परिमापन का अर्थ
परिमापन का अर्थ- सरल शब्दों में, परिमापन का अर्थ है, किसी समूह, व्यक्ति या वस्तु का संख्यात्मक विवरण प्रस्तुत करना। दूसरे शब्दों में, किसी अवधारणा, घटना या विषय को अंक प्रदान करना ही परिमापन है। सामाजिक अनुसंधान में हम परिवर्त्यो एवं अवधारणाओं का विवरण एवं विश्लेषण करते हैं। इन परिवत्र्त्यो (variables) की कई विशेषताएँ या गुण (values) होते हैं जिनकी अनुसंधान में गणना की जाती है और उनके परिवर्तनों के कारणों का विश्लेषण किया जाता है। सरलतम स्तर पर जब हम उनकी गणना करते हैं, तब वास्तव में हम परिमापन ही कर रहे होते हैं। जैसे धर्म के आधार पर हम हिंदू, सिक्ख, ईसाई, मुसलमान आदि विभिन्न धर्मों की गणना करते हैं या फिर, किसी कार्यालय या कारखाने के कार्यकर्त्ताओं की ‘कार्यसंतुष्टि’ को अंकों में प्रस्तुत करते हैं, यथा- मोहन का कार्यसंतुष्टि अंक 108 है, और श्याम का 115. यहाँ भी हम कार्यसंतुष्टि की परिमाप करते हैं।
इस तरह परिमापन गुणात्मक तथ्यों को संख्यात्मक श्रेणियों में परिवर्तित करने की विधि है। व्यापक अर्थों में परिमापन का अर्थ है किसी घटना या विशेषता को अंक प्रदान करना। इस संबंध में स्टीवेंस (Stevens) की परिभाषा अत्यंत प्रचलित है। उनके अनुसार, ‘व्यापक अर्थों में, परिमापन नियमानुसार वस्तुओं अथवा घटनाओं के अंकों का निर्धारण है।’
इस परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि वस्तु एवं अंकों को एक नियम के अनुसार संबद्ध किया जाता है। अंक (numeral) मात्र एक प्रतीक (symbol) या संकेत है जिसे 1,2,3 … के रूप में लिखा जाता है। इसका कोई परिमाणात्मक अर्थ नहीं होता है। जैसे, होटल के कमरे का अंक 103 है। या हम हिंदू को 1, मुसलमान को 2, एवं ईसाई को 3 अंक प्रदान कर सकते हैं। यहाँ पर वे मात्र प्रतीक हैं। किन्तु, जब इन्हें हम परिमाणात्मक अर्थ प्रदान करते हैं तब वे संख्या (number) हो जाते हैं। अब हम इनके साथ गणितीय योग, गुणा आदि क्रियाएँ कर सकते हैं, और वे कम या अधिक मान रखती हैं।
परिमापन में घटना एवं अंकों के संबंध को एक निश्चित नियम के अनुसार निर्धारित किया जाता है। नियम हमें यह बताते हैं कि घटना को संख्या अथवा अंक से किस प्रकार जोड़ा जाए।
इस तरह, परिमापन एक ऐसी विधि है जिससे व्यक्ति, घटना या वस्तु की विशेषताओं को संख्यात्मक रूप में वर्णित किया जाता है। हम यह जरूर कहते हैं कि हम वस्तुओं या घटनाओं की माप करते हैं। किंतु वास्तव में हम वस्तुओं की किसी विशेषता या गुण की माप करते हैं। जैसे, हम टेबुल का परिमापन नहीं करते हैं, बल्कि उसकी ऊँचाई या चौड़ाई को मापते हैं। समाजशास्त्र में हम सामाजिक दूरी, मनोवृत्ति, आयु आय आदि विशेषताओं की माप करते हैं। परिमापन के लिए जिस यंत्र या उपकरण का उपयोग किया जाता है, उसे मापक्रम (scale) कहते हैं।
परिमापन के स्तर
जब हम घटना या वस्तु को संख्यात्मक मान प्रदान करते हैं, तब उन संख्याओं या अंकों के विभिन्न अर्थ एवं मान हो सकते हैं। अर्थ की इस भिन्नता के आधार पर स्टीवस (Stevens) से परिमापन के बार स्तर ( levels) की चर्चा की है। इन्हें हम मापक्रम (Scale) के चार प्रकार भी कह सकते हैं-
(i) नामिक परिमापन या मापक्रम (Nominal Scale or measurment),
(ii) ऋमिक परिमापन (Ordinal Measurement)
(iii) अंतराल – परिमापन (Interval Measurement)
(iv) अनुपाती परिमापन ( Ratio measurement)
इनमें नामिक माप सरलतम एवं निम्नतम स्तर की माप है और अनुपाती उच्चतम।
(i) नामिक मापक्रम (Nominal Scale)– यह परिमापन का सरलतम स्तर है। इस स्तर पर हम किसी व्यक्ति, वस्तु या घटना की विशेषता की गणना करते हैं। उन विशेषताओं को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत करते हैं और उन्हें अंक प्रदान करते हैं। नाभिक माप वस्तुतः एक वर्गीकरण विधि है। इसमें केवल यह आवश्यक हैं कि घटनाओं की एक से अधिक श्रेणियाँ हों, जो एक-दूसरे से पूर्णतः भिन्न एवं अलग (distinct and mutuality exclusive) हों। वर्गीकरण की दो प्रमुख विशेषताएँ होती हैं- विस्तार या व्यापकता ( exhaustive) एवं अनन्यता या भिन्नता (mutually exclusive)। व्यापकता ( exhaustive) का अर्थ है, जिन वस्तुओं या विषयों का हम परिमापन कर रहे हैं, उनमें से प्रत्येक के लिए एक श्रेणी या वर्ग अवश्य हो जिसमें उसे रखा जा सके। पारस्परिक अनन्यता या भिन्नता (Mutually exclusive) का अर्थ है, कोई वस्तु किसी एक ही श्रेणी या वर्ग में सम्मिलित हो सकती है। अर्थात, प्रत्येक के लिए एक वर्ग (exhausitve) अवश्य हो और प्रत्येक के लिए एक ही वर्ग (mutually exclusive) हो। जैसे लिंग (sex) को लें, जिसे हम स्त्री एवं पुरुष दो वर्गों में बांट सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को इन्हीं दो वर्गों में रखा जा सकता है, यह व्यापकता का गुण है। और, कोई भी व्यक्ति ‘स्त्री’ तथा ‘पुरुष’ दोनों वर्गों में नहीं रखा जा सकता, यह पारस्परिक अन्यता (mutually exclusive) की विशेषता है। ये पहचान अंतर एवं वर्गीकरण के कार्य के लिए प्रयुक्त संकेतमात्र हैं (These numerals are mere symbols for identification, distinction and classification)!
