सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय का जीवन परिचय (Sachidanand Hiranand Vatsyayan Agyey Ka Jivan Parichay)- भारतीय इतिहासकारों की इसे विफलता ही माना जाना चाहिए कि विश्वतरीय प्रतिभा के धनी लोगों की जीवनी को भी इन्होंने सहेजकर नहीं रखा। कबीर, मीरा, रविदास के पश्चात् वात्स्यायन के संदर्भ में भी इतिहासकारों की तरफ जब निगाह उठती है तो वहां मायूसी और शर्मिंदगी ही नजर आती है। जिस शख्स ने वात्स्यायन नाम के कामसूत्र की रचना की थी और जिस कामसूत्र से समस्त दुनिया प्रभावित हुई है, उसके रचयिता से भारतीय इतिहासकार प्रभावित नहीं हुए। इससे यही प्रतीत होता है कि मध्य युग के इतिहासकार महान राजनीतिक इतिहास लिखने में ही रुचि रखते थे और भक्ति, साहित्य व कला ने अन्य पहलुओं को ये नजरअंदाज कर जाते थे। फिर भी अपुष्ट इतिहास यह अवश्य बताता है कि जग प्रसिद्ध ‘कामसूत्र’ ग्रंथ के रचियता वात्स्यायन का जीवनकाल ईसा के जन्म से 300 वर्ष पहले का रहा था।
जीवन परिचय बिंदु | अज्ञेय जीवन परिचय |
पूरा नाम | सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन |
जन्म | 7 मार्च 1911 |
जन्म स्थान | कसया, उत्तर प्रदेश, भारत |
पहचान | लेखक, कवि |
अवधि/काल | आधुनिक काल में प्रगतिवाद |
यादगार कृतियाँ | आँगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार |
वात्स्यायन वाराणसी के रहने वाले एक धार्मिक सोच के शख्स थे, लेकिन इनके ग्रंथ से पता चलता है कि इन्हें दुनियादारी का अनोखा अनुभव और अनुपम ज्ञान रहा था। उनसे पूर्व भी इस विषय पर ग्रंथ लिखे गए थे तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की कल्पना भी की गई थी, लेकिन इन सभी ग्रंथों को छोड़ सिर्फ वात्स्यायन के ‘कामसूत्र’ ग्रंथ को ही महान शास्त्रीय दर्जा प्राप्त हुआ है। 1870 में ‘कामसूत्र’ का अंग्रेजी में भी अनुवाद हुआ। उसके पश्चात् अखिल विश्व के लोग इस कामसूत्र से वाकिफ हो गए।
ग्रंथ में वात्स्यायन बताते हैं कि महिलाओं को 64 कलाओं में दक्ष होना चाहिए। इसमें महज पाक शास्त्र, सीना-पिरोना और सेज सजाना ही नहीं, इन्हें नृत्य, संगीत, रसायन, अध्ययन, उद्यान कला और कविता करने में भी कुशल होना चाहिए। इन्होंने अपने कामसूत्र ग्रंथ में कई आसनों के साथ यह भी बताया है कि किस तरह की महिला से शादी या प्रेम करना चाहिए और शयनागार को किस प्रकार से सजाना चाहिए और स्त्री से किस प्रकार व्यवहार करना चाहिए। हैरत इस बात की है कि इन्हें इस तरह की राज रखने योग्य बातों का ज्ञान किस प्रकार से हुआ? वात्स्यायन ने नव-विवाहितों को एक उपयोगी पुरस्कार प्रदान किया है।
अज्ञेय जी को प्राप्त पुरस्कार एवं सम्मान
अज्ञेय जी को जो प्रमुख पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हुए, उनमे से कुछ विशेष पुरस्कार इस प्रकार है—
(1) नागरी प्रचारिणी सभा पुरस्कार— शेखर: एक जीवनी के लिए सन् 1943 में|
(2) साहित्य अकादमी पुरस्कार— ‘आँगन के पार द्वार’ पर सन् 1962 में प्राप्त हुआ |
(3) भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार— ‘कितनी नावो में कितनी बार’ पर सन् 1978 में मिला था |
(4) स्वर्णमाल पुरस्कार— मई 1983 में सुगा (युगोस्लाविया) में अंतर्राष्ट्रीय काव्य – समारोह की संचालन – समिति द्वारा प्रदान हुआ |
(5) भारत – भारती पुरस्कार— मार्च 1987 में वर्ष 1983 – 84 के लिए उत्तरप्रदेश संस्थान द्वारा प्राप्त हुआ |
(6) उपाधियाँ — अज्ञेय को हिन्दी साहित्य सम्मलेन प्रयाग द्वारा ‘साहित्य वाचस्पति‘ की उपाधि सन् 1968 में और विक्रम वि०वि० उज्जैन द्वारा डी० लिट० की उपाधि सन् 1971 में प्रदान की गयी थी |
साहित्यिक – परिचय
