वैयक्तिक अध्ययन की प्रक्रिया अथवा कार्य प्रणाली
वैयक्तिक अध्ययन की प्रक्रिया– सर्वांगीणता अथवा सम्पूर्णता (Thoroghness) वैयक्तिक अध्ययन का केन्द्रीय तत्व है। इकाई के विषय में जितनी भी अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त की जा सके, उतनी ही सफलता इस पद्धति के उपयोग में मिलती है। भिन्न-भिन्न उपलब्ध लिखित सामग्री तथा साक्षात्कार के आधार पर लम्बे समय तक सूचनायें एकत्रित करके सूक्ष्म अवलोकन के द्वारा उनके व्यावहारिक सत्य का परीक्षण करने के उपरांत ही व्यक्ति के जीवन की यथार्थ सम्पूर्णता का चित्रण किया जा सकता है। एक ही व्यक्ति की स्थिति को भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से देखने की चेष्टा की जाती है। मनोवैज्ञानिक तथ्यों का ज्ञान प्राप्त करना भी इस अध्ययन में आवश्यक होता है। चाहे जितना भी अधिक जाना जाये, फिर भी ऐसा बहुत कुछ रह जाता है, जो अनजाना कहा जा सकता है। यह एक कठोर सत्य है कि अपने विषय में अधिक से अधिक व्यक्त कर देने का दम भरने वाले व्यक्तियों के पास भी अनकहा बहुत कुछ रह जाता है। वैयक्तिक अध्ययन में अधिकाधिक जानकारी प्राप्त करने के लिये निम्नलिखित कार्य प्रणाली का प्रयोग किया जाता है-
1. समस्या की व्याख्या- वैयक्तिक अध्ययन में सबसे पहले उस समस्या का वर्णन तथा व्याख्या की जाती है जिसके बार में सूचना एकत्र करनी है। समस्या के किन-किन पक्षों पर सूचना प्राप्त करनी है, उन सबकी स्पष्ट व्याख्या करना आवश्यक है। सबसे पहले समस्या पर प्रकाश डालने में सहायक वैयक्तिक विषयों का चुनाव किया जाता है। वैयक्तिक विषय से तात्पर्य उन इकाइयों से है जिनका अध्ययन किया जाता है। इस बात का निश्चय करना आवश्यक होता है कि वे इकाइयाँ सामान्य हों या विशिष्ट । इकाई के रूप में व्यक्ति को लिया जाये अथवा समूह व संस्था या समुदाय को । इकाइयों की संख्या निश्चित करना भी आवश्यक है। संख्या इतनी हो कि सम्बन्धित समस्या पर पर्याप्त प्रकाश डाल सके। सूक्ष्म तथा गहन अध्ययन की दृष्टि से अधिक भी न हों। समस्या का सर्वांगीण अध्ययन करने के लिये जिन-जिन सम्बन्धित पक्षों का अध्ययन किया जा रहा है, उन समस्त पक्षों की स्पष्ट व्याख्या कर देना भी आवश्यक होता है।
2. घटनाओं का क्रम- समस्या की व्याख्या करने के उपरांत उससे सम्बन्धित घटनाओं को क्रमानुसार रखना भी आवश्यक है । किन अवस्थाओं में किस समय समस्या के स्वरूप में क्या-क्या परिवर्तन हुए? समस्त जीवन को घटना क्रम के अनुसार व्यवस्थित करके रखना वैयक्तिक अध्ययन प्रक्रिया का दूसरा प्रमुख चरण है।
3. निर्धारक कारकों की व्याख्या- इकाई जीवन में घटनाक्रम का स्वरूप समझ लेने के उपरांत उन घटनाओं को प्रेरित करने वाले अथवा स्थितियों को निर्धारित करने वाले कारकों की खोज करना वैयक्तिक अध्ययन की प्रक्रिया का तीसरा प्रमुख चरण है। वर्तमान स्थिति जिन कारणों से उत्पन्न हुई है, उनको ढूँढ़ना सरल कार्य नही है। परिवार, पड़ोस, आयु समूह, वर्ग तथा अन्य समूहों, संस्थाओं, स्थितियों, क्रियाओं तथा मानसिक संरचना, घटनाओं आदि इकाई की वर्तमान स्थिति के निर्माण में योगदान करने वाले सब कारकों का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है।
4. विश्लेषण तथा निष्कर्ष- वैयक्तिक अध्ययन के अन्तिम चरण में प्राप्त तथ्यों के आधार पर समस्या के वर्तमान स्वरूप को निर्धारित करने वाले कारकों का विश्लेषण करके परिणामों को स्पष्ट कर दिया जाता है। कारकों की व्यवस्थित स्थिति के आधार पर जीवन की समस्त प्रक्रियाओं को तार्किक ढंग से रखना उत्तरदायी कारकों को क्रमानुसार रखना तथा विभिन्न कारकों को प्रभाव तथा महत्व के अनुसार यथास्थान रखना, इस चरण के प्रमुख अंक हैं। सामग्री का विवेचन तथा विश्लेषण करके, निष्कर्षों को इस प्रकार से प्रस्तुत किया जाता है कि सम्बन्धित इकाई एक सम्पूर्णता के रूप में दिखाई देने लगे। भिन्न-भिन्न स्थितियां एक दूसरे के साथ इस प्रकार रखी जायें कि वे एक योग के रूप में स्पष्ट हो जायें। अन्त में इकाई का वर्तमान स्वरूप क्या है, यह भी स्पष्ट कर दिया जाता है। कारकों के ज्ञान तथा परिवर्तन की प्रकृति के आधार पर होने वाले परिवर्तनों की ओर संकेत कर दिया जाता है।
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