केशवराव बलीराम हेडगेवार का जीवन परिचय
भारतीय हिंदू संस्कृति के प्रतीक पुरुष, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर.एस.एस.) के संस्थापक केशवराव हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल, 1889 को नागपुर में भारतीय परंपराओं का पोषण करने वाले एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इन्हें मराठा राज्य व विशेष रूप से छत्रपति शिवाजी के वीरतापूर्ण कार्यों से विशेष प्रोत्साहन मिला। बंग-भंग के खिलाफ छिड़े राष्ट्रीय आंदोलन से भी ये प्रभावित हुए और सरकारी विद्यालय से निकाल दिए गए थे। तदंतर ये कोलकाता के नेशनल मेडिकल कॉलेज में दाखिल हुए और 1914 में वहां से चिकित्सक की उपाधि प्राप्त की।
हेडगेवार ने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र की अनवरत सेवा करते हुए गुजारा। क्रांतिकारियों, कांग्रेस और हिंदू महासभा सभी से इनके बेहतर रिश्ते रहे। इन्होंने लोकमान्य तिलक द्वारा स्थापित होमरूल लीग में भाग लिया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1920 के नागपुर अधिवेशन के दौरान ये कांग्रेस सेवादल के सर्वोच नायक भी रहे। 1921 के सत्याग्रह में भाग लेने के कारण इन्हें जेल यात्रा भी करनी पड़ी।
हेडगेवार का संदेश था कि हिंदुओं को स्वाभिमानपूर्वक रहना चाहिए। यदि उन पर कहीं से हमला होता है तो वे बहादुरी से उसका मुकाबला करें। इन्होंने महसूस किया कि हिंदू आपस में बंटे हुए हैं। जब तक उनमें एकता का भाव नहीं आएगा और वीरोचित जोश नहीं होगा, वे प्रगति नहीं कर सकेंगे। भारत हिंदू बाहुल्य है। अत: अपनी कमजोरियों पर विजय प्राप्त कर देश को आगे बढ़ाने के कार्य मे इन्हें अपनी भूमिका निभानी होगी। इसी लक्ष्य को नजर में रखकर इन्होंने 27 सितंबर, 1925 को विजयादशमी के यशस्वी दिन नागपुर में ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ का गठन किया। इन्होंने कहा कि कोई व्यक्ति या देवता नहीं, भगवा ध्वज संघ का ‘गुरु’ है। संघ के स्वयं सेवक जरूरी धन की व्यवस्था खुद अपनी ओर से ‘गुरु दक्षिणा’ के रूप में करेंगे और संघ की संपूर्ण ताकत ‘सर संघ चालक’ में अंतर्निहित होगी। नागपुर के पश्चात् संघ की अन्य शाखा वर्धा में स्थापित हुई। फिर शनैः-शनैः इसका पूरे देश में विस्तार होता रहा। 23 दिसंबर, 1934 को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की वर्धा की शाखा देखने हेतु गांधी जी गए थे। इन्होंने लोगों के अनुशासन आदि की तो प्रशंसा की ही, सर्वाधिक सुखद विस्मय इन्हें यह देखकर हुआ था कि वहां अस्पृश्यता का नामनिशान तक नहीं था। हिंदू समाज का यह संपूर्ण एकमेव स्वरूप था।
केशवराम बलीराम हेडगेवार आजीवन संघ के विस्तार व भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण के लिए प्रयास करते रहे। इन्होंने चिकित्सकीय परामर्श भी नहीं माने। अंत में उच्च रक्तचाप के कारण 21 जून, 1940 को इनका निधन हो गया।
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