ग्रामीण समुदाय और नगरीय समुदाय में अन्तर
ग्रामीण एवं नगरीय समुदाय – समुदाय दो प्रकार के होते हैं-‘ग्रामीण’ एवं ‘नगरीय’। इन समुदायों का तुलनात्मक अध्ययन करना जहाँ एक ओर परम आवश्यक है, वहीं दूसरी ओर पर्याप्त कठिन भी है। इनके तुलनात्मक अध्ययन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सर्वप्रथम यह निर्धारित करना ही पर्याप्त कठिन है कि नगर किसे कहते हैं। यह कठिनाई इसलिए और भी बढ़ जाती है, क्योंकि नगरीय और ग्रामीण समुदाय में केवल अंशों का अन्तर है। अनेक विशेषताएँ कम या अधिक मात्रा में दोनों प्रकार के समुदायों में पाई जाती हैं। इसी तथ्य को मैकाइवर तथा पेज ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है, “परन्तु दोनों के बीच यह बतलाने के लिए कोई स्पष्ट विभाजन नहीं है कि कहाँ नगर समाप्त होता है और कहाँ गाँव प्रारम्भ होता है।”
इसके अतिरिक्त, एक अन्य कठिनाई यह है कि ग्रामीण एवं नगरीय समुदायों के परिवेश भी पर्याप्त भिन्न होते हैं, अतः पृथक-पृथक परिवेशों की तुलना कर पाना पर्याप्त कठिन होता है। ग्रामीण एवं नगरीय समुदायों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करने में एक अन्य मुख्य कठिनाई यह होती है कि समय एवं परिस्थितियों के बदलने के साथ नगर एवं गाँव भी निरन्तर रूप में बदलते रहते हैं, और इस परिवर्तनशीलता की प्रवृत्ति के कारण कोई स्थायी एवं अन्तिम अध्ययन प्रस्तुत कर पाना सम्भव नहीं होता। फिर भी, दोनों प्रकार के समुदायों में अन्तर पाया जाता है।
ग्रामीण तथा नगरीय समुदाय में अन्तर
1. विस्तार में अन्तर- ग्रामीण समुदाय की जनसंख्या कम होती है, जबकि नगरीय समुदाय बहुधन्धीय होने के कारण जनसंख्या में विस्तृत हो जाता है जिससे इसका विस्तार क्षेत्र अधिक होता है।
2. सांस्कृतिक आधार पर अन्तर- ग्रामीण समुदाय में कृषि एवं समान उद्योग- धन्धों के कारण सभी सदस्यों की संस्कृति समान होती है, जबकि नगरीय समुदायों में सांस्कृतिक असमानता पाई जाती है।
3. सामुदायिक भावना में अन्तर- ग्रामीण समुदाय में सामुदायिक भावना अधिक पाई जाती है, जबकि नगरीय समुदाय में द्वितीयक सम्बन्धों की प्रधानता के कारण इसका अभाव है।
4. परिवार के आकार में अन्तर- ग्रामीण समुदाय में संयुक्त परिवार प्रणाली के कारण परिवारों का आकार बड़ा होता है, जबकि नगरीय परिवार छोटे आकार के होते हैं। इन्हें एकाकी परिवार कहा जाता है।
5. विवाह के आधार में अन्तर- ग्रामीण समुदाय में विवाह एक धार्मिक, संस्कार माना जाता है, जबकि नगरीय समुदायों में आजकल प्रेम पर आधारित विवाह पाए जाते हैं, जो अस्थायी प्रकृति के होते हैं। नगरीय समुदायों में विवाह विच्छेद भी ग्रामीण समुदायों की अपेक्षा अधिक होते हैं।
6. प्रथाओं में अन्तर- बाल-विवाह, पर्दा प्रथा, विधवा-पुनर्विवाह निषेध तथा अन्य अनेक प्रकार के विवाह सम्बन्धी निषेध ग्रामीण समुदायों की प्रमुख विशेषताएँ हैं, जिनका नगरीय समुदायों में सामान्यतः अभाव होता है।
7. स्त्रियों की स्थिति में अन्तर- ग्रामीण समुदाय में अशिक्षा एवं घर की चहारदीवारी तक सीमित होने के कारण स्त्रियों का सामाजिक स्तर अपेक्षाकृत निम्न होता है, जबकि नगरीय समुदायों में शिक्षा एवं रोजगार की सुविधा के कारण स्त्रियों का सामाजिक स्तर पुरुषों के समान होता है।
8. सामाजिक नियन्त्रण में अन्तर- ग्रामीण समुदाय में परिवार, पड़ोस, प्रथाएँ, रीति-रिवाज़, धर्म तथा जाति पंचायत सामाजिक नियन्त्रण के प्रमुख अनौपचारिक साधन हैं, जबकि नगरों में पुलिस तथा कानून ही सामाजिक नियन्त्रण के औपचारिक साधन हैं।
9. पड़ोसीपन की भावना में अन्तर- ग्रामीण समुदाय में पड़ोस का विशेष महत्त्व है, जबकि नगरों में बहुधा पड़ोसी एक-दूसरे से पूरी तरह परिचित तक नहीं होते।
10. सम्बन्धों की प्रकृति में अन्तर- ग्रामीण समुदायों के एक-दूसरे से परिचित हैं और अनौपचारिक सम्बन्ध पाए जाते हैं, जबकि नगरीय समुदायों में सम्बन्धों में औपचारिकता पाई जाती है।
11. मनोरंजन के साधनों में अन्तर- ग्रामीण समुदायों में परिवार ही मनोरंजन के साधन हैं, जबकि नगरीय समुदाय में सिनेमाघर, क्लब आदि व्यावसायिक मनोरंजन के केन्द्र हैं। नगरों में मनोरंजन भी एक व्यवसाय बन गया है।
12. विचारों में अन्तर- गाँवों में संचार के साधनों की कमी के कारण ग्रामीण समुदाय के व्यक्तियों में विचारों की संकीर्णता पाई जाती है, जबकि नगरीय समुदाय में रेडियो, समाचार-पत्र आदि द्वारा अनेकानेक सूचनाएँ प्राप्त होने से विचारों में व्यापकता पाई जाती है। वस्तुतः नगरीय जीवन में इतनी अधिक विविधता पाई जाती है कि विचारों में मतभेद होना स्वाभाविक ही है।
13. सामाजिक जीवन में अन्तर- ग्रामीण समुदाय में व्यक्ति का जीवन सरल, पवित्र तथा परम्परावादी होता है, जबकि नगरीय समुदाय में जीवन जटिल होता है तथा वैयक्तिक, पारिवारिक एवं सामाजिक विघटन अधिक होते हैं।
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