रसिद्ध हुए।
संभवतः बीरबल 30 वर्ष तक अकबर के दरबार में बेहद सम्मानित पद पर कायम रहे। इनके और अकबर के मनोविनोद के अनेक किस्से आमजन में प्रचलित रहे हैं। बीरबल की हाजिरजवाबी अनूठी रही है। इन्होंने पद्य एवं गद्य दोनों में रचनाएं कीं। पद्य रचनाओं में ‘कवित्त संग्रह’ और ‘सुदामा चरित्र’ तथा गद्य रचनाओं में ‘अनुवाद भगवद्गीता’ और ‘बीरबल पादशाह की बात’ खास तौर पर चर्चित हैं। ‘कवित्त संग्रह’ का बखान काशीनगरी प्रचारिणी की 1923 की अन्वेषण पड़ताल में भी लिया गया है।
बेशक बीरबल की सैन्य कुशलता इनके सम्मान का कारण बनी थी, किंतु यही दक्षता इनकी मृत्यु की वजह भी बनी। खैबर दरें के पास युसुफजई कबीले ने बगावत कर दी थी। उसे कुचलने के लिए बीरबल की अगुवाई में मुगल फौज भेजी गई। वहीं विद्रोहियों द्वारा घिर जाने के कारण फरवरी, 1586 में इनकी शहादत हुई।
FAQ
बीरबल क्यों प्रसिद्ध थे?
बीरबल हिंदी, संस्कृत और पर्शियन भाषा में शिक्षा प्राप्त की थी. बीरबल कविताये भी लिखते थे, ज्यादातर उनकी कविताये ब्रज भाषा में होती थी, इस वजह से उन्हें काफी प्रसिद्धि भी मिली थी. बीरबल मुग़ल शासक अकबर के दरबार के वो सबसे प्रसिद्ध सलाहकार थे.
बीरबल के परिवार में कौन कौन था?
महेशदास के पिता का नाम गंगा दास और माता का नाम अनाभा दवितों था। वह तीन भाइयो में तीसरे नंबर थे।
बीरबल का दूसरा नाम क्या है?
पण्डित महेश दास भट्ट
बीरबल नाम कैसे पड़ा?
अकबर के दरबार में, अकबर ने बीरबल को “वीर -वर ” की उपाधि दी, इसलिए उसे बीरबल कहा जाने लगा।
बीरबल की मृत्यु कब हुई थी?
16 फरवरी 1586
बीरबल के पिता का क्या नाम था
गंगा दास
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