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असहभागी अवलोकन- गुण, दोष | सहभागी व असहभागी निरीक्षण में अन्तर

असहभागी अवलोकन
असहभागी अवलोकन

असहभागी अवलोकन से आप क्या समझते हैं? 

जिस विधि में अवलोकनकर्ता या निरीक्षणकर्ता अवलोकन किये जाने वाली सामाजिक घटना के तथ्यों का एकत्रीकरण निष्पक्ष रहकर करता है उसे असहगामी अवलोकन या निरीक्षण कहते है। असहगामी अनियन्त्रित निरीक्षण का अति उत्तम रूप है। इसमें निरीक्षण की जाने वाली सामाजिक घटना पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी प्रकार का नियंत्रण, दखलन्दाजी या कृत्रिमता नहीं होती। निरीक्षणकर्ता समुदाय या समूह से दूर रहकर उसकी स्वाभाविक जीवनविधि को देखता व अध्ययन करता है। निष्पक्ष व पूर्णरूपेण स्वतंत्रता पूर्वक अध्ययन इस प्रविधि की उल्लेखनीय विशेषता है। पीटर एच. मन ने संकेत किया है कि असहभागी निरीक्षण वह प्रविधि है जिसके अन्तर्गत एक निरीक्षणकर्ता निरीक्षित व्यक्तियों में छिपा रहता है और व्यक्ति जिनका कि अवलोकन करता है स्वच्छन्द एवं प्राकृतिक रूप से व्यवहार प्रतिमान प्रदर्शित करते हैं। स्पष्ट है इसमें साधारणतया अभिमति या पक्षपात की संभावना न के बराबर होती है।

असहगामी निरीक्षण के गुण / लाभ

(1) असहगामी निरीक्षण में निरीक्षणकर्ता सामूहिक या सामुदायिक जीवन से तटस्थ रहने के कारण भावुकता से वंचित रहता है, और उसका निरीक्षण वस्तुनिष्ठ होता है। निरीक्षणकर्ता के व्यक्तिगत विचारों के समावेश की संभावना घट जाती है।

(2) असहगामी निरीक्षण में निरीक्षणकर्ता समूह के व्यक्तियों की स्वाभाविक गतिविधियों का अवलोकन करता है। प्रश्नोत्तर के काल में शायद सदस्य वास्तविक बातों को छिपाकर रखे या उनके व्यवहार में तोड़-मरोड़ की प्रवृत्ति आ जाए। इस प्रकार असहभागी निरीक्षण अधिक विश्वसनीय होती है। इस प्रविधि में निरीक्षणकर्ता स्वयं ही सब कुछ देखने का प्रयास करता है।

(3) असहभागी निरीक्षणकर्ता प्रायः समूह में सम्मान का पात्र होता है। समूह के सदस्य उसको एक सामान्य व्यक्ति न मानकर, जासूस न मानकर, सामूहिक जीवन में आक्रान्ता न मानकर एक अध्ययनकर्ता व वैज्ञानिक मानते हैं। समूह के सदस्य यथासम्भव सहयोग प्रदान करते हैं।

(4) असहभागी निरीक्षण में अपेक्षाकृत धन तथा समय की बर्बादी कम होती है। सामुदायिक जीवन के निरीक्षण के लिए वर्षों नहीं व्यतीत करना पड़ता है।

असहभागी अवलोकन के दोष

इस पद्धति में प्रत्येक घटना का अध्ययन संभव नहीं हो पाता है। विशुद्ध असहभागी निरीक्षण असंभव होता है। निरीक्षणकर्ता भी मानवजाति का होने के कारण यन्त्रवत तटस्थता नहीं बनाये रख सकता है। प्रायः अजनबी व्यक्ति होने के कारण निरीक्षणकर्ता को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है और सामुदायिक व्यवहार में कृत्रिमता का समावेश हो जाता है।

सहभागी व असहभागी निरीक्षण में अन्तर/भेद

सहभागी व असहभागी निरीक्षण का उद्देश्य एक होने के बावजूद भी उनकी प्रवृत्ति व प्रणाली में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है, प्रमुख अन्तर निम्न है-

(1) सहभागी निरीक्षण में निरीक्षणकर्ता स्वंय उस समुदाय में जाकर जीवन यापन करता है जिसका उसे अध्ययन करना होता है। असहभागी निरीक्षण में निरीक्षणकर्ता आवश्यकतानुसार यदा कदा ही समूह में जाता है। अतः दोनों प्रविधियों में निरीक्षणकर्ता की स्थिति में आधारभूत अन्तर पाया जाता है।

(2) सहभागी निरीक्षण में निरीक्षणकर्ता समुदाय का सदस्य सा बन जाता है। जबकि असहभागी निरीक्षण में निरीक्षणकर्ता एक बाहरी व्यक्ति की स्थिति को बनाये रखता है।

(3) सहभागी निरीक्षण में समूह या समुदाय का गहन एवं सूक्ष्म अध्ययन संभव होता है। इसके विपरीत असहगामी निरीक्षण में प्रत्येक घटनाओं तक पहुंचना व अध्ययन करना संभव नहीं हो पाता है।

(4) असहभागी निरीक्षण में सामुदायिक जीवन के विशिष्ट व गुप्त पक्षों का अध्ययन नहीं हो पाता है परन्तु असहभागी निरीक्षण में ऐसा अध्ययन संभव होता है।

(5) सहभागी निरीक्षण में अनुसंधानकर्ता को संकलित तथ्यों के सत्यापन व पुनः सत्यापन का अवसर मिल जाता है, असहभागी निरीक्षण में अनुसंधानकर्ता के कभी-कभी जाने के कारण यह सुविधा संभव नहीं हो पाती है।

(6.) सहभागी निरीक्षण में अध्ययन सरल व स्वाभाविक होता है जबकि असहगामी निरीक्षण में अनुसंधानकर्ता के अपरिचित होने के कारण व्यवहार कृत्रिम हो सकता है।

(9) सहभागी निरीक्षण प्रविधि अत्यधिक खर्चीली तथा समयभोगी है। असहभागी निरीक्षण में धन तथा समय की आवश्यकता होती है। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि सहभागी अवलोकन या निरीक्षण की अपेक्षा असहभागी अवलोकन या निरीक्षण विधि सामाजिक अनुसंधान में ज्यादा विश्वसनीय एवं उपयोगी है।

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