थर्सटन मापक्रम पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
थर्सटन मापक्रम : समदृष्टि- अंतराल मापक्रम – थर्सटन एवं वेब (L.L. Thursone and E. J. Chave) ने 1929 ई0 में विभिन्न समस्याओं के प्रति मनोवृत्ति की माप के लिए एक समृद्दि-अंतराल या समविस्तार मापक्रम ( equal appearing interval scale) विकसित किया। थर्सटन एवं उनके सहयोगियों ने प्रारंभ में इस मापक्रम का उपयोग चच, युद्ध, मृत्युदंड, विकासवाद, परिवार नियोजन आदि समस्याओं के प्रति मनोवृत्ति की माप के लिए किया। किंतु वर्तमान समय में यह विधि कई विभिन्न प्रकार के घटनाओं एवं स्थितियों के प्रति, मनोवृत्ति की माप के लिए संभवतः सर्वाधिक प्रचलित विधि है। यह विधि ‘थर्सटन-मापक्रम (Thurstone scale) के नाम से लोकप्रिय है। थर्सटन ने इसे एक ‘अंतराल मापक्रम’ (interval scale) के रूप में विकसित करने का प्रयत्न किया था, जिसमें एक बिंदु से दूसरे बिंदु के बीच समान दूरी होती है, या कम-से-कम मनोवृत्ति के दो बिन्दुओं के बीच की दूरी ज्ञात हो। यही कारण है कि अत्यधिक प्रतिकूलता से अत्यधिक अनुकूलता के बीच के विभाजनों का विस्तार या अंतराल समान रखने का प्रयत्न किया जाता है। इसीलिए, थर्सटन विधि एक समदृष्टि अंतराल या समविस्तार मापक्रम (equal appearing interval scale) कहा जाता है।
थर्सटन-मापक्रम में किसी समस्या, घटना या स्थिति से संबद्ध बहुत अधिक संख्या में कथनों को एकत्र कर जजों के निर्णय के आधार पर उनका मापक्रम-मूल्य (scale value) निर्धारित किया जाता है। उत्तरदाताओं के प्रत्युत्तर के आधार पर उसका भी अंक ज्ञात कर विषय के प्रति उसकी मनोवृत्ति की तीव्रता मापी जाती है। प्रारंभ में, थर्सटन ने चर्च के प्रति मनोवृत्ति की माप के लिए दस कथनवाला मापक्रम विकसित किया था। थर्सटन-मापक्रम में एक छोर पर पूर्ण अस्वीकृति या अत्यंत प्रतिकूलता तथा दूसरे छोर पर पूर्ण स्वीकृति या अत्यंत अनुकूलता दिखाई जाती है। बीच की स्थिति औसत या तटस्थ स्थिति होती है। उत्तरदाता के प्रत्युत्तर के आधार पर, जो कथनों से सहमति के रूप में प्राप्त होती है, मनोवृत्ति -मापक्रम पर उसका संख्यात्मक स्थान निश्चित किया जाता है।
थर्सटन-मापक्रम के प्रमुख चरण
थर्सटन-मापक्रम के प्रमुख चरण इस प्रकार है-
1. प्रथम चरण में, जिस समस्या के प्रति मनोवृत्ति का अध्ययन किया जाता है, उसमें संबद्ध काफी संख्या में कथनों को विभिन्न स्रोतो से संकलित किया जाता है। ये स्रोत व्यक्ति, समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, शोधलेख कुछ भी हो सकते हैं।
इन कथनों के चुनाव में यह ध्यान रखा जाता है कि ये अस्पष्ट, अनुपयुक्त तथा शोध- विषय से असंबद्ध न हों। अनेकार्थक, जटिल या समानार्थक कथनों को छाँट दिया जाता है। इस तरह, लगभग 100 या उससे अधिक कथनों को संकलित कर लिया जाता है, जो किसी समस्या के प्रति मनोवृत्ति से संबद्ध हों। इसमें अनुकूल एवं प्रतिकूल सभी प्रकार के कथन सम्मिलित किए जाते हैं। जैसे—थर्सटन के पास चर्च के बारे में ‘मुझे चर्च की सेवाएँ सुखदायी एवं प्रेरणायी लगती है।’ की तरह अनुकूल कथन थे, तो मैं समझता हूँ कि चर्च समाज का शोषण करनेवाली संस्था है की तरह प्रतिकूल कथन भी थे। लगभग 100 कथनों के चुनाव में कई बातों का ध्यान रखना होता है-
(i) कथनों का संबंध व्यक्ति की वर्तमान मनोवृत्ति से हो न कि अतीत की स्थिति से ।
(ii) उन कथनों का बहिष्कार किया जाना चाहिए, जिनका विवेचन अनेक प्रकार से किया जा सकता हो या अनेकार्थक कथनों से बचना चाहिए।
