गृहविज्ञान

प्रविधि का अर्थ | सामाजिक शोध की प्रविधियाँ

प्रविधि का अर्थ
प्रविधि का अर्थ

प्रविधि का अर्थ (pravidhi kise kahte hai)

प्रविधि का अर्थ- अध्ययन-विषय से सम्बन्धित विश्वसनीय सूचनाओं तथा आँकड़ों के संकलन हेतु प्रयुक्त सुनिश्चित व सुव्यवस्थित तरीकों को प्रविधि (Technique) कहते हैं गुडे तथा हाट्ट (Good and Hatt) के अनुसार, ‘प्रविधियों के अन्तर्गत वे विशिष्ट तरीके सम्मिलित जिनके द्वारा समाजशास्त्री अपने तथ्यों को अनेक तार्किक या सांख्यिकीय विश्लेषण के पूर्व एकत्रित एवं क्रमबद्ध करता है।”

उपरोक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रविधियाँ अनुसंधानकर्ता का वह यन्त्र हैं जिनकी सहायता से वह सांख्यिकीय सामग्री को एकत्रित एवं व्यवस्थित करता है।

सामाजिक शोध की प्रविधियाँ

सामाजिक शोध में प्रयुक्त होने वाली प्रमुख प्रविधियाँ निम्नलिखित हैं-

1. अनुसूची- अनुसूची भी प्रश्नावली के समान होती है। इन दोनों में अन्तर सिर्फ इतना है कि प्रश्नावली को डाक द्वारा भेजकर सूचनायें एकत्र की जाती हैं जबकि अनुसूची प्रविधि में अनुसंधानकर्ता प्रत्यक्ष रूप से सूचनादाता से सम्पर्क स्थापित करके सूचना प्राप्त करता है। दूसरा अन्तर यह है कि प्रश्नावली का उपयोग केवल निश्चित सूचनाताओं के लिए ही है जबकि अनुसूची में सभी तरह के लोगों से सूचनायें प्राप्त की जाती हैं। इस प्रकार अनुसूची शिक्षितों के साथ-साथ अशिक्षित सूचनादाताओं से भी सूचनायें प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन है।

2. प्रश्नावली- यदि अध्ययन का क्षेत्र अत्यन्त विशाल है और अनुसंधानकर्ता के लिए यह सम्भव नहीं होता कि वह प्रत्येक सूचनादाता से व्यक्तिगत सम्पर्क स्थापित करके सूचनाओं को प्राप्त करे तो ऐसी स्थिति में प्रश्नावली को डाक द्वारा भेज कर सूचनादाताओं से सूचनायें प्राप्त की जाती है। यह एक ऐसी प्रविधि है जिसके अन्तर्गत सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए एक प्रपत्र में सरल व स्पष्ट तथा संक्षिप्त रूप में प्रश्न लिखे होते हैं जिनके उत्तर हाँ अथवा ना या संख्या के रूप में दिया जा सके। इस प्रश्न अथवा अनुसूची को अनुरोध पत्र के साथ सूचनाताओं के पास भेज दिया जाता है। सूचनादाता उस प्रश्नावली को भर कर डाक द्वारा लौटा देते हैं।

3. साक्षात्कार- साक्षात्कार एक क्रमबद्ध अथवा व्यवस्थित प्रविधि है जिसके द्वारा अनुसानकर्ता विषय से सम्बन्धित व्यक्तियों से प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित करके विषय के सम्बन्ध में उनके विचारों, भावनाओं तथा आन्तरिक जीवन को जानने का प्रयत्न करता है। साक्षात्कार को एक क्रमबद्ध विधि माना जाता है जिसके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के आन्तरिक जीवन में प्रवेश करता है। साक्षात्कार में कुछ पूर्व निर्धारित प्रश्नों को पूछ कर लिख दिया जाता है ताकि विषय के सम्बन्ध में अधिकाधिक सूचनाएँ प्राप्त की जा सकें।

4. निरीक्षण– निरीक्षण पद्धति भी सामाजिक शोध की महत्वपूर्ण पद्धति है । अध्ययन विषय से सम्बन्धित अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों की प्राप्ति अनुसंदानकर्ता को अध्ययन-स्थल पर जाकर वास्तविक निरीक्षण के द्वारा ही प्राप्त होती है। निरीक्षण दो प्रकार का होता है- सहभागी और असहभागी, सहभागी निरीक्षण में अनुसंधानकर्ता स्वयं उन क्रियाओं और स्थितियों में भाग लेता है जिनका वह अध्ययन करना चाहता है अर्थात सहभागी अवलोकन के अन्तर्गत अनुसंधानकर्ता स्वयं अध्ययन किये जाने वाले समुदाय के समूह का सदस्य बन कर उनके जीवन से वास्तविक सम्बन्ध स्थापित करके, उन्हीं के बीच रहते हुए विषय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण सूचनाओं अथवा तथ्यों को एकत्रित करता है। इसके विपरीत असहभागी अवलोकन या निरीक्षण में वह एक बाहरी सदस्य के रूप में समय-समय पर निरीक्षण करके तथ्यों को संग्रह करता रहता है।

5. निदर्शन इस पद्धति में कुछ ऐसी इकाइयों को ही चुना जाताहै जो सभी इकाइयों का प्रतिनिधित्व करती हों अर्थात उनमें संग्रह के सभी लक्षण विद्यमान हों। यह प्रविधि समय व धन की बचत के उद्देश्य से अपनायी जाती है। निदर्शन पद्धति में काफी लाभप्रद सिद्ध होती है जबकि अध्ययन का क्षेत्र अत्यन्त विशाल हो और बहुत से सूचनादाताओं से सूचनाओं को एकत्रित करना हो।

6. मनोवृत्तिमापक पैमाने- सामाजिक शोध में अध्ययन विषय की प्रकृति इस प्रकार की होती है कि विभिन्न परिस्थितियों या घटनाओं के बारे में लोगों की मनोवृत्ति क्या है, जानना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है। मनोवृत्ति एक मूर्त घटना नहीं है जिसकी नाप सरलता से हो सके। यह एक अमूर्त घटना है जिसे नापना काफी कठिन कार्य है। इसी समस्या अथवा कठिनाई को दूर करने हेतु अनेकों मनोवृत्तिमापक पैमानों का विकास किया गया है, जिसकी सहायता से विभिन्न सामाजिक घटनाओं तथा सामाजिक दूरियों को जानना अत्यन्त सरल एवं सम्भव हो गया है।

7. समाजमिति– समाजमिति पैमाना मनोवृत्तिमापक पैमाने के समान होता है फिर भी इन दोनों में कुछ अन्तर है। मनोवृत्तिमापक पैमाने अमूर्त मनोवृत्तियों को मापने तथा उनका गणनात्मक अध्ययन करने हेतु उपयोग में लाये जाते हैं जबकि समाजमिति समाज में ऐसी घटनाओं को मापने में उपयोग में लाये जाते हैं जो मनोवृत्ति की अपेक्षा निरीक्षण योग्य हों।

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