वैयक्तिक अध्ययन की आधारभूत मान्यताएँ – Basic Assumptions of Individual Learning
1. मानव की मौलिक एकता- वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की पहली आधारभूत मान्यता यह है कि मनुष्यों में एक स्वाभाविक समानता विद्यमान है। मनुष्यों में विशेष परिस्थितियों में विशेष तथा समान शारीरिक, मानसिक तथा भावात्मक उत्तेजना उत्पन्न होती है और प्रायः इस सामान्य प्रेरणा के फलस्वरूप उनमें समान व्यवहार पाया जाता है। यह सत्य है कि कोई भी दो व्यक्ति बिल्कुल समान नहीं होते, पर यह भी उतना ही सत्य है कि अधिकांश व्यक्ति समान परिस्थिति में सामान्य रूप से बिल्कुल भिन्न व्यवहार नहीं करते। मनुष्यों में मौलिक प्रवृत्तियां (Instincts) तथा प्रेरक शक्तियां (Drives) समान होती हैं, अतः उनके व्यवहार में अन्तर्निहित समानता है। परिस्थिति तथा प्रकृति के अनुसार थोड़ा बहुत परिवर्तन अवश्य रहता है किन्तु यदि इस भिन्नता को परिस्थिति के सन्दर्भ में माप लिया जाये, तो मनुष्यों की आन्तरिक एकता स्पष्ट हो सकती है। इस एकता के कारण ही प्रत्येक इकाई के सूक्ष्म अध्ययन से समस्त वर्ग की विशेषताओं का अनुमान किया जा सकता है।
2. सर्वाङ्गीण अध्ययन- वैयक्तिक अध्ययन की दूसरी मान्यता यह है कि प्रत्येक इकाई अपने में पूर्ण है, अतः पूर्णता में ही उसका वास्तविक अध्ययन सम्भव है। जीवन का यथार्थ ज्ञान उसके भिन्न-भिन्न टुकड़ों के अध्ययन के आधार पर नहीं, बल्कि जीवन की समग्र सम्पूर्णता के अध्ययन से ही सम्भव है। समाजशास्त्र यदि समाज की सम्पूर्णता का अध्ययन है, तो यह कहना अनुचित न होगा कि वैयक्तिक अध्ययन पद्धति समाजशास्त्रीय अध्ययन में सर्वप्रमुख तथा उपयुक्ततम विधि मानी जानी चाहिये। मनुष्य के व्यवहार प्रतिमान (Behaviour Pattern) को जानने के लिये यह आवश्यक है कि उसके जीवन के ऐतिहासिक क्रम को भली प्रकार समझा जाये।
3. सामाजिक घटनाओं की जटिलता- सामाजिक घटनायें इतनी साधारण नहीं होती कि सरलता से उनको देखा या समझा जा सके। अधिकांश मानव-व्यवहार अमूर्त तथ्यों का परिणाम होता है। जब तक व्यक्ति के भूत तथा वर्तमान जीवन के विषय में विश्वसनीय तथ्य प्राप्त न कर लिये जायें, तब तक यह नहीं कहा जा सकता कि उसका यथार्थ जीवन समझ लिया गया है। केवल वैयक्तिक अध्ययन प्रणाली द्वारा ही मानव व्यवहारों को सहानुभूतिपूर्ण आत्मीय सम्पर्क के आधार पर उसके मौलिक रूप में समझा जा सकता है।
4. परिस्थितियों की पुनरावृत्ति- वैयक्तिक अध्ययन की यह भी मान्यता है कि मनुष्य की परिस्थितियाँ जीवन में बार-बार आती है। एक ही प्रकार की स्थिति का सामना कई बार मनुष्य करता है। अतः यदि मानव व्यवहार का शुद्ध अध्ययन करना हो, तो परिस्थिति की पुनरावृत्ति के सन्दर्भ में मनुष्य की प्रतिक्रिया को समझना आवश्यक है। कहने का अभिप्राय यह है कि केवल एक बार किसी विशेष परिस्थिति में किये गये व्यवहार को हम मनुष्य का मौलिक व्यवहार नहीं मान सकते। इस परिस्थिति की पुनरावृत्ति होने पर व्यवहार की जो विशेषतायें बार-बार प्रकट होती हैं, वे ही इकाई की वास्तविक मौलिक विशेषतायें हैं। ऐसा करने के लिये यह आवश्यक है कि इकाई का पूर्ण जीवन सामने रखकर अध्ययन किया जाये।
5. समय का प्रभाव- मनुष्य एक मशीन नहीं है। मशीन पर कारक का प्रभाव तुरंत हो जाता है, किन्तु मनुष्य का व्यवहार उसके अतीत की पृष्ठभूमि में ही समझा जा सकता है। समाज में आज जो कुछ है, वह काफी समय से पड़ने वाले प्रभावों का ही फल है। आज का इंजीनियर पिछले कई वर्षों के अनेकों कारकों का फल है। डाकू या सन्त, दुकानदार या अध्यापक. युद्ध अथवा व्यापारिक समझौता, तलाक या प्रधान-मंत्रित्व प्रायः उलझे हुए लम्बे घटनाक्रम के प्रतिफल हैं। अतः वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की यह मान्यता है कि मनुष्य के व्यवहार तथा सामाजिक संस्थाओं पर समय का बहुत प्रभाव पड़ता है। सामाजिक अध्ययन कालचत्र के सन्दर्भ में ही काना चाहिये, ताकि कार्य-कारण सम्बन्धों का यथार्थ ज्ञान प्राप्त किया जा सके।
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