केशवचंद्र सेन का जीवन परिचय- बंगाल की धरा के ‘ब्रह्म समाज’ आंदोलन के नेतृत्वकर्ता केशवचंद्र सेन का जन्म 19 नवंबर, 1838 को कोलकाता में हुआ था। इनके पितामह दीवान राय कमल सेन बंगाल की एशियाई समिति के मंत्री नियुक्त होने वाले प्रथम भारतीय रहे थे। केशवचंद्र सेन की बाल्यकाल ही धार्मिक एवं अध्यात्म के विषयों में से गहरी रुचि रही थी। राजा राममोहन राय द्वारा स्थापित ‘ब्रह्म समाज’ की विचारधारा ने उन्हें अपनी तरफ आकर्षित किया और 19 वर्ष की आय में ये ‘ब्रह्म समाज’ में शालि हो गए। इनकी कुशलता से प्रभावित होकर केशवचंद्र को दो वर्ष में ही ‘समाज’ का उप मंत्री बना दिया गया।
पूरा नाम | केशव चन्द्र सेन |
जन्म | 19 नवम्बर, 1838 |
जन्म भूमि | कलकत्ता, पश्चिम बंगाल |
मृत्यु | 8 जनवरी, 1884 |
मृत्यु स्थान | कलकत्ता, बंगाल प्रेसीडेंसी |
अभिभावक | प्यारेमोहन |
प्रसिद्धि | समाज सुधारक |
पंथ | भारतीय ब्रह्म समाज |
महर्षि के साथ प्रचारकार्य के निमित्त ये श्रीलंका भी गए। वृद्धावस्था के कारण विद्यासागर ‘समाज’ की सक्रिय भूमिका से अलग हुए तो इन्होंने केशवचंद्र से कहा था, ‘विधवाओं की स्थिति में सुधार हो, इनके पुनर्विवाह की जिम्मेदारी लो, नहीं तो इनकी वेदना इस भारत- -भूमि को कभी फलने नहीं देगी।’ इसके पश्चात् ये आजीवन अन्य कार्यों के साथ विधवाओं की स्थिति सुधारने के कार्य को वरीयता देते रहे। इनका विचार था कि स्त्री व पुरुष दोनों समान हैं, दोनों के समवेत विकास से ही देश का विकास होगा।
इन्होंने लड़कियों हेतु कई विद्यालय खुलवाए। 1863 में ‘वामाबोधिनी’ नाम की स्त्रियों की पत्रिका का प्रकाशन भी आरंभ करवाया।
‘ब्रह्म समाज ‘ में ही कुछ लोग सनातनी रूढ़ियों में यकीन रखते थे। अतः विधवा-विवाह के सवाल पर समाज दो फाड़ हो गया। इस पर केशवचंद्र सेन ने 1867 में ‘भारतीय ब्रह्म समाज’ नामक संस्था बनाई। ये संस्था धार्मिक संकीर्णता से आजाद थी। केशवचंद्र का कहना था, ‘ईश्वर न सिर्फ हिंदुओं का है, न मुसलमानों का, न ईसाइयों का है, वह सबका है और सब उसके हैं।’ धर्म के बारे में इन्होंने कहा, ‘धर्म एक व्यक्ति की नहीं, संपूर्ण मानवता की वस्तु है। धर्म का उद्देश्य मानव का हित और उसकी आत्मा की शुद्धि है। जिन भी कार्यों से आत्मा शुद्ध हो, ये सभी धर्म के अंग हैं। लक्ष्य एक है, रास्ते अनेक। ‘
1870 में केशवचंद्र सेन इंग्लैंड गए। वहां इनका स्वागत भारत के आध्यात्मिक राजदूत की भांति किया गया था। लौटने पर इन्होंने ‘इंडियन रिफोर्म एसोसिएशन’ नामक संस्था का निर्माण किया। इसकी सदस्यता सभी जाति व धर्म के लोगों के लिए खुली थी। संस्था की तरफ से ‘सुलभ समाचार’ शीर्षक से अखबार निकाला
गया। स्त्रियों के लिए विद्यालय और एक महाविद्यालय आरंभ किया गया। इनके प्रयासों से 1872 में लड़कियों की विवाह की उम्र बढ़ाने का एक कानून भी बना । 18 जनवरी, 1883 में 45 वर्ष की उम्र में ही इनका निधन हो गया।
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