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आचार्य नरेंद्र देव का जीवन परिचय | Narendra Dev Biography In Hindi

आचार्य नरेंद्र देव का जीवन परिचय
आचार्य नरेंद्र देव का जीवन परिचय

आचार्य नरेंद्र देव का जीवन परिचय- निडर देशभक्त, विद्वान, समाजवादी विचारक और शिक्षाशास्त्री रहे आचार्य नरेंद्र देव का जन्म 31 अक्तूबर, 1889 को सीतापुर (उ.प्र.) में हुआ था। इनके पिता श्री बलदेव प्रसाद प्रतिष्ठित वकील थे। नरेंद्र का बचपन में नाम रखा गया अविनाशी लाल। अल्प समय पश्चात् इनके पिता अपने पैतृक नगर फैजाबाद आ गए। यहीं पर अविनाशी लाल की बाल्यावस्था बीती और यहीं पिता के एक मित्र ने इनका नाम परिवर्तित करके नरेंद्र देव रख दिया। घर का माहौल धार्मिक और सामाजिक रूप से समरसता का रहा था। इस कारण नरेंद्र देव को अपने निवास पर ही स्वामी रामतीर्थ और पंडित मदन मोहन मालवीय जैसी महान आत्मओं के दर्शन हुए। यहीं से इनके भीतर भारतीय संस्कृति के प्रति स्नेह व लगाव पैदा हुआ और पिता के कारण राजनीति की तरफ भी रुचि जाग्रत हो गई।

शिक्षा पूर्ण करके इन्होंने 1920 तक फैजाबाद में वकालत भी की, लेकिन गांधी जी का असहयोग आंदोलन शुरू होते ही वकालत छोड़ दी और जवाहरलाल जी के परामर्श पर काशी विद्यापीठ में शिक्षक होकर चले गए। 1926 में ये काशी विद्यापीठ के कुलपति भी बन गए। वहीं श्री श्री प्रकाश ने इनको ‘आचार्य’ नाम से संबोधित किया, जो जीवनपर्यंत इनके नाम के साथ जुड़ा रहा।

ये विद्यार्थी काल से ही राजनीतिक गतिविधियों में भागीदारी किया करते थे । गरम विचारों के इंसान थे और 1916 से 1948 तक ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य भी रहे। जवाहरलाल जी के साथ कांग्रेस वर्किंग कमेटी के भी सदस्य रहे।

1930, 1932 और 1942 के आंदोलनों में आचार्य जी ने जेल की सजा भी काटी। 1942 से 1945 तक नेहरू जी आदि के साथ अहमदनगर किले में कैद रहे। यहीं इनके पांडित्य के प्रभाववश नेहरू जी ने अपनी पुस्तक ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ की पांडुलिपि में इनसे संशोधन भी कराया था।

कांग्रेस को समाजवादी विचारों की तरफ ले जाने के लक्ष्य से 1934 में आचार्य नरेंद्र देव की अध्यक्षता में कांग्रेस समाजवादी पार्टी का गठन हुआ था। जयप्रकाश नारायण इसके सचिव थे। गांधी जी आचार्य जी का बहुत सम्मान करते थे। पहली मुलाकात में ही इन्होंने आचार्य जी को ‘महान नररत्न’ प्रदर्शित किया। कांग्रेस द्वारा यह इरादा बना लेने पर कि उसके भीतर कोई दूसरा दल नहीं रहेगा, समाजवादी पार्टी के अपने साथियों के साथ आचार्य जी ने भी कांग्रेस पार्टी त्याग दी। पार्टी त्यागने के साथ ही पार्टी के टिकट पर जीती विधानसभा की सीट से त्यागपत्र देकर इन्होंने राजनैतिक नैतिकता की एक नई मिसाल भी कायम की।

राजनीतिक चेतना और विद्वत्ता का आचार्य जी में अदभूत मेल था। ये संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, पाली, बंगला, फ्रेंच और प्राकृत भाषाएं भली प्रकार जानते थे। काशी विद्यापीठ के पश्चात् आचार्य जी ने लखनऊ विश्वविद्यालय और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में शिक्षा जगत पर अपना गहरा प्रभाव दर्ज करवाया था।

विषय के इनके ‘बौद्ध धर्म दर्शन‘ और ‘अभिधर्म कोश’ विख्यात हैं। आचार्य जी बौद्ध दर्शन के अध्ययन में आचार्य नरेंद्र देव की खास रुचि रही थी। इस उच्च कोटि के वक्ता भी रहे थे। इनके महत्वपूर्ण वक्तव्यों के संकलन हैं – ‘राष्ट्रीयता और समाजवाद’, ‘समाजवाद : लक्ष्य तथा साधन’, ‘सोशलिस्ट पार्टी और मार्क्सवाद’, ‘भारत के राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास’, ‘युद्ध और भारत’ और ‘किसानों पर सवाल’। इन्होंने ‘संघर्ष’ और ‘समाज’ नामक साप्ताहिकों, ‘जनवाणी’ मासिक एवं ‘विद्यापीठ’ त्रैमासिक पत्रिका का संदान कार्य दक्षतापूर्वक किया। आचार्य जी जीवनपर्यंत दमे के मरीज रहे। इसी रोग के कारण 19 फरवरी, 1956 को इनका निधन मद्रास के एडोर में 67 वर्ष की उम्र में हो गया।

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