गृहविज्ञान

निदर्शन का अर्थ एवं परिभाषाएँ | निदर्शन या प्रतिदर्शन के प्रकार

निदर्शन का अर्थ एवं परिभाषाएँ
निदर्शन का अर्थ एवं परिभाषाएँ

निदर्शन का अर्थ एवं परिभाषाएँ

निदर्शन का अर्थ एवं परिभाषाएँ- निदर्शन समय का एक छोटा भाग या अंश है. जोकि समग्र का प्रतिनिधित्व करता है तथा जिसमें समग्र की मौलिक विशेषताएँ पाई जाती हैं। दैनिक जीवन में हम निदर्शन का प्रयोग करते हैं जबकि हम चावल, गेहूँ या कोई अन्य वस्तु खरीदने बाजार जाते हैं तो पहले इनका नमूना देखते हैं। नमूना ही प्रतिदर्श या निदर्शन है। अतः निदर्शन वह पद्धति है जिसके द्वारा केवल समग्र के एक अंश का निरीक्षण करके सम्पूर्ण समग्र के बारे में जाना जा सकता है। इसे निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है-

(1) गुड एवं हैट (Goode and Hatt) के अनुसार- “एक निदर्शन, जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, किसी विस्तृत समूह का एक अपेक्षाकृत लघु प्रतिनिधि है।”

(2) यंग (Young) के अनुसार- “एक सांख्यिकीय निदर्शन उस सम्पूर्ण समूह या योग का अति लघु चित्र है जिसमें से कि निदर्शन लिया गया है।”

(3) फेयरचाइल्ड (Fairchild) के अनुसार- “निदर्शन (सांख्यिकीय) वह प्रक्रिया अथवा पद्धति है जिसके द्वारा एक विशिष्ट समय में से निश्चित संख्या में व्यक्तियों, विषयों अथवा निरीक्षणों को निकाला जाता है।”

(4) यांग (Yang) के अनुसार “एक सांख्यिकीय निदर्शन सम्पूर्ण समूह का प्रतिनिधिक भाग है। यह समूह ‘जनसंख्या’, ‘समग्र’ अथवा ‘पूर्ति स्रोत’ के नाम से जाना जाता है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट हो जाता है कि निदर्शन किसी विशाल समूह, समग्र या योग का एक अंश है जोकि समग्र का प्रतिनिधि है अर्थात अंश की भी वहीं विशेषताएँ हैं जोकि सम्पूर्ण समूह या समग्र की है।

निदर्शन या प्रतिदर्शन के प्रकार (Types os Sampling)

सामाजिक अनुसंधानकर्ता अपने अध्ययन में विभिन्न प्रकार की प्रतिदर्शन-विधियों का प्रयोग करता है। उनमें कुछ काफी प्रचलित भी हैं, लेकिन प्रतिदर्शन की विभिन्न प्रणालियों का पूर्ण वर्गीकरण एक कठिन समस्या है। इसका प्रमुख कारण यह है कि एक तो वैज्ञानिकों में विभिन्न प्रतिदर्शन-विधियों की नामावली के बारे में सहमति नहीं है, बल्कि एक ही प्रतिदर्शन – विधि को भिन्न-भिन्न नामों से उल्लिखित किया जाता है। दूसरे कई प्रतिदर्शन-विधियाँ एक से अधिक प्रतिदर्शन-विधियों के मिश्रित रूप हैं, जिन्हें शोधकर्ता अपनी आवश्यता के अनुसार विकसित करता है।

प्रतिदर्शन का एक प्रमुख आधार संभाविता-सिद्धांत है (Porbability theory)है। इस आधार पर प्रतिदर्शन के विभिन्न प्रकारों को दो विशाल वर्गों में रखा जा सकता है-

(A) संभाविता-प्रतिदर्शन (Probability sampling) (B) असंभाविता-प्रतिदर्शन। (Non-probability sampling)

(A) संभाविता-प्रतिदर्शन (Probability sampling)

संभाविता-प्रतिदर्शन वह है, जिसमें समग्र की प्रत्येक इकाई के चुने जाने की कितनी संभावना है, यह ज्ञात रहती है और इसकी गणना की जा सकती है। सेल्टिज, जहोदा आदि के अनुसार, “संभावित प्रतिदर्शन की अनिवार्य विशेषता यह है कि समग्र की प्रत्येक इकाई के प्रतिदर्श में चुने जाने की संभावना की गणना की जा सकती है। “

