अन्तर्वस्तु विश्लेषण प्रविधि
1926 में मेलकोम ने सर्वप्रथम अपने समाचार पत्रों के जरिये अन्तर्वस्तु विश्लेषण विधि का प्रारंभ किया था। इस अध्ययन में समाचार-पत्रों की भाषा का विश्लेषण करके कुछ महत्वपूर्ण परिणाम निकाले गये थे। हमारे समाज में सामाजिक घटनाएं अधिक जटिल एवं परिवर्तनशील होती हैं जिसके कारण हमारे समाज में सामाजिक विज्ञानों के लिये अपना निष्कर्ष निकालने एवं उसे प्रतिपादित करने में कठिनाई होती है। इस कठिनाई को दूर करने के लिए अन्तर्वस्तु विश्लेषण प्रविधि का जन्म हुआ। इसकी ही सहायता से गुणात्मक तथ्यों का परिणात्मक वर्णन संभव है।
अन्तर्वस्तु विश्लेषण प्रविधि की परिभाषाएँ
अन्तर्वस्तु विश्लेषण प्रविधि की निम्नलिखित परिभाषाएँ दी जा रही हैं-
(1) श्रीमती यंग के शब्दों में, “अन्तर्वस्तु विश्लेषण साक्षात्कारों, प्रश्नावलियों, अनुसूचियों तथा अन्य लिखित या मौलिक भाषागत अभिव्यक्तियों द्वारा प्राप्त शोध तथ्यों की अन्तर्वस्तु की क्रमबद्ध वस्तुनिष्ठ तथा परिमाणात्मक वर्णन के लिये अपनायी जाने वाली एक शोध प्रविधि है।”
(2) वैपिल्स वेरेल्सन ने अपने संचार शोधों से अन्तर्वस्तु विश्लेषण की एक अति उत्तम परिभाषा को विकसित किया है। उनके अनुसार, अन्तर्वस्तु संचार के प्रकट अन्तर्वस्तु के वस्तुनिष्ठ क्रमबद्ध तथा परिमाणात्मक वर्णन के लिये अपनाई जाने वाली एक शोध प्रविधि है।”
(3) अन्तर्वस्तु विश्लेषण की परिभाषा देते हुए वैपिल्स तथा वेरेल्सन ने लिखा है, – “सुव्यवस्थित अन्तर्वस्तु विश्लेषण प्रविधि सामग्री के विवरण मात्र को प्रस्तुत करने के स्थान पर उससे अधिक स्पष्ट व्याख्या करने का प्रयास करती है जिससे कि पाठकों या श्रोताओं को प्रदान की जाने वाली प्रेरणाओं की प्रकृति व सापेक्षिक सत्य को वस्तुनिष्ठ रूप में प्रकट करना सम्भव हो।”
अतः स्पष्ट है कि श्रीमती यंग की परिभाषा प्रो० बर्नार्ड वेरेल्सन द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त परिभाषा का ही बहुत कुछ संशोधित रूप है।
उपरोक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से ही अन्तर्वस्तु प्रविधि की मुख्य विशेषतायें स्पष्ट हो जाती हैं, फिर भी उन्हें हम क्रमबद्ध रूप से इस प्रकार प्रस्तुत कर सकते हैं-
अन्तर्वस्तु विश्लेषण की प्रक्रिया / चरण
प्रतीकात्मक सामाजिक घटनाओं को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करने के लिए अन्तर्वस्तु विश्लेषण किया जाता है। यह विश्लेषण यदि सही, स्पष्ट तथा विषय-वस्तु के अनुरूप होगा, तभी वह सामाजिक अनुसंधान की प्रगति में सहायक सिद्ध होगा। अतः विषय-विश्लेषण को सार्थक व उपयोगी बनाने की दृष्टि से कुछ निश्चित प्रक्रियाओं का अनुसरण करना आवश्यक माना गया है । अन्तर्वस्तु विश्लेषण की रूपरेखा सीमित होती है। सामाजिक अनुसंधान में जब हम इस प्रविधि का चयन करते हैं, तो विश्लेषण की रूपरेखा के निर्माण के मुख्य चरणों को निश्चित करके इन्हें अपने अनुसंधान प्रारूप में समुचित स्थान प्रदान करते हैं। अन्तर्वस्तु विश्लेषण की प्रक्रिया अर्थात् विभिन्न चरणों को निम्नानुसार प्रस्तुत किया जा सकता है।
