प्रक्षेपी विधि क्या है?
प्रक्षेपी विधि क्या है?- मानव स्वभाव कुल इस प्रकार होता है कि वह अपने जीवन से सम्बन्धित महत्वपूर्ण घटनाओं और विवादग्रस्त मामलों को व्यक्त नहीं करता है। इन्हीं विवादग्रस्त तथ्यों के द्वारा व्यक्ति की मनोवृत्तियों, मनोभावनाओं और विश्वासों को समझने में सहायता मिलती है। प्रत्येक व्यक्ति के आन्तरिक व्यक्तित्व के बारे में अनेक प्रेरणाएँ, इच्छाएँ, रूचि, संवेग विश्वास आदि होते हैं जो ऊपरी तौर पर दूसरों को दिखाई नहीं देते हैं और न व्यक्ति ही उनके सम्बन्ध में सचेत होता है पर वे उनके व्यक्तित्व के व्यक्तित्वपूर्ण अंग होते हैं। सम्पूर्ण व्यक्तित्व का आन्तरिक एवं वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने के लिए अचेतन प्रेरणाओं, इच्छाओं, संवेगों, रुचियों आदि की अवहेलना कदापि नहीं की जा सकती है। ऐसी आन्तरिक सूचनाओं के बारे में प्रक्षेपी विधि का सहारा लेकर अध्ययन किया जा सकता है।
प्रक्षेपी विधि का अर्थ एवं परिभाषा
इस समस्त समस्याओं के समाधान के लिये तथा मनुष्य की भावनाओं, विश्वासों और मनोवृत्तियों का वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने के लिए जिस अप्रत्यक्ष विधि को अपनाया जाता है वह प्रक्षेपी विधि के नाम से जाना जाता है।
प्रक्षेपी विधि का अर्थ एवं परिभाषा स्पष्ट करते हुए जेम्स डी० पेज ने लिखा है कि, ‘प्रक्षेपण एक ऐसी मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने व्यक्तिगत दोषों को अचेतन रूप में किसी अन्य में आरोपित करता है।’
ब्राउन महोदय ने कहा है कि, ‘प्रक्षेपण आत्मा से सम्बन्धित तत्वों की विशेषकर उन तत्वों को जिन्हें व्यक्ति का अहम् नहीं स्वीकार करता है बाह्य जगत की वस्तुओं अथवा व्यक्तियों पर आरोपित करने की एक प्रक्रिया है। यह अपने चेतनावस्था में अपनी त्रुटियों को दूसरों में देखने की प्रवृत्ति है।’
माधुर ने लिखा है कि, ‘एक मनस्तापी एवं विकृत चित्त वाले व्यक्ति की इच्छाएँ, विचार, प्रेरणाएँ आदि वास्तविकता से उसे दूर ले जाती हैं। इसलिये वह अपने ही भ्रमपूर्ण विचारों में दूसरे व्यक्तियों के व्यवहार को गलत समझता है। उदाहरण के लिए जब मनस्तापी अपने सम्पर्क में आने वाले सभी व्यक्तियों को होने या नीच समझता है तो वास्तव में वह अपनी दबी हुई इच्छाओं का प्रक्षेपण करता है।’
प्रक्षेपी विधि की विशेषता
(1) प्रतिक्रियाओं की अभिव्यक्ति- जिस वस्तु को हम उत्तेजक रूप में लेते हैं, वह स्पष्ट और बिना पहचानी हुई होती है। विषयों से हम उसका अर्थ बताने के लिए कहते हैं और उसी के अनुसार यह प्रतिक्रिया करता है। उसके प्रत्युत्तर के आधार पर उसका सही व्यक्तित्व उसके सामने आ जाता है और वैज्ञानिक अध्ययन कर लिया जाता है।
(2) वास्तविकता का ज्ञान- इसकी सहायता से वास्तविकताओं के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है। इसके साथ-साथ व्यक्ति की आवश्यकताओं का ज्ञान होता है। मूल आदर्श में मापदण्ड तथा विचार आने वाले संघर्षों की जानकारी होती है।
(3) मनोवैज्ञानिक प्रकृति का ज्ञान- प्रक्षेपी विधि की दूसरी विशेषता मानक की मनोवैज्ञानिक प्रकृति के ज्ञान से सम्बन्धित है। व्यक्ति जो विचार व्यक्त करता है, उसके केन्द्र में उस व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं।
(4) जनमत का ज्ञान – इस विधि के माध्यम से जनमत की जानकारी प्राप्त कहने का प्रयास किया जाता है। इसमें सामान्य तथा असामान्य अनेक प्रकार के चित्रों को दर्शाया जाता है तथा सूचनादाता के मन को जानने का प्रयास किया जाता है। मूरे ने एक अधेड़ व्यक्ति तथा जवान स्त्री को चित्र में दिखाकर अहमदाबाद के कालेज में मिल मजदूरों के मतों को जानने का प्रयास किया है। इन परीक्षण चित्रों में एक श्रृंखला होती है जो विषय-वस्तु की कहानी है। अनेक चित्र ऐसे हैं जिससे विषय वस्तु को आसानी से जाना जा सकता है परन्तु कुछ को सरलता से व्यक्ति नहीं किया जा सकता।