(iii) द्विमुखी. कथन (double barrelled statements) से बचना चाहिए, अर्थात ऐसे कथन, जिनमें दो कथन सम्मिलित हों, उपयुक्त नहीं होते। जैसे— ‘मुझे चर्च का आदर्श पसंद है, लेकिन आडंबर नहीं।’
(iv) कथनों का संबंध उस विशिष्ट समस्या की मनोवृत्ति से हो।
(v) कथन की भाषा एवं वाक्य संरचना सरल, संक्षिप्त एवं स्पष्ट हो ।
(vi) थोड़े से लोगों पर लागू कथन या केवल विशिष्ट लोगों पर लागू कथनों से बचना चाहिए। जैसे—मैं चर्च इसलिए जाता है कि मुझे संगीत से लगाव है।
(vii) कथन अनुकूल एवं प्रतिकूल दोनों प्रकार की मनोवृत्तियों को स्पष्ट करने वाले हों, लेकिन एक कथन से अनुकूल अर्थात प्रतिकूल कोई एक मनोवृत्ति ही स्पष्ट हो ।
इस तरह, कथनों का संपादन-संशोधन कर लगभग 100 कथन छाँट लिए जाते है। थर्सटन ने इस तरह 130 कथन एकत्र किए थे।
2. दूसरे चरण में, इन कथनों को समान रंग-रूपवाले कागज या कार्ड पर अंकित कर लिया जाता है और इन्हें अनेक जजों को, जिनकी संख्या काफी अधिक होनी चाहिए, मूल्यांकन या निर्णय के लिए दिया जाता है। थर्सटन ने 300 निर्णायकों या जजों को 130 कथनों का मूल्यांकन करने के लिए दिया था।
3. तीसरे चरण में, जजों के निर्णय के आधार पर कथनों का संपादन किया जाता है। अस्पष्ट, अनुपयुक्त एवं असंबद्ध कथन छाँट दिए जाते हैं। जैसे—जिस कथन के स्थान के बारे में अधिकांश जजों की सहमति होती है, वे उपयुक्त कथन समझे जाते है। जो 1 से 11 तक के सभी स्थानों के बीच लगभग समान रूप वितरित होते हैं, वैसे कथन भी अस्पष्ट एवं अनुपयुक्त समझे जाते हैं। इस संपादन एवं निर्णय के लिए सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए मध्यांक, माध्य, चतुर्थाक, संचयी आवृत्ति (Median, mean, interquartile range, cumulative frequency) आदि की गणना की जाती है। जैसे—चतुर्थांक (interquartile range) की तुलना के आधार पर निर्णयों के फैलाव (scatter of judgement) की माप की जाती है। और, जो कथन उच्च फैलाव (high scatter) बताते हैं, उन्हें अस्पष्ट एवं असंबद्ध समझकर छोड़ दिया जाता है।
4. चौथे चरण में चुने गए स्पष्ट, संबद्ध एवं उपयुक्त कथनों का मापक्रम मूल्य (scale value) ज्ञात किया जाता है। यह मूल्य उस कथन को जजों द्वारा दिए गए स्थान के औसत अंक- माध्य या मध्यांक (mean or median) के रूप में प्राप्त किया जाता है। यह माध्य या माध्यांक ही उस कथन का मापक्रम मूल्य या स्केल वैल्यू है।
5. पाँचवें चरण में, निश्चित संख्या में, लगभग बीच कथनों के चुनाव द्वारा मापक्रम का निर्माण किया जाता है। इन कथनों का चुनाव करते समय यह ध्यान रखा जाता है कि वे अत्यधिक अनुकूलता से अत्यधिक प्रतिकूलता के बिंदु तक समान रूप से लगभग समान अंतर निश्चित अंतरों पर वितरित हो। दूसरे शब्दों में, लगभग समान ‘मूल्य’ (scale value) वाले कथनों को एक ही मापक्रम में नहीं सम्मिलित करना चाहिए और यह भी ध्यान रखना चाहिए कि एक कथन का मापक्रम मूल्य दूसरे, तीसरे और इसी तरह अन्य कथनों के मापक्रम-मूल्य से कुछ निश्चित अन्तरो पर, लगभग समान अंतर पर फैले हों।
6. छठे चरण में, इन चुने गए कथनों से निर्मित मापक्रम की विश्वसनीयता एवं प्रामाणिकता की जाँच की जाती है। विश्वसनीयता के लिए ‘परीक्षा-पुनः परीक्षा’ (test retest) या ‘सम-प्रपत्र’ या ‘बहुल- पत्र’ (multiple or parllel form) विधि का प्रयोग किया जा सकता है।
