Biography

जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’ का जीवन परिचय | jagdamba prasad mishra hitaishi

जगदंबा प्रसाद मिश्र 'हितैषी' का जीवन परिचय
जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’ का जीवन परिचय

जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’ का जीवन परिचय

ये भी महान साहित्यकार एवं सरल हृदय व्यक्ति रहे हैं। इनकी प्रतिभा की बानगी इससे समझी जाए कि स्वाधीनता संग्राम के समय से ही ये पंक्तियां निरंतर कही जाती रही हैं :

‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,

वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।’

इन अमर पंक्तियों के सृजक जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’ का जन्म 1895 में उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था । ये कानपुर में लोहे के कारोबार में लिप्त रहते थे, लेकिन साहित्य के प्रति रुचि होने के कारण इन्होंने संस्कृत, बंगला, फारसी एवं उर्दू का भी स्वाध्याय ज्ञान प्राप्त किया था।

हितैषी जी ने विशिष्टतः काव्य-रचनाएं की हैं। ये हास्य तथा व्यंग्य भी लिखा करते थे। इनकी प्रकाशित काव्य-पुस्तकों में ‘मातृगीता’, ‘कल्लोलिनी’, और ‘वैकाली’ का विशेष जिक्र किया जाता है। ये मुख्यतः कवित्त और सवैया ‘ दर्शना’ छंदों में सृजन करते थे। कभी-कभार इन्होंने संस्कृत और उर्दू के छंदों का भी उपयोग किया है। इन्होंने सवैया छंद में, मूल फारसी से उमर खैयाम की रुबाइयों का अनुवाद कार्य भी किया था। 1957 में हितैषी जी का निधन हो गया, किंतु इनका कृतित्व अमरता को प्राप्त है।

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