अज्ञेय जी ने सन् 1934 ई० के आस – पास लेखन – कार्य आरम्भ किया था | इनका समय प्रगतिवादी साहित्य का उत्कर्ष काल था | इन्होने कविता और गद्य दोनों क्षेत्रो में सशक्त रचनाए की | गद्य के क्षेत्र में इन्होने निबन्ध, यात्रावृत, इन्टरव्यू, टिप्पणी, प्रशानोतर आदि नवीन विधाओ के अतिरिक्त गद्य – काव्य, उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में भी उच्च कोटि की रचनाये की | सम्पादक और पत्रकार के रूप में अज्ञेय जी की विशेष ख्याति की |
इन्होने सैनिक, विशाल भारत, प्रतीक, दिनमान, वाक (अग्रेजी) पत्रों का सफल सम्पादन किया | ये युगान्तकारी साहित्यकार थे | प्रयोगात्मकता एवं नवीनता को लेकर की गयी अनेक अलोचनाओ के उपरांत भी इस सत्य की अवहेलना नहीं की जा सकती की अज्ञेय उन साहित्य – निर्माताओ में से थे, जिन्होंने आधुनिक हिंदी – साहित्य को एक नया सम्मान और नया गौरव प्रदान किया | वस्तुतः हिन्दी साहित्य को आधुनिक बनाने का श्रेय उन्ही को है | स्वंय में समर्थ कलाकार होने के साथ – साथ अज्ञेय जी को हिंदी – साहित्य के सन्दर्भ में ऐतिहासिक व्यक्तित्व भी थे | इस प्रकार कवि, गद्यकार, सम्पादक और पत्रकार के रूप में अज्ञेय जी ने हिन्दी – साहित्य की महत्वपूर्ण सेवा की है |
रचनाएँ
अज्ञेयप्रयोगवाद के परावर्तक तथा समर्थ साहित्यकार थे | वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे | उनकी प्रतिभा गद्य – क्षेत्र में नवीन प्रयोगों में दिखाई देती है | अज्ञेय हिन्दी – साहित्य के ऐसे रचनाकार है, जिन्होंने लगभग प्रत्येक विधा पर कुशलता के साथ अपनी लेखनी चलाई है | अज्ञेय जी की प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित इस प्रकार है—
अज्ञेय की रचनाएँ
निबन्ध – संग्रह— आत्मनेपद, सब रंग और कुछ राग, लिखि कागद कोरे आदि इनके वैयक्तिक या आत्मपरक निबन्ध – संग्रह है |
आलोचना या समीक्षा – ग्रन्थ— ‘हिन्दी – साहित्य: एक आधुनिक परिदृश्य ‘ , त्रिशंकु तथा तीनो सप्तको की भूमिकाएँ आदि |
काव्य – रचनाएँ —
- अरी ओ करुणा प्रभामय
- आँगन के पार द्वार
- बावरा अहेरी
- कितनी नावो में कितनी बार
- हरी घास पर क्षण भर
- इत्यलम
- इन्द्रधनुष रौदें हुए ये
- पहले मै सन्नाटा बुनता हूँ
- चिन्ता
- पूर्वा
- सुनहले शैवाल
- भग्नदूत
कहानी – संग्रह —
- विपथगा (1937)
- परम्परा (1944)
- कोठरी की बात (1945)
- शरणर्थी (1948)
- जयदोल (1951)
- ये तेरे प्रतिरूप (1961)
नाटक— उत्तरप्रियदर्शी (1967) आदि |
उपन्यास—
- शेखर: एक जीवनी – भाग 1 (सन्1941) & शेखर: एक जीवनी – भाग 2 (सन्1944)
- नदी के दीप
- अपने – अपने अजनबी (1961)
यात्रा – साहित्य—
- अरे यायावर रहेगा याद (1953)
- एक बूंद सहसा उछली (1960)
सम्पादन— ‘विशाल भारत’, ‘सैनिक’, ‘प्रतीक’, ‘दिनमान’, ‘वाक्’ आदि |
इसके अतिरिक्त अज्ञेय जी ने अन्य अनेक ग्रंथो का सम्पादन भी किया | इनके द्वारा सम्पादित किये गए ग्रन्थ है ‘आधुनिक हिंदी – साहित्य’ (निबन्ध – संग्रह), ‘तार सप्तक’ (कविता – संग्रह) एवं नये एकांकी आदि | इनकी उपन्यास और कहानियाँ उच्च कोटि की है |
भाषा
अज्ञेय जी का अध्ययन और अनुभाव विशाल था | इनके शब्दों में और प्रतीको में भी जीवन के यथार्थ को उद्घाटित करने की शक्ति थी | इन्होने भाषा के विविध रूपों का प्रयोग किया है | इनकी भाषा विषय और प्रसंग के अनुसार बदलती रहती है | इन्होने संस्कृतनिष्ठ भाषा से लेकर आम बोलचाल की भाषा तथा उर्दू व अग्रेज़ी के शब्दों का भी नि:संकोच प्रयोग किया है | अत: अज्ञेय नवीन चेतना के संचालक, नवीन बोध के संवाहक तथा भाषा के अनूठे शिल्पी – कवि साहित्यकार है |
शैली
अज्ञेय की शैली विविधरूपिणी है | अज्ञेय जी के गंभीर व्यक्तित्व की छाप इनकी रचना – शैली पर विशेष रूप से दिखाई देती है | शैली के क्षेत्र में इन्होंने अनेक नवीन प्रयोग एवं मानक स्थापित किये है | इनकी रचनाओं में निम्नलिखित शैलियों के दर्शन होते है —
- वर्णनात्मक शैली
- विवेचनात्मक शैली
- अलोचनात्मक शैली
- भावात्मक शैली
- व्यंग्यात्मक शैली
इसके अतिरिक्त अज्ञेय जी ने प्रश्नोत्तर शैली, उध्दरण शैली, टिप्पणी शैली, डायरी शैली, इन्टरव्यू शैली आदि शैलियों का भी कलात्मक प्रयोग किया है |