1. आवश्यक समंकों / तथ्यों का उल्लेख- विश्लेषण करने से पूर्व अनुसंधानकर्ता को यह निश्चय कर लेना अत्यन्त आवश्यक है कि विषय विश्लेषण में किस प्रकार के तथ्यों की आवश्यकता होगी। यदि किसी राजनैतिक घटना के प्रति लोगों के विचार बनाने के लिए सामग्री संकलित की गई है, तो केवल उन्हीं तथ्यों को विषय-विश्लेषण के लिए चुना जायेगा, जो घटना से सम्बन्धित विचारों पर प्रकाश डालते हों। आवश्यक और उपयोगी तथ्यों का चुनाव तभी सम्भव है, जबकि पहले उसकी एक निश्चित रूपरेखा बना ली जाये।
2. सारणीयन की रूपरेखा- तथ्यों के सारणीयन की रूपरेखा भी पूर्व निर्धारित कर लेनी चाहिए, ताकि विश्लेषण के लिए तथ्यों का वर्गीकरण सुविधापूर्वक किया जा सके।
3. क्रियाशील लक्षणों चरों का निर्धारण- अन्तर्वस्तु विश्लेषण में तीसरा चरण उन लक्षणों को निश्चित करना है, जिनके आधार पर विषय-वस्तु का संकेतन किया जाता है।
4. श्रेणियों (वर्गों) का निर्धारण – तथ्यों को श्रेणीबद्ध करने की कई पद्धतियाँ हैं, अतः विषय विश्लेषण में यह निर्धारित कर लेना चाहिए कि किस पद्धति के अनुसार श्रेणियाँ बनाई जायेंगी। पद्धति सदैव विश्लेषण के उद्देश्य के अनुरूप ही होनी चाहिए। श्रेणियों की संख्या का निश्चय करने में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रत्येक लक्षण को श्रेणी में स्थान मिल पृथक् जाए।
5. विश्लेषण का स्वरूप- इस स्तर पर संकलित सामग्री को कुछ निश्चित परिभाषाओं के अन्तर्गत स्पष्ट कर दिया जाता है। समान प्रकार की सामग्री के लिए समान परिभाषाओं का प्रयोग करने से विश्लेषण में अस्पष्टता तथा भ्रम नहीं रहते।
6. अन्तर्वस्तु के विश्लेषण की क्रिया- विषय विश्लेषण का यह चरण पूर्व निर्धारित रूपरेखा के अनुसार प्रणाली का प्रयोग करना है। सफल विश्लेषण के लिए संकेतन करने वाले व्यक्तियों का अनुभवी होना अत्यन्त आवश्यक है। समान सामग्री के लिए समान परिभाषाओं का प्रयोग करके संकेतनकर्ता विश्लेषण को उपयोगी बना सकते हैं।
7. प्रतिवेदन की तैयारी – अन्तर्वस्तु विश्लेषण की यह अन्तिम प्रक्रिया या चरण हैं, जिसके अन्तर्गत समस्त चरणों का वर्णन किया जाता है। प्रतिवेदन में इस बात का पूर्ण ध्यान रखना आवश्यक है कि उसमें सारणियाँ (Tables) होनी चाहिए, ताकि प्रतिवेदन पर किसी भी प्रकार के पक्षपात या अभिनति का आरोपण न किया जा सके। इसके अतिरिक्त प्रतिवेदन में कुछ मुख्य कथनों, उदाहरणों एवं नमूनों का भी वर्णन किया जा सकता है। अन्त में प्रतिवेदन को तैयार करने में क्रमबद्धता का पाया जाना भी अत्यावश्यक है।