अब थर्सटन-मापक्रम उपयोग के लिए अंतिम रूप से तैयार है। इन कथनों को यादृच्छिक (random) विधि से पुनर्व्यवस्थित कर लिया जाता है। अतः अब वे कथन ‘मापक्रम-मूल्य’ के क्रम से सजे नहीं होते या वे ‘अनुकूलता – प्रतिकूलता-क्रम’ में भी सजे नहीं होते। सामान्यतः तापक्रम पर केवल निर्देश एवं कथन होते हैं, उनका मापक्रम मूल्य नहीं दिया रहता । उत्तरदाताओं से कहा जाता है कि वे अपनी सहमति एक या उससे अधिक कथनों से बताएँ और जिनसे सहमत हों, उन्हें चिह्नित करें। मान लिया कि एक उत्तरदाता ने तीन कथनों से सहमति बताई। जिनका मापक्रम मूल्य क्रमशः 6.4, 48 और 32 है, जो उत्तरदाता का औसत अंक (score) माध्यम के रूप में प्राप्त कर लिया जाता है। इस स्थिति में यह 6.4 + 4.8 + 3.2 + 14.4 को हीन से विभक्त कर प्राप्त किया गया, जो 14.4 + 3 = 4.8 हुआ । यह अंक (4.8) उत्तरदाता का मनोवृत्ति सूचक अंक है।
थर्सटन-मापक्रम के प्रारंभिक निर्माण के पश्चात कई विद्वानों ने इस दिशा में शोध किए है। प्रत्येक बार निर्माण के श्रम से बचने के लिए रेमर्स (Remmers) आदि ने एक सामान्यीकृत (generalised) थर्सटन-मापक्रम का विकास किया है, जिसमें विभिन्न समस्याओं से संबद्ध कुछ सामान्य कथन सम्मिलित किए जाते हैं। ऐसे एक ही मापक्रम द्वारा विभिन्न समस्याओं के प्रति मनोवृत्ति की माप की जा सकती है। अतः इसे ‘मास्टर स्केल’ (master scale) भी कहते हैं।
आलोचना
थर्सटन-मापक्रम मनोवृत्ति की माप के लिए प्रयुक्त एक उपयोगी, विश्वसनीय, सरल एवं लोकप्रिय विधि है। इस विधि की कुछ कमियों की ओर विद्वानों ने ध्यान आकृष्ट किया है। ये आपत्तियाँ या आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं-
(i) थर्सटन-मापक्रम की निर्माण विधि अत्यंत बोझिल, खर्चीली अधिक समय लेनेवाली हैं। ऐसा इसलिए होता है कि पहले तो काफी संख्या में कथनों का संपादन करना पड़ता है, फिर जजों का चुनाव कर उनके निर्णय का विश्लेषण करना पड़ता है। फिर, मापक्रम मूल्य ज्ञात करना होता है। कुल मिलाकर, यह एक जटिल, बोझिल एवं श्रमसाध्य प्रक्रिया है।
(ii) थर्सटन-मापक्रम की एक प्रमुख आलोचना इस बाल से संबद्ध है कि जजों के व्यक्तिगत पक्षपात का प्रभाव उनके निर्णय कर पड़ता है और किसी कथन के ‘मापक्रम-मूल्य’ की गणना दोषपूर्ण हो सकती है। हॉबलैंड एव शारिफ (Hoviand and Sherif) तथा केली (Kelly) आदि ने अपने अध्ययनों के आधार पर थर्सटन-मापक्रम की इस कमी की ओर संकेत किया है। लेकिन, दूसरी ओर विभिन्न विद्वान जैसे—हिंकले (Hinckley), फर्गुसन (Ferguson ) आदि इस आपत्ति को उचित नहीं मानते।
(iii) एडवर्ड (Edward) ने थर्सटन-मापक्रम की विधि की आलोचना करते हुए कहा है कि यदि कई समान मूल्यवाले कथनों से किसी एक कथन को चुनना हो, तो इसके लिए कोई ऐसा ठोस या वैज्ञानिक आधार थर्सटन-मापक्रम की विधि में नहीं है, जिससे अधिक विभेदीकरण की क्षमतावाल कथन का चुनाव किया जा सके। यह चुनाव प्रायः शोधकर्त्ता की पसंद पर निर्भर करता है।
Important Links
- सहभागिक अवलोकन का अर्थ और परिभाषा, विशेषतायें, लाभ अथवा गुण, कमियाँ अथवा सीमायें
- अवलोकन अथवा निरीक्षण की विधियाँ | नियन्त्रित और अनियन्त्रित अवलोकन में अंतर
- असहभागी अवलोकन- गुण, दोष | सहभागी व असहभागी निरीक्षण में अन्तर
- अवलोकन या निरीक्षण का अर्थ एवं परिभाषा, विशेषताएँ, उपयोगिता
- प्रश्नावली और अनुसूची में अंतर | prashnavali aur anusuchi mein antar
- अनुसूची का अर्थ एवं परिभाषा, उद्देश्य, प्रकार, उपयोगिता या महत्व, दोष अथवा सीमाएँ
- प्रविधि का अर्थ | सामाजिक शोध की प्रविधियाँ
- साक्षात्कार का अर्थ एवं परिभाषा, विशेषताएँ, उद्देश्य, प्रकार, प्रक्रिया, तैयारी