नाभादास कौन थे? (Biography of Nabhadas in Hindi)- जिनका जिक्र कम होता है, वह महान नहीं! ऐसा नहीं है। कई कारणों से नाभादास का कृतित्व सामान्य प्रजाजनों के मध्य नहीं आ पाया है, लेकिन इनके द्वारा रचित ‘भक्तमाल‘ ग्रंथ इनकी महानता का वाहक है। वह ग्रंथ कई प्रायोजित नामचीन लोगों की महानता पर भारी है।
नाभादास को भक्तिकाल का प्रसिद्ध कवि माना जाता है। इनके जीवन की सटीक समय कालिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। तथापि मान्यता है कि इनका जीवन सत्रहवीं शताब्दी के मध्यकाल के दौरान गुजरा होगा। इनके प्रसिद्ध ग्रंथ ‘भक्तमाल’ के सृजन का समय इतिहासकारों ने इनका जन्म 1592 में निर्धारित किया है और 1662 में इनकी मृत्यु होना तय किया है। मान्यता है कि इनका जन्म लांगुली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। एक दूसरे मत के अनुसार ये डोम जाति में पैदा हुए थे, जो वर्ण व्यवस्था में निचली जाति नहीं मानी जाती थी और गायन विधा में दक्ष रही थी।
कुछ लोग इन्हें हनुमान जी की वंश परंपरा से बताते हैं। नाभादास जन्मांध थे। इनके बचपन में ही पिता का निधन हो गया। तभी भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा और मां इन्हें किसी वन में छोड़ आई । तभी उधर से जाते कील्ह और अग्रदास महात्माओं की नजर इस पांच वर्षीय नेत्रहीन बालक पर पड़ी और इन्होंने उसे अपना सान्निध्य में रख लिया। इनके दिव्य कमंडल के छींटों से बालक की दृष्टि भी ठीक हो गई। बाद में अग्रदास जी ने बालक नाभादास को इनकी प्रतिभानुसार दीक्षित करने का कार्य किया।
नाभादास को सबसे ज्यादा यश इनकी रचना ‘भक्तमाल’ से मिला है। यह हिंदी में जीवनी साहित्य का प्रथम ग्रंथ भी है और इसमें कवि ने भक्तों व भक्त कवियों के जीवन चरित संरक्षित करके बेहद उपयोगी कार्य किया है। ब्रजभाषा में रचित यह ग्रंथ, जिसमें लगभग दो सौ भक्तों की जीवनगाथा है, निर्गुण और सगुण सभी विचारधाराओं के प्रति सम्मान प्रदर्शित करता है। धार्मिक विचार के लोगों में इसका बहुत सम्मान रहा है। इनके दूसरे उपलब्ध ग्रंथ ‘अष्टयाम’ और ‘राम संबंधी स्फुट पद’ है। ‘अष्टयाम’ ब्रजभाषा में गद्य और पद्य दोनों में उपलब्ध है। अतः नाभादास अपने कृतित्व से महान हैं।
नाभादास किसके समकालीन थे? Nabhadas Kiske Samkalin The?
नाभादास (Nabhadas) तुलसीदास के समकालीन थे।