अन्तर्वस्तु विश्लेषण के प्रकार
मर्टन एवं लाजार्सफेल्ड ने अन्तर्वस्तु विश्लेषण के 6 प्रकारों का उल्लेख किया है-
1. चिन्हों की गणना- इसके अन्तर्गत समस्या से सम्बन्धित चिन्हों की पहचान करके उन्हें गिना जाता है। उदाहरणार्थ, यदि किसी अनुसंधानकर्ता को पिछड़े वर्गों का अध्ययन समाचार- पत्र के माध्यम से यह ज्ञात करने हेतु करना है कि उसके साथ किस प्रकार व्यवहार किया जा रहा है, तो निर्धारित समाचार-पत्र में पिछड़े वर्गों से सम्बन्धित समाचारों को अलग करके उन्हें गिनना, इसी प्रकार के वर्गीकरण का उदाहरण माना जायेगा। समाचार-पत्रों में यह गणना प्रायः स्तम्भ इंचों में और रेडियो, दूरदर्शन तथा फिल्मों में मिनटों की समयावधि के आधार पर की जाती है।
2. चिन्हों का एक विमीय वर्गीकरण- यह चिन्ह गणना इस प्रकार का कुछ अधिक विस्तृत रूप है, जिसमें चिन्हों (सामग्री) को सकारात्मक या नकारात्मक अर्थ के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। उदाहरणार्थ- पिछड़े वर्गों के संरक्षण तथा सुधार से सम्बन्धित समाचारों को सकारात्मक और इन वर्गों के सदस्यों के साथ होने वाले पक्षपातों/ भेदभावों को नकारात्मक माना जा सकता है। ऐसे अन्तर्वस्तु विश्लेषण का प्रयोग प्रतीकों / चिन्हों के प्रभावों को ज्ञात करने हेतु किया जाता है। इस सन्दर्भ में वर्गीकरण की श्रेणियों का परीक्षण करके यह निश्चित करना अत्यावश्यक एवं अनिवार्य है कि श्रेणियाँ वस्तुनिष्ठ और सार्थक वर्गीकरण करने में सहायक है।
3. पद विश्लेषण- अन्तर्वस्तु विश्लेषण का यह प्रकार प्रचार के विभिन्न खण्डों / भागों को वर्गीकृत करने से सम्बन्धित है। इस स्तर में यह ज्ञात करने का प्रयास होता है कि समाचार-पत्र में कौन-सा समाचार, फिल्म में कौन सा दृश्य, रेडियो के कार्यक्रम में कौन-सा गीत या प्रचार में किसकी फोटो अधिक आकर्षक है। यदि पिछड़े वर्गों के उदाहरण को लें, तो इस प्रकार से यह पता किया जायेगा कि कौन-सा गीत या किसी प्रचार में किसकी फोटो अधिक आकर्षक है। यदि पिछड़े वर्गों के उदाहरण को लें, तो इस प्रकार से यह पता किया जायेगा कि कौन-सा समाचार ऐसा है, जिसकी ओर अत्यधिक ध्यान दिया गया है। किस पद (Item) का आकर्षण मूल्य अधिक है या किन पदों के प्रति दर्शक सर्वाधिक ध्यान (Attention) देते हैं। इसका पता हमें पद – विश्लेषण से ही चल सकता है।
4. प्रसंग विश्लेषण – ऐसे अन्तर्वस्तु विश्लेषण में प्रचार वस्तु के प्रकट या अप्रकट विषय अथवा प्रसंग को वर्गीकृत किया जाता है। यह विश्लेषण, पद-विश्लेषण से इस अर्थ में भिन्न होता है. कि इसमें पदों की विभिन्न श्रेणियों के संचयी प्रभाव का पता लग जाता है। पिछड़े वर्गों के अध्ययन में समाचारों का प्रसंग के आधार पर वर्गीकरण, विषय-विश्लेषण भी कहा जाता है।