(5) कार्य-कारण का ज्ञान- प्रक्षेपी विधि कार्य-कारण सम्बन्ध की जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाता है। इसमें 25 प्लेटे होती हैं। प्रत्येक में तीन चित्र होते हैं। इसमें विभिन्न प्रकार की घटनाओं को क्रमबद्ध रूप से चित्रित किया जाता है। इनको कार्य कारण की दृष्टि से प्रदर्शित करने के लिए कहा जाता है।
प्रक्षेपी विधि की उपयोगिता
मानव-स्वभाव कुछ इस प्रकार होता है कि वह अपने जीवन से सम्बन्धित महत्वपूर्ण घटनाओं और विवादग्रस्त मामलों को व्यक्त नहीं करता है। इन्हीं विवादग्रस्त तथ्यों के द्वारा व्यक्ति की मनोवृत्तियों, मनोभावनाओं और विश्वासों को समझने में सहायता मिलती है। प्रत्येक व्यक्ति के आन्तरिक व्यक्ति के बारे में अनेक प्रेरणाएँ, इच्छाएँ, रुचि, संवेग, विश्वास आदि होते हैं जो ऊपरी तौर पर दूसरो को दिखाई नहीं देते हैं और न व्यक्ति ही उनके सम्बन्ध में सचेत होता है पर वे उनके व्यक्तित्व के व्यक्तित्वपूर्ण अंग होते हैं। सम्पूर्ण व्यक्तित्व का आन्तरिक एवं वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने के लिये अचेतन प्रेरणाओं, इच्छाओं, संवेगों, रुचियों आदि की अवहेलना कदापि नहीं की जा सकती है। ऐसी आन्तरिक सूचनाओं के बारे प्रक्षेपी विधि का सहारा लेकर अध्ययन किया जा सकता है।
प्रक्षेपी विधि का गुण
(1) प्रक्षेपी व्यक्ति के आन्तरिक गुणों को उभार कर सामने लाने की एक सर्वोत्तम विधि है। यह एक ऐसी विधि है जो सर्वेक्षण में व्यक्ति के व्यक्तित्व सम्बन्धी तथ्यों को छिपाने का अवसर प्रदान करती हैं, जो कि अन्य विधियों द्वारा सम्भव नहीं है।
(2) यह विधि विषय सामग्री को सरल बनाती है। इससे सामाजिक घटनाओं को सरलता से समझ लिया जाता है।
(3) इस विधि के द्वारा व्यक्तित्व के अन्तरतम में दबी हुई आन्तरिक सतह तक की इच्छाओं, भावनाओं, विश्वासों आदि को जानने में मदद मिलती है ।।
(4) प्रक्षेपी विधि संस्कृति और व्यक्तित्व का अध्ययन करने के लिए सर्वोत्तम विधि है, इसकी सहायता से व्यक्ति के आदर्शों, मूल्यों और मापदंडों की जानकारी होती है, साथ ही व्यक्तिगत कुण्ठाओं का बोध होता है।
(5) सम्पूर्ण व्यक्तित्व और उसके आधारभूत गुणों तथा तथ्यों के सम्बन्ध में वैज्ञानिक ज्ञान देने में ये प्रविधियाँ सहायक होती है।
(6) इन प्रविधियों का प्रयोग सामान्य तथा असामान्य व्यक्तियों के व्यक्तित्व का अस्वांकण करने में किया जाता है।
(7) इनकी विश्वसनीयता एवं वैधता अन्य प्रविधियों की तुलना में कम नहीं होती है।
(8) ये प्रविधियाँ व्यक्ति के मन, चेतन और अचेतन पहलुओं का मापन करती है।
प्रक्षेपी विधि के दोष
अनेक गुणों के बावजूद भी प्रक्षेपी विधि दोषों से मुक्त नहीं हैं। इसकी प्रमुख कमियाँ निम्न प्रकार हैं-
(1) प्रक्षेपी विधियों की रचना सरलतापूर्वक नहीं किया जा सकता है। साथ ही साथ इसके आधारों को निश्चित करना बहुत कठिन है।
(2) यह विधि विषय के उद्देश्य को गुप्त रखने में बाधक है। इसका अध्ययन तभी किया जा सकता है जबकि इसका उद्देश्य निर्धारित हो।
(3) इसके अन्तर्गत जो परीक्षण किये जाते हैं वे बहुत टेक्निकल होते हैं। इस कारण यह कार्य उन लोगों के द्वारा करना असम्भव होता है। इसके लिए योग्य अनुभवी तथा प्रशिक्षित व्यक्ति की आवश्यकता पड़ती है।
(4) इस विधि की यह कमी है कि इसके द्वारा प्राप्त तथ्यों का परीक्षण नहीं किया जा सकता है। उनकी वैधता का भी ज्ञान नहीं हो पाता है।
(5) इसमें बहुत समय की आवश्यकता पड़ती है। इसमें विश्वसनीयता लाने के लिए इसका परीक्षण 6 से 12 महीने तक किया जाता है।
(6) इस विधि की उपयोगिता अधिकतर सामाजिक अनुसंधान क्षेत्र की अपेक्षा चिकित्सा के क्षेत्र में अधिक देखा जाता है।
(7) इस विधि में जो विभिन्न प्रकार के उत्तर प्राप्त होते हैं, उनके प्रस्तुतीकरण का सामान्यीकरण करना और निर्वाचन में कठिनाई होती है।
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