(ii) क्रमिक परिमापन (Ordinal measurement)- नामिक परिमापन से ऊपर क्षमिक परिमापन है। यहाँ पर अंकों का कार्य मात्र भिन्नता स्थापित कर वर्गीकरण करना ही नहीं है, बल्कि ये अंक ‘क्रम’ (order) का भी निर्धारण करते हैं—कौन अधिक है और कौन कम, कौन उच्च है और कौन निम्न आदि। यहाँ पर विभिन्न वर्ग या श्रेणियों का स्तर नामिक परिमापन की तरह समान नहीं होता है, बल्कि वे एक कम में सजी होती है। लेकिन, एक वर्ग से दूसरे वर्ग का दूसरे से तीसरे वर्ग या श्रेणी का अंतर समान नहीं होता है। बोगार्डस सामाजिक दूरी मापक्रम (Bogardus social distance scale) क्रमिक मापक्रम का उदाहरण है।
(iii) अंतराल परिमापन (Interval measuremant)- अंतराल परिमापन में नामिक एवं क्रमिक दोनों मापक्रमों की विशेषताएं होती हैं। जैसे-नामिक माप के समान यह विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत कर सकता है और क्षमिक माप के समान उन्हें क्रमवार श्रेणियों (rank order) में बांट सकता है। पर, साथ ही इसकी एक विशेषता और है— वह यह कि विभिन्न क्षमिक वर्गों के बीच की दूरी भी इसमें समान होती है। यह केवल यह नहीं बताता कि ‘क’ से ‘ख’ अधिक है और ‘ख’ से ‘ग’ अधिक है, बल्कि यह भी बताता है कि ‘क’ से ‘ख’ की दूरी वही है, जो ‘ख’ से ‘ग’ की। ऐसी स्थिति में हम केवल यही नहीं बता सकते कि ‘क’ से ‘ख’ और ‘ख’ से ‘ग’ अधिक है, बल्कि यह भी बता सकते हैं कि ‘क’ से ‘ग’ दो इकाई अधिक है। सेंटीग्रेड या फारेनहाइट मापक्रम इसी प्रकार का मापक्रम है। इसमें 0° से 1°, 1° से 2° से 3° इसी तरह प्रत्येक के बीच का मान समान है। हम यह कह सकते हैं कि 10° से 20° सेंटीग्रेड दस इकाई अधिक है, किंतु यह नहीं कह सकते कि 10° से 20° का ताप दोगुना है। यह सिर्फ अनुपाती मापक्रम में संभव है जहाँ अंतराल मापक्रम की तरह काल्पनिक शून्य नहीं माना जाता है। अंतराल मापक्रम में हम जोड़ एवं घटाव (addition and subtraction) की गणितीय क्रियाएँ कर सकते हैं।
(iv) अनुपाती मापक्रम (Ratio measurement or scale)- अनुपाती मापक्रम परिमापन उच्चतम स्तर है। इसमें नामिक, क्रमिक एवं अंतराल मापक्रमों की सभी विशेषताएं- विद्यमान होती हैं और उनके अतिरिक्त इसकी प्रमुख विशेषता प्राकृतिक या पूर्ण शून्य (a bsolute zero) है। अंतराल मापक्रम में भी ‘शून्य’ होता है, किंतु वह एक माना हुआ शून्य ( arbitrary zero) है। ‘पूर्ण शून्य’ का अर्थ है जिस विशेषता की माप हम कर रहे हैं वह एक बिंदु पर या शून्य पर पूर्णतः अनुपस्थित हो जाता है। जैसे – आयु के संदर्भ में ‘शून्य आयु’ की स्थिति का अर्थ है- ‘नहीं होना’ या ‘शून्य भार’ का अर्थ है कोई भार नहीं होना। इन मापक्रमों का नकारात्मक बिंदु नहीं होता है, जैसा थर्मामीटर के फारेनहाइट या सेंटीग्रेड के मापक्रमों में होता है। वहाँ सेंटीग्रेड में शून्य तापक्रम का अर्थ तापहीनता नहीं है। यह मान लिया जाता है कि बर्फ जमने का ताप शून्य है। यह प्राकृतिक शून्य (absolute zero) न होकर, काल्पनिक या माना हुआ शून्य (arbitrary zero) है। इसके नीचे-5° या 200° ताप भी होता है।
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