5. संरचनात्मक विश्लेषण- अन्तर्वस्तु विश्लेषण के इस प्रकार का सम्बन्ध प्रचार के विभिन्न प्रसंगों / विषयों के पारस्परिक सम्बन्ध से होता है। ये सम्बन्ध सम्पूरक (Complementary) युग्मित/एकीकृत (Integrative) या विघन डालने वाले (Interfering) भी हो सकते है।
6. प्रचार / अभियान विश्लेषण- अन्तर्वस्तु विश्लेषण के इस प्रकार और संरचनात्मक विश्लेषण में मात्र यही भेद है कि इसमें केवल एक से अधिक प्रचार-प्रपत्र के विभिन्न प्रसंगों का ही विश्लेषण होता है, जबकि संरचनात्मक विश्लेषण में मात्र एक ही प्रचार-प्रपत्र को लिया जाता है। यदि दो समाचार-पत्रों को लेकर पिछड़े वर्गों से सम्बन्धित समाचारों का विषयक विश्लेषण किया जाता जाए, तो हम इसको प्रचार विश्लेषण कह सकते हैं।
अन्तर्वस्तु विशेषण प्रविधि की विशेषताएँ
(1) इस रूप में इस प्रविधि का आधार वैज्ञानिक है और यह ऐसे परिणामों को खोज निकालता है जिसकी सत्यता के विषय में परीक्षा और पुनः परीक्षा असम्भव है।
(2) इस प्रविधि का सम्बन्ध संचार से अथवा भाषागत अभिव्यक्तियों द्वारा प्राप्त तथ्यों की अन्तर्वस्तु से होता है।
(3) इस प्रविधि का उद्देश्य उस अन्तर्वस्तु का विश्लेषण करना है, जिन्हें कि संचार के किन्हीं साधनों या भाषागत अभिव्यक्तियों, चाहे वे लिखित हों या मौखिक के माध्यम से प्राप्त किया जाता है।
(4) इस प्रविधि द्वारा हम शोध तथ्यों की अन्तर्वस्तु का विश्लेषण करते हैं।
अन्तर्वस्तु विश्लेषण का महत्व
सामाजिक अनुसंधान व शोध के क्षेत्र में अन्तर्वस्तु विश्लेषण प्रविधि का अपना अलग महत्व है। यह बात निम्नलिखित विवेचनों से पूर्णतया स्पष्ट हो जायेगी-
(1) प्रचार के प्रभाव का अध्ययन संभव- प्रचार की विधियों से जनता पर पड़ने वाले प्रभावों की प्रकृति के संबंध में अध्ययन भी इस प्रविधि की सहायता से वैज्ञानिक रूप में किया जा सकता है। इस प्रकार के अध्ययन से प्रचार के साधनों को अधिक प्रभावशाली बनाने तथा प्रचार के नवीन साधनों व प्रविधियों को खोज निकालने में मदद मिल सकती है।
(2) मनोवैज्ञानिक झुकाव का अध्ययन संभव- समूह या समुदाय के मनोवैज्ञानिक झुकाव का अध्ययन भी इस प्रविधि के द्वारा संभव होता है। समाचार-पत्रों व पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख, कहानी आदि रेडियो कार्यक्रम, विज्ञान आदि विषयों की अन्तर्वस्तु का विश्लेषण करने पर एक समूह या समुदाय विशेष के मनोवैज्ञानिक झुकाव का स्वतः ही पता चल सकता है।
(3) गुणात्मक विषयों का अध्ययन संभव- गुणात्मक विषयों का परिमाणात्मक अध्ययन करना इस प्रविधि की सहायता से संभव होता है। उदाहरणार्थ उपन्यास के पात्र अथवा एक भाषण, एक समाचार पत्र का सम्पादकीय, ये सब गुणात्मक विषय हैं किन्तु अन्तर्वस्तु विश्लेषण प्राविधि इन गुणात्मक विषयों की प्रकृति व विशेषताओं की परिमाणात्मक व्याख्या, सारणी, ग्राफ आदि के माध्यम से प्रस्तुत करती है।
