शिवानी का जीवन परिचय (Shivani Biography in Hindi)
आधुनिक दौर की लेखिकाओं में शिवानी का नाम बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है। शिवानी का वास्तविक नाम ‘गौरा पंत’ था, किन्तु ये ‘शिवानी’ नाम से लेखन करती थीं। हिंदी भाषा की प्रसिद्ध लेखिका शिवानी का जन्म 17 अक्टूबर, 1924 को सौराष्ट्र में हुआ। शिवानी के पिता अश्विनी कुमार पांडेय काठियावाड़ के विख्यात प्रिंसेज महाविद्यालय के प्रमुख थे। मां लीलावती भी विदुषी महिला थी, जिनको कई भारतीय भाषाओं की जानकारी थी। इस पारिवारिक शैक्षिक माहौल का असर शिवानी के व्यक्तित्व में भी स्पष्ट उभरकर आया। इनके लेखिका बनने में सर्वाधिक योगदान गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर के शांतिनिकेतन शिक्षा केंद्र का रहा है। शिवानी के दादा पंडित हरिराम पांडेय संस्कृत के परम ज्ञाता और पंडित मदनमोहन मालवीय जी के मित्र रहे थे। मालवीय जी के परामर्श पर इन्होंने अपनी पोतियों जयंती और गौरा को शिक्षा के लिए शांतिनिकेतन भेजा था। वहां गौरा को गुरुदेव का सामीप्य मिला और डॉक्टर हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसे अध्यापक मिले। द्विवेदी जी ने ही गौरा को ‘शिवानी’ ‘ नाम प्रदान किया था। बड़ी जयंती संस्कृत, प्राकृत, पाली और चीनी भाषा की विदुषी बनीं और चुलबुली, मेधावी और स्फूर्त बुद्धि गौरा साहित्य की तरफ आकृष्ट होकर विद्यालय से लेखिका के गुण लेकर बाहर आईं।
गौरा पंत | |
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जन्म | 17 अक्टूबर 1923 राजकोट, गुजरात भारत |
मृत्यु | मार्च 21, 2003 (उम्र 79) नई दिल्ली भारत |
उपनाम | शिवानी |
व्यवसाय | उपन्यासकार |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शैली | उपन्यास, कहानी, संस्मरण, यात्रा वृत्तांत, आत्मकथा |
शिवानी ने गृहिणी एवं साहित्यकार के मध्य का संतुलन बेहतरीन बनाकर रखा था। स्वतंत्र रचनाकार के रूप में एक के पश्चात् एक इनके उपन्यास तथा कहानी संग्रह हिंदी में प्रकाशित हुए। पाठकों ने इन्हें भारी उत्साह से पढ़ा। इनका लेखन नारी जीवन को सशक्तता को बहाल करता रहा है। नारी की मानसिक प्रकृति और उसकी व्यथा को कहानी के रूप में शिवानी ने बेहद दिलकश अंदाज में पेश किया है। इनके ढाई दर्जन उपन्यासों में ‘कृष्णकली’, ‘चौदह फेरे’, ‘अतिथि’, ‘कालिंदी’, ‘भैरवी’, ‘सुरंगमा’ व ‘आकाश’ आदि प्रमुख रहे हैं। 4 इनकी अन्य प्रमुख रचनाएं ‘मेरा प्रिय कहानियां’, ‘गुरुदेव’ – इनका आश्रम तथा चरैवेति रही हैं।
पाठक संख्या की दृष्टि से शिवानी अपने दौर की बेहद लोकप्रिय लेखिका रही हैं। 21 मार्च, 2003 को दिल्ली में इनका निधन हो गया। मैं इनसे 1980 में हिंद पॉकेट बुक्स, शाहदरा, दिल्ली में मिला था। अब तो यादें ही शेष हैं।
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