कुम्भनदास का जीवन परिचय (Biography of Kumbhandas in Hindi)- ‘विरले होते हैं वे लोग, जो इस संसार में जन्म लेने के पश्चात् माया, मोह और मद (शक्ति) से निर्लिप्त बने रहते हैं, जो अपनी ही शर्तों पर जीवन गुजारते हैं और अपने हृदय की अनदेखी नहीं करते।’ यदि इस भूमिका की देह में प्राण फूंके जाएं तो कुंभनदास का नाम जहन में सहज ही कौंध जाता है। इनका जन्म समय 1450 के आसपास माना जाता है। इनके काव्यकाल को 1468 से 1582 के मध्य का माना जाता है। इनका स्वाभिमान इनके काव्य में भी झलकता था।
महाप्रभु बल्लाभाचार्य के शागिर्द एवं अष्टछाप का काव्यपाठ करने वाले कुंभनदास का जन्म ब्रज क्षेत्र में गोवर्धन के पास एक गरीब क्षत्रिय परिवार में हुआ माना जाता है। पुष्टिमार्ग संप्रदाय की दीक्षा लेने के पश्चात् ये श्रीनाथ जी के मंदिर में कीर्तनकार के बतौर कार्य करने लगे। ये किसी से दान या सहायता प्राप्त नहीं करते थे और कृषि कार्यों द्वारा अपने बड़े परिवार की आजीविका चलाया करते थे। राजा मानसिंह द्वारा दी गई स्वर्ण निर्मित आरसी, एक सहस्त्र मोहरे तथा गांव की मालगुजारी का उपहार यह कहकर मना कर दिया कि यह दान आप किसी ब्राह्मण को प्रदान करें।
गरीब श्रीनाथ जी की स्तुति में लगे रहने वाले कुंभनदास को फतेहपुर सीकरी में आमंत्रित करने हेतु एक बार अकबर ने शाही गाड़ी भेजी, किंतु कुंभनदास शाही गाड़ी में नहीं बैठे। ये पैदल ही फतेहपुर सीकरी पहुंचे। अकबर ने इनसे कुछ सुनाने का आग्रह किया। कदाचित उद्देश्य यह रहा था कि कुंभनदास सम्राट की शान में कुछ गाएं। ऐसी मान्यता है कि उस अवसर पर कुंभनदास जी ने निम्नलिखित पद गाया था :
‘संतन को कहा सीकरी सो काम।
आवत जात पनहियां टूटी।
बिसरि गयो हरि नाम।
जाको मुख देखे दुख लागे।
ताको करन परी परनाम।
कुंभनदास लाल गिरिधर बिन यह सब झूठो धाम ॥’
अकबर ने जब इनसे कुछ उपहार स्वीकार करने का आग्रह किया तो ये बोले कि मुझे आज के पश्चात् फिर कभी बुलाया न जाए, यही उपहार पर्याप्त है। अपने महाप्रभु श्रीनाथ जी की अनन्य भाव भक्ति में लीन कुंभनदास जी के रचित पदों की संख्या तकरीबन 500 है। उनमें वर्ष पर्यंत होने वाले उत्सवों व श्रीनाथ जी की आठ प्रहर की सेवा से आशय रखने वाले पद ज्यादा हैं। इनकी भक्ति अनूठी थी तो इनका निडर व्यवहार भी प्रेरक रहा है।