(4) संचार साधनों के अध्ययन में सहायक- संचार के विभिन्न साधनों की प्रकृति को स्पष्ट करने में अन्तर्वस्तु विश्लेषण प्रविधि अपना महत्वपूर्ण योगदान देती है। संचार के साधन जैसे पुस्तक, भाषण, समाचार पत्र, रेडियो कार्यक्रम आदि हमारे सामाजिक जीवन को प्रभावित व निर्देशित करने में महत्वपूर्ण हैं, पर उनकी प्रकृति व प्रभाव दोनों ही अमूर्त होने के कारण उनके बारे में सामान्यतः सही ज्ञान हमें नहीं मिल पाता है। अन्तर्वस्तु विश्लेषण प्रविधि इस कमी को पूरा करता है।
(5) जनमत समझने में सहायक- जनमत को जानना भी इस प्रविधि की मदद से आज सरल हो गया है। समाचार पत्रों के सम्पादक के नाम जनता के सदस्यों द्वारा लिखे गये पत्रों का अन्तर्वस्तु विश्लेषण करके कई शोधकर्ता जनमत के रुख का पता लगाने में सफल हैं।
(6) व्यक्तित्व के अध्ययन में सहायक- व्यक्तित्व के अध्ययन में भी यह प्रविधि सहायक सिद्ध हुई है। एक व्यक्ति विशेष के द्वारा दिये गये भाषण अथवा उसके द्वारा लिखे गये लेख, किताब आदि का अन्तर्वस्तु विश्लेषण करने पर स्वयं उस व्यक्ति के व्यक्तित्व में अन्तर्निहित आदर्श, विचार, मनोवृत्ति, उद्वेग आदि स्पष्ट हो जाते हैं। इन्हीं विलक्षणताओं के आधार पर विभिन्न व्यक्तियों का श्रेणी विभाजन भी संभव होता है।
(7) तुलनात्मक अध्ययन सम्भव- संचार के अन्तर्वस्तु आधारों का तुलनात्मक अध्ययन भी इस पद्धति की सहायता से संभव होता है। प्रत्येक देश के संचार साधनों की अन्तर्वस्तु एक समान नहीं होती, पर उनका विस्तार अन्तर्राष्ट्रीय हो सकता है। इस कारण उनका प्रभाव भी देश की सीमा पार कर सकता है। अन्तर्वस्तु विश्लेषण प्रविधि हमें यह अवसर प्रदान करती है जिससे विभिन्न देश के संचार साधनों का इस तुलनात्मक अध्ययन कर सकते हैं।
अन्तर्वस्तु विश्लेषण की सीमाएँ
अन्तर्वस्तु विश्लेषण प्रविधि के महत्व के आधार पर अन्तर्वस्तु विश्लेषण प्रविधि की कुछ सीमाएँ हैं और उनमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि अध्ययन-विषय स्वयं गुणात्मक होने अपनी के कारण परिणात्मक परिणामों को निकालना अपने आप में एक समस्या बनकर रह जाती है। इस समस्या से बचने के लिये अध्ययन कार्य के समय अधिक सावधानी रखनी पड़ती है। गुणात्मक पद्धति के कारण ही विश्लेषणात्मक व्याख्या व निष्कर्ष की वास्तविकता को प्राप्त करना सरल नहीं होता। इन साधनों की अन्तर्वस्तु में परिवर्तन की गति इतनी तेज है कि आज का निष्कर्ष कुछ समय के बाद ही व्यर्थ सिद्ध हो जाता है। इस प्रविधि की एक सीमा यह है कि क्षेत्र अध्ययन कार्य में इस प्रविधि का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
इस प्रविधि में कभी-कभी यह दिक्कत भी आ जाती है कि प्राप्त किये गये निष्कर्ष विश्वास के योग्य हैं अथवा नहीं है।
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