(क) इसका अर्थ यह हुआ कि संभावित प्रतिदर्शन में समग्र की प्रत्येक इकाई के चुने जाने की संभावना ज्ञात की जा सकती है, और साथ ही प्रत्येक इकाई चुने जाने की कुछ-न-कुछ (non-zero) संभावना अवश्य होती है।

(ख) ज्ञात संभावना के आधार पर प्रतिदर्शन त्रुटि की भी माप की जा सकती है।

(ग) संभाविता-प्रतिदर्शन प्रतिनिधित्वपूर्ण प्रतिदर्श-चयन का आश्वासन देता है।

(घ) इस प्रतिदर्शन में हम प्रतिदर्श के आकार भी निश्चित कर सकते हैं। अपने सरलतम तथा आदर्श रूप में संभाविता-प्रतिदर्शन में समग्र की प्रत्येक इकाई को चुने जाने का समान अवसर प्राप्त होता है। उदा० के लिए, यदि समग्र में 1,000 इकाइयाँ हैं और उससे यादृच्छिक (random) विधि से 100 इकाइयाँ प्रतिदर्श के रूप में चुनी जाती हैं तो प्रत्येक इकाई के चुने जाने की संभावना 100/1000= दस में एक है। प्रमुख संभावित प्रतिदर्शन हैं-

(i) सरल यादृच्दिक प्रतिदर्शन (Simple random sampling) या दैव निदर्शन

(ii) क्रमबद्ध प्रतिदर्शन (Systematic sampling)

(iii) स्तरीकृत प्रतिदर्शन (Stratified sampling) और

(iv) गुच्छ प्रतिदर्शन (Cluster sampling)।

इनके अतिरिक्त बहुस्तरीय प्रतिदर्शन (Multli stage sampling) बहुपक्षीय प्रतिदर्शन (Multi-phase sampling), क्षेत्र प्रतिदर्शन ( Area sampling) आदि भी संभावित प्रतिदर्शन के उदाहरण है।

(i) असंभाविता-प्रतिदर्शन (Non-probability sampling)

इसके अंतर्गत वे प्रविधियाँ आती है, जिनमें किसी इकाई के चुने जाने की संभावना न तो ज्ञात रहती है और न ही उसकी गणना की जा सकती है। फलतः, इस प्रकार के प्रतिदर्शन में प्रतिदर्शन त्रुटि का आंकलन नहीं किया जा सकता। इस विधि में यह भी नहीं कहा जा सकता कि प्रत्येक इकाई का प्रतिदर्श में सम्मिलित होने की कुछ-न-कुछ संभावना है, भले ही वह ज्ञात न हो।

असंभाविता-प्रतिदर्शन का प्रयोग प्रायः जनसंख्या के व्यापक एवं असीम होने के कारण किया जाता है। जब संपूर्ण जनसंख्या का स्वरूप स्पष्ट न हो एवं साधन सीमित हो तब शोधकर्ता प्रायः असंभाविता-प्रतिदर्शन का प्रयोग करता है। संभाविता-प्रतिदर्शन की तुलना में इस विधि में पक्षपात की काफी संभावना होती है। अतः, जब अनुमान की परिशुद्धता अधिक महत्वपूर्ण न हो, तब इस प्रकार के प्रतिदर्शन उपयोगी एवं सुविधापूर्ण सिद्ध होते हैं। असंभाविता-प्रतिदर्शन में शोधकर्ता की सूझ-बूझ एवं विवेक पर आधृत प्रतिदर्श का चयन होता है। इसके लिए वह शोध – उद्देश्यों को ध्यान में रखकर कुछ इकाइयों का चुनाव करता है। प्रमुख असंभाविता प्रतिदर्शन की विधियाँ निम्नलिखित हैं-

(i) अंश या कोट प्रतिदर्शन (Quota sampling),

(ii) उद्देश्यपूर्ण प्रतिदर्शन (Purposive sampling),

(iii) आकस्मिक प्रतिदर्शन (Accidental sampling) और

(iv) सुविधाजनक प्रतिदर्शन (Convenient sampling)।

इनके अतिरिक्त, स्वयंचयित (self-selected sampling), स्नोबॉल (snow ball) प्रतिदर्शन आदि का भी उल्लेख किया जा सकता है।

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